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पहलवानी में इतिहास और उनके बीच एक जीत की दूरी पिता राकेश ने गरीबी और मुश्किलों को पटखनी दी खेलपथ संवाद नई दिल्ली। टोक्यो ओलम्पिक में 13वें दिन रवि उदय हुआ। किसान का पहलवान बेटा इतिहास से बस एक जीत दूर है। भारतीय पहलवान रवि कुमार दहिया ओलम्पिक के फाइनल में पहुंच गए हैं। इसके साथ ही भारत का टोक्यो ओलम्पिक में चौथा पदक तय कर हो गया है। रवि ने 57 किलोग्राम वेट कैटेगरी के अंतिम 4 मुकाबले में कजाकिस्तान के नूरीस्लाम सनायेव को हराया। इस मैच में जीत हासिल करते ही उन्होंने स्वर्ण या चांदी में से एक पदक पक्का कर लिया है। रवि ओलम्पिक के फाइनल में पहुंचने वाले अब तक के सिर्फ दूसरे पहलवान हैं। उनसे पहले सुशील कुमार 2012 में फाइनल में पहुंचे थे। क्वार्टर फाइनल मुकाबले से एक दिन पहले रवि ने अपने छोटे भाई और चचेरे भाई के साथ वीडियो कॉल पर बात करते हुए कहा था, 'ऐसा खेल दिखाऊंगा कि दुनिया देखती रह जाएगी'। रवि का इस मुकाम तक पहुंचने का सफर आसान नहीं रहा है। उन्होंने और उनके पिता ने इसके लिए कई सालों तक काफी संघर्ष किया है। उनके गांव वालों को उम्मीद है कि रवि की कामयाबी से सरकार की नजर वहां के खराब हालात पर जाएगी और स्थिति में सुधार होगा। रवि कुमार हरियाणा के सोनीपत जिले के नाहरी गांव के रहने वाले हैं। इस गांव से उनसे पहले महावीर सिंह (1980 और 1984 में) और अमित दहिया (2012 में) ओलम्पिक में देश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, लेकिन इन दोनों ने मेडल जीतने में कामयाबी हासिल नहीं की थी। रवि मैट पर कुश्ती लड़ें और जीतें इसके लिए उनके पिता राकेश कुमार दहिया ने असल जीवन में गरीबी और मुश्किलों से दो-दो हाथ किए हैं। पट्टे (किराए) के खेतों पर मेहनत करने वाले राकेश हर रोज नाहरी से 60 किलोमीटर दूर दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में बेटे के लिए दूध और मक्खन लेकर जाते थे। इसके लिए वे रोज सुबह 3.30 बजे जागते और पांच किलोमीटर पैदल चलकर रेलवे स्टेशन पहुंचते। ट्रेन से आजादपुर उतरते और फिर दो किलोमीटर दूरी तय कर छत्रसाल स्टेडियम जाते थे। जब रवि को जमीन पर गिरा मक्खन खाना पड़ा था लौटने के बाद राकेश खेतों में काम करते। कोरोना के कारण लगाए गए लॉकडाउन से पहले लगातार 12 वर्षों तक उनकी यह दिनचर्या रही। राकेश ने सुनिश्चित किया कि उनका बेटा उनके त्याग का सम्मान करना सीखे। उन्होंने कहा, 'एक बार उसकी मां ने उसके लिए मक्खन बनाया और मैं उसे कटोरे में ले गया था। रवि ने पानी हटाने के लिए सारा मक्खन मैदान पर गिरा दिया। मैंने उससे कहा कि हम बेहद मुश्किलों में उसके लिए अच्छा आहार जुटा पाते हैं और उसे लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। मैंने उससे कहा कि वह उसे बेकार न जाने दे उसे मैदान से उठाकर मक्खन खाना होगा।' रवि जीतेंगे तो गांव में सुधरेगी बिजली की स्थिति रवि के गांव में अब भी दिन में दो-चार घंटे ही बिजली आ पाती है। पानी की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। रवि के गांव वालों को उम्मीद है कि अगर रवि ओलम्पिक मेडल जीतते हैं तो बिजली-पानी की स्थिति में सुधार होगा। उनसे पहले पहलवान महावीर सिंह ने गांव में पशु चिकित्सालय खुलवाया था। महावीर सिंह के ओलम्पिक में दो बार देश का प्रतिनिधित्व करने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी देवीलाल ने उनसे उनकी इच्छा के बारे में पूछा तो उन्होंने गांव में पशु चिकित्सालय खोलने का आग्रह किया था। मुख्यमंत्री ने इस पर अमल किया और पशु चिकित्सालय बन गया। रवि ने कुश्ती के दांवपेंच द्रोणाचार्य अवार्डी सतपाल सिंह से सीखे हैं। सतपाल डबल ओलम्पिक मेडलिस्ट सुशील कुमार के कोच भी रहे हैं। रवि 10 साल की उम्र से ही सतपाल से ट्रेनिंग ले रहे हैं। रवि कुमार 2019 में नूर सुल्तान में हुई वर्ल्ड चैम्पियनशिप के कांस्य पदक विजेता हैं। इसके अलावा उन्होंने एशियन चैम्पियनशिप में दो गोल्ड मेडल भी अपने नाम किए हैं। उन्होंने 2015 में वर्ल्ड जूनियर रेसलिंग चैम्पियनशिप में सिल्वर जीता था।