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मां के संस्कार पर गए बैडमिंटन खिलाड़ी बने मिस टेस्ट के दोषी काश आज मां होतीं तो यह स्वर्ण पदक उनके गले में डाल देता खेलपथ संवाद नई दिल्ली। पैरा शटलर प्रमोद भगत के मुंह से छूटते ही निकलता है कि काश आज मां होती तो यह स्वर्ण पदक उनके गले में डाल देता। मां दुनिया छोड़ रही थीं लेकिन स्वर्ग सिधारने से पहले उन्होंने टोक्यो में स्वर्ण जीतने का आशीर्वाद दिया था। प्रमोद खुलासा करते हैं कि पैरालम्पिक से कुछ माह पहले मां के चले जाने ने उन्हें बुरी तरह तोड़ दिया था। एक ओर उनकी मां का देहांत हो गया था ऊपर से उनके संस्कार में शामिल होने के कारण उन्हें व्हेयर अबाउट (डोप टेस्टिंग के लिए दिए जाने वाला पता) का दोषी करार दिया गया था। लखनऊ में पीछे से वर्ल्ड बैडमिंटन फेडरेशन की टीम उनका सैम्पल लेने आई थी, लेकिन वह मां के संस्कार में थे। लखनऊ में दिए गए पते पर नहीं मिलने के कारण बीडब्लूएफ ने उनका मिस टेस्ट करार दिया। कोच गौरव खन्ना के मुताबिक प्रमोद के लिए यह मुसीबत का वक्त था। उन्होंने बीडब्लूएफ से गुहार लगाई ऐसा नहीं करें, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। नतीजा यह निकला कि प्रमोद पटना से वापस आने के बाद फिर लखनऊ नहीं छोड़ा और तैयारियों में जुट गए। अगर उनके दो और मिस टेस्ट घोषित कर दिए जाते तो फिर वह पैरालम्पिक नहीं खेल सकते। लेकिन इस घटना से पूरी टीम ने सबक लिया और व्हेयर अबाउट के लिए दिए गए पते पर रहे। प्रमोद के मुताबिक 2005 में उनके पिता चले गए थे उसके बाद उनकी मां कुसुम देवी उनका सहारा बनीं। उस समय मां पटना में थीं। उनके पास सूचना आई कि वह बीमार हैं उनकी हालत गंभीर है। मां के पास सिर्फ एक भाई था। वह लखनऊ से तुरंत पटना चले गए। लेकिन मां नहीं बचीं। वह बुरी तरह टूटे हुए थे। लेकिन कोच ने काफी समझाया और मां की यादों के सहारे तैयारियों में जुट गए। यही कारण है कि वह यह स्वर्ण अपनी मां और पिता को समर्पित करते हैं। पिता ने उन्हें रैकेट दिलाने के लिए काफी त्याग किया।