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मुझे मंदिर जाना बहुत पसंद है नई दिल्ली। टोक्यो ओलम्पिक में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधू इन दिनों अपने घर पर आराम कर रही हैं। वह ओलम्पिक में दो पदक जीतने वाली दूसरी खिलाड़ी हैं और 15 अगस्त को दिल्ली आने की तैयारी कर रही हैं। उन्होंने कहा कि मुझे मंदिर जाना पसंद है और जब मौका मिलता है तो मैं ऐसा करती हूं। विश्व चैम्पियनशिप से पदक लेकर आना, वो भी पांच बार मायने रखता है। एशियन गेम्स में, कामनवेल्थ गेम्स में और ओलम्पिक में दूसरी बार पदक लेकर आना मेरे लिए गर्व की बात है। मैं बहुत खुश हूं क्योंकि हर साल हर समय मैं अपने खेल में निखार लाती गई और अपने खेल में बहुत सीखी हूं। हार-जीत तो लगी रहती है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हम कुछ न कुछ सीखते रहते हैं और यह बहुत महत्वपूर्ण है। अभी मैं आराम कर रही हूं और इस पल का आनंद ले रही हूं। इसके बाद टूर्नामेंट शुरू होने वाले हैं और उसके लिए तैयारी करना है। अभी बहुत टूर्नामेंट हैं और अगले साल एशियन गेम्स व कामनवेल्थ गेम्स हैं तो उसके लिए तैयारी करनी हैं। मैं सभी एथलीटों का धन्यवाद करती हूं जो पदक लेकर आए हैं और जो भी अच्छा खेले थे। हॉकी खिलाड़ी खासकर कई वर्षों के बाद पुरुष टीम कांस्य पदक लेकर आए थे। मैं महिला टीम को भी बधाई देती हूं, वे सेमीफाइनल तक पहुंचीं। उन्होंने बहुत मेहनत भी की थी लेकिन हार-जीत तो होती रहती है, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि हमें अपना 100 प्रतिशत देना है। मुझे विश्वास है कि वो लोग जान लगाकर खेले थे, लेकिन बस पदक से चूक गए। सब एथलीट ने बहुत अच्छा खेला था। पदक जीतना और हारना, ये होता रहता है। गोल्फ में भी अदिति अशोक चौथे स्थान पर रही थी। वह उनका दिन नहीं था। मुझे लगता है कि अपने देश का प्रतिनिधित्व करना ही बड़ी बात है इसलिए मैं प्रत्येक खिलाड़ी को बधाई देती हूं। नीरज ने तो माहौल ही बदल दिया। मैं बाहर जा रही हूं। जो मन कर रहा है वह खाना खा रही हूं। मम्मी घर पर बहुत खाना बनाती हैं। परिवार के साथ समय व्यतीत कर रही हूं। मैं कभी-कभी मंदिर भी जाती हूं। अभी मैं मंदिर भी गई थी और पूजा भी की। मैं अक्सर मंदिर जाती रहती हूं। तिरुपति जाना मुझे पसंद है। अभी जो वीडियो वायरल हुआ था वह केरल के मंदिर का था। मैं सभी भगवान में विश्वास रखती हूं और सभी भगवान की पूजा करती हूं। भगवान का आशीर्वाद तो हमेशा रहना चाहिए। मैं पदक लेकर आई हूं तो मैं बहुत खुश हूं। मुझे जब भी मौका मिलता है मंदिर जाती हूं। सिंधू कहती हैं कि हमारा खेल कुछ अलग रहता है। हम साथ में छह-सात रैकेट लेकर जाते हैं। खेलते समय वह स्ट्रिंग चला (तार टूटना) जाता है कभी-कभी, तो दूसरा रैकेट लेकर खेलना पड़ता है। ऐसे में कोई खास रैकेट तो नही है लेकिन पदक जीतने के बाद मैं हमेशा वह रैकेट रख लेती हूं। ताई के खिलाफ सेमीफाइनल मुकाबले पर सिंधू कहती हैं कि वह बहुत ही अच्छी खिलाड़ी हैं। मैं उनके खिलाफ तैयार थी। हम दोनों एक-दूसरे के खिलाफ हमेशा से 100 प्रतिशत देते हैं। ओलम्पिक से पहले हम दोनों शीर्ष फार्म में थे। पहला गेम बहुत अच्छा था। 