हॉकी के जादूगर को भी देनी पड़ीं अनगिनत अग्नि-परीक्षाएं

29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन देश के महान हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद की जयंती का है। ध्यानचंद ने भारत को ओलंपिक खेलों में गोल्ड मेडल दिलवाया था। इसकी वजह से भारत की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनी थी। उनके सम्मान में 29 अगस्त, 1995 से हर वर्ष भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। दद्दा को अपने जीवन में कई अग्नि परीक्षाएं देनी पड़ीं लेकिन वह हर परीक्षा में कुंदन की तरह दमके।
ध्यानचंद की जयंती के दिन ही खेल जगत में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को भारत के राष्ट्रपति द्वारा खेलों में विशेष योगदान देने के लिए राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों से सम्मानित किया जाता है। भारतीय खिलाड़ियों को राजीव गांधी खेल रत्न, ध्यानचंद पुरस्कार और द्रोणाचार्य पुरस्कारों के अलावा अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है। 
हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले इस महान खिलाड़ी का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद में हुआ। ध्यानचंद को फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में ब्रैडमैन के बराबर माना जाता है। उनके खेल बड़े-बड़े दिग्गज भी दीवाने थे। ध्यानचंद शुरुआती शिक्षा के बाद 16 साल की उम्र में साधारण सिपाही के तौर पर भर्ती हो गए। जब वो पहली नौकरी के दौरान सेना में शामिल हुए तब उनके मन में हॉकी के प्रति कोई विशेष दिलचस्पी नहीं थी। ध्यानचंद को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करने का श्रेय रेजीमेंट के एक सूबेदार बाला तिवारी को जाता है। 
भारत के महान खिलाड़ी ध्यानचंद ने तीन ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया और तीनों बार देश को स्वर्ण पदक दिलाया। ध्यानचंद से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा ये है कि हॉलैंड में एक मैच के दौरान हॉकी में चुंबक होने की आशंका में उनकी स्टिक तोड़कर देखी गई वहीं  जापान में एक मैच के दौरान उनकी स्टिक में गोंद लगे होने की बात भी कही गई। ध्यानचंद ने हॉकी में भारत को जिस मुक़ाम तक पहुंचाया वह मंजिल हासिल करना किसी के लिए आसान नहीं होगा। ध्यानचंद को 1956 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

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