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पैरों को बनाया अपनी ताकत पैरालम्पिक की ताइक्वांडो स्पर्धा में खेलने वाली देश की पहली खिलाड़ी खेलपथ संवाद नई दिल्ली। भले ही अरुणा तंवर के दोनों हाथ छोटे और इनमें तीन-तीन उंगलियां हैं पर उन्होंने अपने हाथों को कभी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। बचपन में जरूर उन्हें दुख होता था पर अब खुद पर फख्र होता है। हो भी क्यों न अखिर 21 साल की यह ताइक्वांडो खिलाड़ी दूसरी लड़कियों के लिए मिसाल जो बन गई है। अरुणा (49 किलोग्राम) पैरालम्पिक में पहली बार शामिल किए गए ताईक्वांडो खेल में प्रतिनिधित्वि करने वाली देश की पहली और एकमात्र खिलाड़ी हैं। हरियाणा के भिवानी की अरुणा के पिता नरेश एक टैक्सी ड्राइवर हैं। पर बिटिया को कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी। वह कहते हैं अरुणा हमारे लिए बहुत स्पेशल थी। हमारी पहली संतान थी। हालांकि गांव वाले ताने देते थे कि एक तो बिटिया ऊपर से दिव्यांग। पर समय के साथ सब बदलता चला गया। जो कभी ताने देते थे अब वही उसकी प्रशंसा करते हैं। हमें अरुणा पर नाज है। अब लोग मुझे अरुणा के पापा के नाम से जानते हैं। एक पिता के लिए इससे बड़ी बात क्या हो सकती है। ताईक्वांडो संघ के महासचिव सुखदेव कहते हैं कि वह कभी किसी टूर्नामेंट से खाली नहीं लौटी है। हमें पूरी उम्मीद है कि वह टोक्यो से पदक लेकर ही लौटेगी। रोहतक में कोच स्वराज सिंह की देखरेख में अभ्यास कर रही अरुणा 27 अगस्त को टोक्यो रवाना होगी। अरुणा के साथ उनके निजी कोच नहीं जा पाएंगे। अरुणा ने पांचवीं कक्षा से जूडो-कराटे से शुरुआत की थी। पांच साल पहले 2016 में उन्होंने पैरा ताईक्वांडो शुरू कर दिया। पहली बार 2018 में एशियाई पैरा ताईक्वांडो चैम्पियनशिप में रजत पदक जीता था उसके बाद से पीछे मुड़कर नहीं देखा। दुनिया की चौथे नम्बर की खिलाड़ी अरुणा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक स्वर्ण, दो रजत व दो कांस्य सहित कुल पांच पदक जीते हैं। चंडीगढ़ विश्वविद्यालय से बीपीएड कर रही अरुणा पांच बार की राष्ट्रीय चैम्पियन है।