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यूपी में खेल निदेशालय और ठेकेदारों के बीच मिलीभगत का खेल शुरू
खेलपथ संवाद
लखनऊ। ठेकाप्रथा से खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दिलाने के खेल निदेशालय लखनऊ के प्रयासों को अभी से पलीता लगना शुरू हो गया है। सूचना अधिकार के तहत प्रशिक्षकों संजय गुप्ता जूडो कोच, विजय पाठक टेनिस कोच लखनऊ, मीनाक्षी रानी गौड़ वेटलिफ्टिंग कोच, रिजवान अहमद ताइक्वांडो कोच लखनऊ, संजूरानी कबड्डी कोच, मोहनी चौधरी हॉकी कोच, शकील अहमद कबड्डी कोच, मोहम्मद तौहिद हैंडबाल कोच तथा सैयद वासिफ हुसैन आब्दी वेटलिफ्टिंग कोच के सम्बन्ध में मांगी गई जानकारी में खेल निदेशालय द्वारा जिस तरह गोलमोल जवाब दिए गए हैं, उनसे स्पष्ट हो गया है कि खेल निदेशालय के आलाधिकारियों के पास ठेकेदारों के इशारों पर नाचने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है।
सवाल यह उठता है कि प्रशिक्षकों के दस्तावेजों की जांच करने के बाद ही जब उन्हें सेवा में लिया जा रहा है तो फिर उनके दस्तावेजों की एक प्रति खेल निदेशालय के पास क्यों नहीं है? दरअसल, प्रशिक्षकों द्वारा अपने ही जिले में रहने की खातिर निवास प्रमाण पत्रों में गोलमाल किया गया है। यह सब खेल निदेशालय की मिलीभगत के बिना कैसे सम्भव है। खेल प्रशिक्षकों की उपस्थिति पर खेल निदेशालय द्वारा जिस तरह के गोलमोल जवाब दिए गए हैं वह भी जांच का विषय है।
जब उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कोविड-19 महामारी के दृष्टिगत तरणताल बंद हैं तो फिर तैराकी प्रशिक्षक क्यों? खेल निदेशालय द्वारा यह कहना कि प्रशिक्षकों द्वारा व्यक्तिगत शपथ-पत्र की जानकारी देने से मना किया गया है, यह बात भी समझ से परे है। खेल निदेशालय को प्रत्येक प्रशिक्षक की जानकारी रखना जरूरी है क्योंकि पारदर्शिता के अभाव में गलत लोगों के आने से इंकार नहीं किया जा सकता। कुल मिलाकर खेल निदेशालय अपनी नाक बचाने की खातिर आधी-अधूरी जानकारी ही दे रहा है जोकि जन सूचना अधिकार अधिनियम-2005 का उल्लंघन है।