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सुहास एलवाई से है पदक की उम्मीद पिता के भरे आत्मविश्वास से बने आईएएस बैडमिंटन ही इनके लिए ध्यान और साधना है खेलपथ संवाद नई दिल्ली। प्रशासनिक सेवा और खेल का दूर-दूर तक वास्ता नहीं रहा है, लेकिन आईएएस सुहास एलवाई ने कई मिथकों की तरह इस मिथक को भी झुठला दिया है। वह देश के पहले ब्यूरोक्रेट हैं जो पैरालम्पिक में देश का प्रतिनिधत्व करने जा रहे हैं। गौतमबुद्ध नगर के जिलाधिकारी और टोक्यो पैरालम्पिक में खेलने जा रही सात सदस्यीय पैरा बैडमिंटन टीम के सदस्य सुहास ने खुलासा किया कि बचपन में उनके पिता ने उनमें ऐसा कूट-कूटकर आत्मविश्वास भरा कि इंजीनियरिंग से आईएएस और यहां से पैरा शटलर के रास्ते खुलते गए। सुहास के मु्ताबिक उन्हें मेडीटेशन की जरूरत नहीं पड़ती। जब वह कोर्ट पर होते हैं तो उन्हें अध्यात्म का अनुभव होता है। बैडमिंटन ही उनके लिए ध्यान और साधना है। जिलाधिकारी जैैसे पद की अहम जिम्मेदारी होने के बावजूद सुहास बैडमिंटन के लिए समय निकाल लेते हैं। वह कहते हैं कि दुुनिया में लोगों के पास 24 घंटे ही हैं। इनमें कई सारे काम कर लेते हैं और कुछ कहते हैं कि उनके पास समय नहीं है। किसी चीज के प्रति दीवानापन है तो उसे करने में तकलीफ नहीं होती। इसी तरह बैडमिंटन उनके लिए एक आध्यात्मिक अनुभव है। काम के साथ तीन घंटे की मेडीटेशन की बात को बड़ा नहीं माना जाएगा, लेकिन काम के साथ तीन घंटे बैडमिंटन खेलना लोगों को बड़ा लगेगा। बैडमिंटन उनके लिए मेडीटेशन है। जब वह खेलते हैं तो अध्यात्म का अनुभव करते हैं जिसमें किस तरह एक-एक प्वाइंट के लिए डूबना होता है। अगर किसी चीज को करने की चाहत है तो सामंजस्य बिठाया जा सकता है। सुहास के मुताबिक उनके लिए पैरा खिलाड़ियों के महाकुंभ में देश का प्रतिनिधित्व करना गर्व और गौरव की बात है। उन्होंने सपने में नहीं सोचा था कि उनकी जिंदगी में यह दिन आएगा। जैसे बचपन में किसी विद्यार्थी से पूछा जाए कि वह ओलम्पिक या पैरालम्पिक खेलेगा। इसी तरह कोई यह नहीं कहेगा कि वह कलेक्टर बनेगा बनेगा, लेकिन भगवान की उनके प्रति बहुत मेहरबानी रही है। सुहास कहते हैं कि यह उनके पिता जी का आशीर्वाद है, जिन्होंने बचपन में उनके अंदर आत्मविश्वास कूट-कूट कर भरा। यह उनका भरा हुआ आत्मविश्वास और भगवान की कृपा है कि वह पहले आईएएस बने और अब देश के लिए पैरालम्पिक खेलने जा रहे हैं। 2004 में इंजीनियरिंग कॉलेज से निकलने के बाद 2005 में पिताजी का देहांत हो गया। बचपन में जो पिता जी ने दिया वही काम आया। कहते हैं कि पौधे को जिस तरह सीचेंगे वह उसी तरह बड़ा होगा। पिता जी ने उनके लिए यही काम किया। पढ़ाई हो या फिर बैडमिंटन सुहास के लिए इनकी तैयारियों का सही समय रात रही है। सुहास खुलासा करते हैं कि वह हमेशा बैडमिंटन की तैयारियां रात में ही करते आए हैं। सुहास कहते हैं कि कम्पटीशन की तैयारी के लिए कितने घंटे की पढ़ाई का कोई एक उत्तर नहींं हो सकता। वह समझाते हैं कि घंटे महत्वपूर्ण नहीं हैं। वह अपना उदाहरण देते हैं कि जब वह आईएएस की तैयारी कर रहे थे बेंगलूरू में साथ में सॉफ्टवेयर मल्टीनेशनल कम्पनी में भी काम कर रहे थे। दिन में काम और रात में वह तैयारी करते थे। लेकिन लोग कहते थे कि आईएएस के लिए फुल टाइम तैयारी करनी होगी। दरअसल ये समाज के मिथक हैं। हां, अगर आप दुनिया के सफलतम व्यक्तियों को लेंगे तो उनमें एक चीज समान मिलेगी और वह है अनुशासन। उन्होंने इसका हमेशा पालन किया। हालांकि प्रशासनिक जिम्मेदारी