18-18 से बराबरी पर था और शायद उसका शटल नेट से लगकर मेरी तरफ गिर गया। वह किस्मत वाली थी। मैंने सोचा कि शायद मैं पहला गेम जीतती तो दूसरा गेम बहुत अलग होता, लेकिन बस वह उनका दिन था। मैंने भी 100 प्रतिशत कोशिश की थी लेकिन वह मेरा दिन नहीं था। 18-18 की बराबरी पर अगर मैं दो अंक ले लेती तो कुछ अलग होता। ऐसा कुछ नहीं रहता। विश्व के टाप-10 खिलाड़ी उच्च स्तर के होते हैं। ओलम्पिक में सब लोग शीर्ष फार्म में रहते हैं और अपना 100 प्रतिशत देते हैं। बहुत कुछ इस बात पर तय होता है कि उस दिन कौन अच्छा खेलते हैं और कौन नहीं। ऐसा कुछ नहीं है कि एक खिलाड़ी अच्छा खेलता है और एक पर दबाव रहता है। दबाव तो हर किसी पर रहता है। प्रधानमंत्री मोदी को लेकर इनकी राय है कि मोदी जी ने ओलम्पिक से जाने से पहले प्रत्येक खिलाड़ी का बहुत हौसला बढ़ाया था और मैं इसके लिए उनका आभार प्रकट करती हूं। उन्होंने मेरे माता-पिता से भी बात की थी। मुझे बोला भी था कि पदक लेकर आने के बाद आइसक्रीम खाएंगे। पदक आने के बाद भी उन्होंने फोन करके बधाई दी थी। खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी बधाई दी थी। 15 अगस्त को मोदी जी से मिलने के लिए हम दिल्ली जाएंगे। उम्मीद है कि हम आइसक्रीम खाएंगे। मैं पार्क के साथ एक साल से ज्यादा समय से अभ्यास कर रही हूं। वह बहुत उत्साह बढ़ाते हैं। उन्होंने हिंदी में यह सीखा था कि आराम से। जब मैं खेलती हूं और अंक जा रहे होते हैं तो वो बोलते हैं कि आराम से, रिलेक्स। ऐसा बोलते रहते हैं। उन्होंने मेरे साथ बहुत मेहनत की थी। उनका भी एक सपना था कि ओलम्पिक से पदक लेकर आना है और वह सपना भी पूरा हुआ। मैं उनका आभार व्यक्त करती हूं। कोरोना के समय में उन्होंने मेरा गेम में काफी सुधार किया था। स्किल और तकनीक के ऊपर बहुत काम किया था। मैं उनका धन्यवाद करती हूं। खुशी कि बात है कि हम दोनों ने मेहनत करके देश के लिए पदक लेकर आए। हर कोच और खिलाड़ी की अलग-अलग स्किल और तकनीक रहती है। हर कोच अलग सोचता है। यह अच्छा है कि अलग-अलग तरह के कोचों से अलग-अलग तरह की स्किल और तकनीक सीखने को मिलती है। जब से मैंने बैडमिंटन शुरू किया था तब पहले दिन से अभी तक बहुत कोच थे। मूल्यो भी था, किम भी थे। अब पार्क हैं। तो बहुत कोच थे। मैं हर कोच का धन्यवाद करती हूं कि मैं उनसे कुछ न कुछ सीखी जरूर हूं। तकनीक, स्किल, मानसिक और शारीरिक रूप से बहुत कुछ सीखा था। मैं बहुत मेहनत करूंगी और उम्मीद है कि मैं पेरिस में भी पदक लेकर आऊंगी। उससे पहले भी मुझे बहुत टूर्नामेंट में खेलना है। अक्टूबर से कुछ टूर्नामेंट शुरू होने वाले हैं। अगले साल कामनवेल्थ गेम्स और एशियन गेम्स हैं, उसमें भी अच्छा करूंगी। -अभिषेक त्रिपाठी