जमीं से उठे सितारों ने जगाई उम्मीद

भारत को इस साल क्रिकेट विश्व कप में भले ही मायूसी हाथ लगी हो लेकिन दूसरे खेलों के कई धुरंधरों ने विश्व विजेता बनाकर गौरवान्वित किया। खेल दिवस पर हम आपको कुछ ऐसे ही सितारों से रू-ब-रू करा रहे हैं जिन्होंने आर्थिक, मानसिक और शारीरिक चुनौतियों से उबरकर देश का नाम अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर चमकाया। जमीं से उठकर फलक पर छाए ये युवा देश में खेलों का भविष्य उज्ज्वल होने की उम्मीद जगाते हैं। कामना कीजिए कि इनका कल पदकों भरा हो।
कोमालिका बारी- पिछले हफ्ते अंडर-18 वर्ग में विश्व तीरंदाजी चैंपियन बनीं। निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से हैं। घर में टीवी तक नहीं है। धनुष खरीदने के लिए पिता को 2016 में पुश्तैनी मकान बेचना पड़ा।
दुती चंद- जेंडर विवाद को निजी रिश्तों व करियर पर ग्रहण नहीं बनने दिया। जून में इटली में विश्व यूनिवर्सिटी गेम्स में 100 मीटर फर्राटा दौड़ का स्वर्ण जीतने वाली देश की पहली महिला बनीं। 
दीपक पूनिया- अपने गांव के ही अखाड़े में पहलवानी के गुर सीख देश का मान बढ़ाया। इसी माह एस्तोनिया में रूसी धुरंधर को पटकनी दे जूनियर विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता।
मानसी जोशी- 2011 में सड़क हादसे में पैर गंवाने के बाद भी हार नहीं मानी। इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर मानसी ने रविवार को विश्व पैरा बैडमिंटन में चैंपियनशिप में जीत हासिल की। 

रिलेटेड पोस्ट्स