हमेशा उनकी प्राथमिकता में रहती है, लेकिन वह बैडमिंटन के लिए समय निकाल ही लेते हैं। वह रात में प्रैक्टिस पसंद करते हैं। सारा काम निपटाने के बाद कभी रात में 10 या फिर 11 बजे शुरूआत कर दी और यह सिलसिला देर रात तक चलता रहता है। सुहास के मुताबिक पहले वह नोएडा में प्रैक्टिस कर रहे थे, पैरालम्पिक का टिकट मिलने के अगले दिन ही उन्होंने ग्रेटर नोएडा की गोपीचंद अकादमी को प्रैक्टिस के लिए चुन लिया। दरअसल वह कोर्ट पर ड्रिफ्ट (बहाव) से निपटने के लिए टोक्यो जैसे बड़े स्टेडियम में प्रैक्टिस करना चाहते थे। ठीक उसी तरह जैसे पीवी सिंधू ने हैदराबाद के गाउचीबॉउली स्टेडियम में ड्रिफ्ट से तालमेल बिठाने के लिए बड़े स्टेडियम में तैयारी की थी। ग्रेटर नोएडा में 15 कोर्ट का बड़ा हॉल है। वहां एसी चल रहा होता है और ड्रिफ्ट से निपटने की प्रैक्टिस हो जाती है। सुहास के मुताबिक टोक्यो के जिस योयोगी स्टेडियम में उनके बैडमिंटन के मुकाबले होने हैं वहां वह 2019 में जापान ओपन में खेल चुके हैं। यहां उन्होंने एकल में कांस्य पदक जीता था। यह ओलम्पिक का रिहर्सल टूर्नामेंट था। यहीं उन्होंने स्टेडियम देखा था और यह काफी बड़ा है। यहां खेलने का सिर्फ उन्हें ही नहीं बल्कि पूरी भारतीय टीम को काफी फायदा मिलेगा। सुहास कहते हैं कि वहां खेलने का अनुभव पैरालम्पिक में काम आएगा। सुहास पैरा बैडमिंटन में आने की कहानी का खुलासा करते हुए कहते हैं कि उनका पेशेवर बैडमिंटन खेलने का मन नहीं था। 2016 में वह आजमगढ़ के डीएम थे। उस दौरान एक राज्यस्तरीय टूर्नामेंट के लिए कोच गौरव खन्ना वहां आए थे। उन्हें इस टूर्नामेंट का उद्घाटन करना था। वह बैडमिंटन पहले से ही खेलते थे। सुबह के समय में उन्होंने सोचा राज्यस्तरीय खिलाड़ियों के साथ खेला जाए। उन्होंने कुछ खिलाड़ियों को हरा दिया तो गौरव ने कहा कि आप पैरालम्पिक के लिए क्यों नहीं खेलते। उस वक्त उन्होंने मना कर दिया। चार-पांच महीने बाद उन्होंने गौरव को फोन कर पैरा बैडमिंटन के बारे में पूछा। नवम्बर 2016 में बीजिंग में एशियन चैम्पियनशिप होने वाली थी। गौरव ने कहा आपने सही समय पर फोन किया है। तैयारी करते हैं। फिर वह चीन गए और वहां पहले ही टूर्नामेंट में खिताब जीत लिया। आईएएस अकादमी में रहे बैडमिंटन, स्क्वैश के उपविजेता सुहास खुलासा करते हैं कि वह बैडमिंटन कॉलेज के दिनों से पहले से भी रोजाना खेलते आ रहे हैं। जब वह 2007 में आईएएस अकादमी मसूरी गए तो वहां साई कोच एमएम पांडेय मिले। अकादमी में वह बैडमिंटन और स्क्वैश के उप विजेता रहे। उस दौरान एमएम पांडेय ने उन्हें एक दिन कोर्ट पर बुलाया और इधर-उधर शटल देकर बुरी तरह नचाया। वह थक गए तो कोच ने कहा कि अपने पर घमंड मत करो। उन्हें अभी ट्रेनिंग की जरूरत है। तब उन्होंने बैडमिंटन की कोचिंग दी और उसके बाद गौरव खन्ना उन्हें पैरा बैडमिंटन में लाने के लिए जिम्मेदार बने। अब इंडोनेशियाई कोच करा रहे तैयारी सुहास गोपीचंद अकादमी में पैरालम्पिक के लिए इंडोनेशियाई कोच दूथरी गिगी बेलात्मा के संरक्षण में तैयारियां कर रहे हैं। सुहास के मुताबिक बेलात्मा बहुत अच्छे कोच हैं। ये गेम को काफी तेज कराते हैं। बेलात्मा इंडोनेशियाई एंथोनी गिंटिंग और जोनाथन क्रिस्टी के साथ खेले हुए हैं। वह खुद अच्छे खिलाड़ी हैं। सुहास ने लक्ष्य बनाया है कि हर एक अंक और मैच को खेलना है। वह अपने बिल्कुल ठंडा रखना चाहते हैं। पदक के बारे में बिल्कुल नहीं सोच रहे। वह अपना प्राकृतिक गेम खेलना चाहते हैं ज्यादा अपने ऊपर दबाव नहीं रखना चाहते हैं।