समाज को जगाती कृति भारतीय खिलाड़ी बेटियां

बीते जमाने के प्रख्यात खेल-प्रशासक एन्थनी डि मेल्लो ने अपनी दुर्लभ किताब पोर्ट्रेट आफ इंडियन स्पोर्ट में भारत की महिला खिलाड़ियों की सम्भावनाओं पर लिखा है कि भारत का स्वास्थ्य और उसकी प्रगति उन माताओं पर निर्भर है जो खेलकूद में रुचि लेंगी। जो भावना सन् 1959 में भारतीय क्रिकेट के प्रारम्भिक तीस वर्ष तक कर्णधार रहे खेलप्रेमी एन्थनी डि मेल्लो ने व्यक्त की, उसी मशाल को लगभग सत्तर साल बाद खेलप्रेमी पत्रकार श्री श्रीप्रकाश शुक्ल दृढ़ता से थामे दिखाई देते हैं। श्रीप्रकाश शुक्लजी की किताब भारतीय खिलाड़ी बेटियां इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि वह क्रीड़ा-जगत के हजारों वर्ष के विमर्श को एक नया आयाम देती है। इस किताब में जितनी महिला खिलाड़ियों का वर्णन है, पिछले लगभग उतने ही वर्षों में ये खेल-तारिकायें भारतीय खेल आकाश में झिलमिलाई हैं।
हिन्दी में खेल पर रोचक पुस्तकों की संख्या बहुत ही कम है। स्वर्गीय योगराज थानी ने यह सिलसिला प्रारम्भ किया था। वे दिनमान के सम्पादक अज्ञेयजी के स्टेनो हुआ करते थे। अज्ञेयजी ने उनसे खेल पर लिखवाना शुरू किया था और वे खेल के लेखक-पत्रकार बन गये। श्रीप्रकाश शुक्लजी के लिए खेल पर लिखना प्राणवायु की तरह है। अंग्रेजी के सर नेविल कार्डस, जॉन आलर्ट व ई.डब्ल्यू. स्वानटन जैसे जगद्विख्यात खेल पत्रकारों ने अपने लेखन से खेल को श्रेष्ठ साहित्य के रूप में ढाला है। भारतीय भाषाओं में उस स्तर का काम बांगला भाषा में कुछ हद तक नजर आता है। श्रीप्रकाश शुक्लजी जैसे लेखक व पत्रकारों से हिन्दी के खेल-लेखन को ऊंचा स्थान व आदर प्राप्त हो रहा है।
श्रीप्रकाश शुक्लजी में खेल के प्रति वही समर्पण दिखाई देता है जो भारत की आजादी से पहले खेल-पत्रकार बॉबी तलयार खान में हुआ करता था। पहली बार उन्होंने ही मुम्बई के टाइम्स आफ इंडिया में खेल पर पूरा पृष्ठ निकालने का साहस किया था, अन्यथा खेल को तब के अखबारों में स्थान देने योग्य नहीं माना जाता था। इस बात का अध्ययन करना रोचक हो सकता है कि उस युग की खेल सितारा जीना सैण्डीसन, गुल नासिकवाला, मीना परान्दे, खानम हाजी व क्रिकेटर बी.डी. देवधर की तीन खिलाड़ी बेटियों सुमन, सुन्दर और तारा देवधर को समाचार माध्यमों ने कितना स्थान दिया था, कितना सराहा था। वैसे तो श्री शुक्लजी किसी भी विषय पर लिखने की सामर्थ्य रखते हैं लेकिन खेल पत्रकारिता के क्षेत्र में इनका कोई मुकाबला नहीं है। पिछले 10 साल से खेलों के समाचार-पत्र खेलपथ के प्रकाशन के साथ ही श्री शुक्लजी 30 साल से अधिक समय से विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अपने समसामयिक आलेखों से खिलाड़ियों और खेलप्रेमियों के चहेते बने हुए हैं। सच कहें तो खेल और खिलाड़ियों को लेकर शुक्लजी की शुचिता खेल पत्रकारिता को नया आयाम देती है। यह इनका खिलाड़ियों के प्रति समर्पण ही है कि आज इन्हें हजारों अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी न केवल जानते हैं बल्कि इनके लेखन को सराहते हैं। खेल पत्रकारिता के इनके जुनून को देखकर कभी-कभी लगता है कि आखिर शुक्लजी सोते भी हैं या नहीं। 
श्रीप्रकाश शुक्लजी से जुड़े हुये हमें ढाई दशक से अधिक हो गये। इस अवधि में हमने निकट से देखा है कि अनगिनत उभरती खेल-प्रतिभाओं को इनके लेखन से प्रोत्साहन प्राप्त हुआ है। सराहना ही प्रतिभाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। इस दृष्टि से श्रीप्रकाश शुक्लजी की पुस्तक भारतीय खिलाड़ी बेटियां मील का पत्थर सिद्ध होगी, ऐसी आशा करते हैं।
-जयंत सिंह तोमर
विभागाध्यक्ष पत्रकारिता एवं जनसंचार
आई.टी.एम. विश्वविद्यालय, ग्वालियर (म.प्र.)

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