नेशनल वेटलिफ्टर परिवार के भरण-पोषण को मोहताज

महिला वेटलिफ्टर वी. कामाक्षी की दुखद दास्तां
भारतीय भारोत्तोलक महासंघ के टाल-मटोल से नहीं मिली नौकर

श्रीप्रकाश शुक्ला
ग्वालियर।
खेल मंचों से राजनीतिज्ञ और खेलनहार खिलाड़ियों की भलाई के लाख कसीदे गढ़ते हों लेकिन मुल्क में खेलों और खिलाड़ियों की स्थिति आज भी पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे होगे खराब को ही चरितार्थ करती दिख रही है। जिला, राज्य यहां तक कि नेशनल स्तर पर वेटलिफ्टिंग में पदकों का खजाना जुटाने वाली केरल की महिला वेटलिफ्टर वी. कामाक्षी की स्थिति तो कुछ ऐसा ही बयां कर रही है। केरल की जांबाज वेटलिफ्टर वी. कामाक्षी आज नौकरी के अभाव में दर-दर की ठोकरें खा रही है।
कहने को भारतीय भारोत्तोलक महासंघ के पदाधिकारियों ने कामाक्षी को कई बार नौकरी का भरोसा दिया लेकिन उसे नौकरी 43 साल की उम्र तक भी नसीब नहीं हुई। नौकरी की ख्वाहिश में वह केरल की बजाय कर्नाटक से भी खेली लेकिन वहां भी वह षड्यंत्र का शिकार हो गई। कर्नाटक में नेशनल प्लेयर को नौकरी मिली भी हैं लेकिन कामाक्षी को नौकरी की जगह आश्वासन ही मिलते रहे। आज वह अपने बच्चों के भरण-पोषण के लिए एक प्राइवेट स्कूल में टीचिंग कर रही है। वह प्रतिभाशाली वेटलिफ्टरों के कौशल को आज भी निखारना चाहती है लेकिन उसका कोई गाड फादर न होने की वजह से सब दूर से निराशा ही हाथ लग रही है।
20 मई, 1973 को केरल के पलक्काड जिले में वेणुगोपाल के घर जन्मी वी. कामाक्षी भी बचपन से सपने देखती थी कि वह भी देश के लिए खेलेगी और कर्णम मल्लेश्वरी की तरह मादरेवतन को ओलम्पिक मैडल दिलाएगी लेकिन पारिवारिक तंगहाली के चलते वह चार जूनियर नेशनल, तीन सीनियर नेशनल ही खेल सकी। 1992 में जब उसने कर्नाटक के लिए सीनियर नेशनल में कांस्य पदक जीता तो उम्मीदों को पर लगे लेकिन वह कर्नाटक वेटलिफ्टिंग एसोसिएशन के प्रपंच का शिकार हो गई। अपने खेल को आगे जारी रखने के लिए उसे नौकरी की दरकार थी। उसने कर्नाटक वेटलिफ्टिंग एसोसिएशन के पदाधिकारियों के कहने पर ही केरल को छोड़ कर्नाटक का दामन थामा था। उन दिनों उसका देश की नामचीन महिला वेटलिफ्टरों में शुमार था। वह नीलम लक्ष्मी, रचिता, नियोती की ही तरह इस खेल में जलवा दिखा रही थी। तब हर कोई मानता था कि कामाक्षी में बला का पावर है। नीलम लक्ष्मी, रचिता, नियोती को तो नौकरी मिल गई लेकिन उसे सिर्फ निराशा हाथ लगी।
बीए, बीएड शिक्षाधारी कामाक्षी नौकरी न मिलने से अब पूरी तरह से टूट चुकी है। कामाक्षी ने दूरभाष पर हुई बातचीत में बताया कि कर्नाटक से मिली निराशा के बाद वह वापस केरल लौट आई। वह एनआईएस करना चाहती थी लेकिन पैसा न होने के चलते उसका यह सपना भी चूर-चूर हो गया। शादी हुई। उसके पति एक प्राइवेट कम्पनी में काम करते हैं। अब उसके एक बेटा और एक बेटी है। जीवन-यापन के लिए उसने मेर्सी कालेज पलक्काड जहां से उड़न परी पी.टी. ऊषा पढ़ी हैं, में बतौर पावर लिफ्टिंग कोच न केवल कोचिंग दी बल्कि इण्टर यूनिवर्सिटी में इस कालेज को चैम्पियन आफ द चैम्पियन भी बनाया। पारिवारिक उदरपूर्ति की खातिर उसने दर्जनों जगह कोचिंग दी लेकिन नौकरी के नाम पर हर जगह से उसे निराश होना पड़ा।
1992 में 25वीं कर्नाटका स्टेट वेटलिफ्टिंग चैम्पियनशिप के 75 किलोग्राम भारवर्ग की रिकार्डधारी कामाक्षी बच्चों को खिलाड़ी बनाने के सवाल पर बेहद दुखी मन से कहती हैं कि खेलों में जो कुछ उसके साथ हुआ वह नहीं चाहती कि वैसा ही उसके बच्चों के साथ भी हो। कामाक्षी का बेटा 11वीं और बेटी आठवीं कक्षा में पढ़ रही है।

रिलेटेड पोस्ट्स