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इलाज के साथ की ओलम्पिक की तैयारी पिता ने कहा बेटा न होने का कोई मलाल नहीं हेमंत रस्तोगी नई दिल्ली। कोरोना के चलते बीते वर्ष लॉकडाउन क्या लगा मानों लवलीना पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। पहले वह खुद संक्रमित हो गईं। 104 फॉरेनहाइट के तपते बुखार में उन्हें एनआईएस पटियाला से दिल्ली लाया गया। उसके बाद उनकी मां की तबियत खराब हो गई। उनका एक पैर राष्ट्रीय शिविर में और दूसरा गुवाहाटी में रहता था। डॉक्टरों ने कहा मां की दोनों किडनी खराब हो गई हैं। ट्रांसप्लांट के अलावा कोई चारा नहीं है। इस पर लवलीना ने खुद डोनर किडनी दान देने वाला ढूंढ़ा और अपने कैश अवार्ड की राशि लगाकर मां की कोलकाता में किडनी ट्रांसप्लांट कराई। मीराबाई की तरह लवलीना का भी मां से बेहद लगाव है। भारतीय समय के अनुसार सुबह साढ़े पांच बजे उन्होंने मां को फोन कर आशीर्वाद लिया। उनके पिता टिकेन भावुक होकर कहते हैं उन्हें कोई मलाल नहीं है कि उनके बेटा नहीं है। उनकी तीनों बेटियों ने बेटे से बढ़कर फर्ज निभाया है। लवलीना की दो बड़ी जुड़वां बहनें हैं। दोनों मुए थाई की चैम्पियन रही हैं। उन्हीं को देखकर लवलीना ने मुए थाई की, लेकिन 2012 में साई गुवहाटी के कोच पदम बोरो की नजर उन पर पड़ी और उन्होंने उसे बॉक्सिंग शुरू करा दी। टिकेन को याद है कि मां की तबियत खराब होने पर लवलीना कितना परेशान थी। उनकी किडनी बदलवाने में 25 लाख का खर्च आया जिसे लवलीना ने वर्ल्ड चैम्पियनशिप के पदक से जीते कैश अवार्ड से भरा। लवलीना भी कहती हैं कि वह आपरेशन वाले दिन कोलकाता नहीं जा पाई थीं, लेकिन अगले दिन मां से मिलने पहुंच गई थीं। 2012 की जूनियर राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में स्वर्ण जीतने के बाद राष्ट्रीय कोच द्रोणाचार्य अवार्डी शिव सिंह उसकी लम्बाई देखकर उन्हें राष्ट्रीय शिविर में ले आए। यहां लवलीना रिंग में खुलकर नहीं खेल पाती थी। कहीं न कहीं उनके मन में डर रहता था। यहीं उन्हें कोच संध्या गुरुंग का साथ मिला। संध्या ने मां की तरह उनका ख्याल रखा और उनके मन से डर को निकाल दिया। संध्या कहती हैं कि वह असली बॉक्सर तब बनी जब उसके मन से डर निकल गया। लवलीना ने खुद स्वीकार किया कि वह पहले ऐसी नहीं थी। पहले उसके मन में डर बैठा रहता था। (साभार अमर उजाला)