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जापान के ओलम्पिक अभियान में इनका एक अलग योगदान नई दिल्ली। खेल सद्भावना का सूचक माने जाते हैं लेकिन जब ये किसी की मुसीबत का सबब बन जाएं तो तकलीफ स्वाभाविक है। कोहेई जिन्नो कोई खिलाड़ी नहीं हैं लेकिन जापान के ओलम्पिक अभियान में उनका एक अलग योगदान है। यह वो शख्स है जिसे जापान की दो बार की ओलम्पिक मेजबानी में अपना घर खाली करना पड़ा ताकि वहां स्टेडियम का निर्माण हो सके। पहली बार 1964 में और फिर अब ओलम्पिक 2020 के लिए भी उन्हें 2016 में ऐसा करना पड़ा। जब 57 साल पहले उन्हें ऐसा करना पड़ा तो इस बात का गर्व था कि उनका घर टूटेगा लेकिन जापान का गौरव ओलंपिक के आयोजन से बढ़ेगा। इस बार जब 2013 में उन्हें फिर ऐसा ही करने को कहा गया तो वह अपने भाग्य को कोस रहे हैं। अब 87 साल के हो चुके कोहेई और उनकी पत्नी यसुको और दो बच्चों को कासुमिगाका क्षेत्र से घर खाली करना पड़ा जहां वे 50 साल से अधिक समय से रह रहे थे। 2013 में उन्हें नोटिस मिला और 2016 में उन्हें वह घर खाली करना पड़ा और 2018 में 84 साल की उम्र में यसुका का निधन हो गया। जिन्नो ने कहा कि वह वो जगह थी जहां अपनी जिंदगी का ज्यादातर समय जारा। अब वे पश्चिमी टोक्यो में बेटे के साथ रह रहे हैं। वो अब ओलंपिक को कोस रहे हैं, कहते हैं इतनी जल्दी फिर कराने की क्या जरूरत है। दो सौ परिवारों को घर खाली करना पड़ा है, इनमें ज्यादातर बुजुर्ग हैं। यह ठीक है कि दूसरी जगह आवास दिया गया लेकिन हमें दूसरी जगह बसने के लिए 1,70,000 हजार येन (1,500 डॉलर) दिए गए जबकि हमारा नौ हजार डॉलर खर्च हो गया। टोक्यो ओलंपिक समिति ने इस पर टिप्पणी से इनकार कर दिया है। उनका कहना है कि स्टेडियम जापान खेल परिषद (जेएससी) की जिम्मेदारी है। आवासीय परिसर खाली करना सरकार का काम है। जिन्नो नौ भाइयों में चौथे नंबर पर थे और परिवार के साथ कासुमिगाओका में रहते थे। द्वितीय विश्व युद्ध में उनका घर जल गया था। परिवार बीस मीटर दूर चला गया था। जहां जिन्नो तंबाकू की दुकान चलाने लगे। वो घर भी उन्हें खाली करना पड़ा। फिर उन्होंने कार साफ करने का काम शुरू कर दिया। फिर 1965 में उस परिसर में आ गए जिसे उन्हें 2016 में छोड़ना पड़ा। अब जिन्नो के घर के पास भव्य स्टेडियम और पार्क है जिसमें ओलंपिक के पांच छल्ले लगे हैं। लोग वहां आकर मुस्कुराते हैं और वो खुद जब आता है रुआंसा हो जाता है।