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2007 में छत्रसाल स्टेडियम में नहीं मिला था दाखिला नई दिल्ली। बजरंग पूनिया आज 65 किलोग्राम भारवर्ग में देश के ही नहीं, दुनिया के दिग्गज पहलवान हैं। टोक्यो ओलम्पिक में पदक के दावेदार बजरंग ने कभी खेल-खेल में पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए कुश्ती को चुन लिया था। पहलवान बजरंग पूनिया रियो में पदक की कमी टोक्यो ओलम्पिक में पूरा करना चाहते हैं। अखाड़े में उनके दांव-पेच ऐसे हैं कि प्रतिद्वंदी को जब तक कुछ समझ में आता है तब तक वह चित हो चुका होता है। इस बुलंदी पर वह यूं ही नहीं पहुंचे, बल्कि लंबा संघर्ष करना पड़ा। ग्रामीण स्तर के छोटे-छोटे दंगलों से होते हुए अंतरराष्ट्रीय मुकाम हासिल किया। बजरंग किसान परिवार से हैं। घर में दूध-घी की कोई कमी नहीं थी। जब वह छोटे थे और गांव में बच्चों की कुश्ती या कबड्डी प्रतियोगिता होती थी तब वह उनमें हिस्सा लेते थे, मगर कुश्ती उन्हें अधिक प्रिय थी। जब इस बात की जानकारी उनके पिता को हुई तो वह उन्हें कुश्ती का गुर सिखाने लगे। दंगलों में लड़ना शुरू किया। यहीं से कुश्ती का सफर शुरू हुआ। बजरंग के पिता ने गांव छारा में मास्टर विरेंद्र के अखाड़े में उन्हें छोड़ दिया। जहां पर पहली बार उन्होंने मैट पर कुश्ती का प्रशिक्षण लेना शुरू किया। बजरंग जब प्रशिक्षण ले रहे थे तब दिल्ली स्थित छत्रसाल स्टेडियम का बड़ा नाम था। अंतरराष्ट्रीय पहलवान सबसे अधिक यहीं से निकलते थे। बजरंग बताते हैं कि मैं वर्ष 2007 में जब छत्रसाल स्टेडियम पहुंचा और वहां कुश्ती का प्रशिक्षण लेने के लिए कहा तो महाबली सतपाल ने जगह खाली नहीं होने के कारण मुझे दाखिला देने से मना कर दिया। वर्ष 2008 में मैं दिल्ली में स्कूली राष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिता में हरियाणा की ओर से सब जूनियर वर्ग के मुकाबले में उतरा और स्वर्ण पदक जीता। उस मुकाबले में मेरे प्रदर्शन को देख रहे छत्रसाल स्टेडियम के प्रशिक्षक रामफल ने मुझे स्टेडियम में आने का न्योता दिया। इसके बाद से ही बजरंग के कुश्ती जीवन का सुनहरा सफर शुरू हुआ। बजरंग ने बताया कि जब पहली बार 2010 में देश के बाहर कुश्ती मुकाबले के लिए कदम रखा, तो मन में तरह-तरह के संशय थे, लेकिन सब जूनियर एशियन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर लौटा तो आत्मविश्वास बढ़ा। वर्ष 2011 में सब जूनियर विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण हासिल किया। बजरंग अपनी सफलता का श्रेय अपने प्रशिक्षक रामफल, यशबीर और विरेंद्र को देते हैं। प्रशिक्षक रामफल का कहना है कि बजरंग की खासियत यही है कि उसने कभी असुविधाओं को प्रगति की राह में रोड़ा नहीं बनने दिया। हमने इस बच्चे को जब जहां मुकाबले में उतारा, वहां पर उसने तिरंगा लहराया। चोटिल होने की खबर पर बजरंग ने कहा कि मैं एक सप्ताह बाद प्रैक्टिस पर लौट आऊंगा। चोट गंभीर नहीं है। ओलम्पिक में चुनौती के बारे में उन्होंने कहा कि रियो ओलम्पिक में कांस्य पदक विजेता अजरबेजान के हाजी अलिवेव व क्यूबा के एलजांडो इनरिक वलदेस टोबियर, कजाखिस्तान के दौलत नियाजबेकोव, पौलेंड के मागोमेदमुराद गदझीव, मंगोलिया के टुग्ला तुमुरोचिर, रूस के गाजीमुराद रशिदोव व हंगरी के इस्जमाइल मुसजुकावेब, जापान के टकूटो ओटोगुरो के साथ मुख्य मुकाबला रहेगा। इन सभी को मैंने पहले भी हराया है और टोक्यो में इनसे जीत के लिए खास तैयारी हो चुकी है। सीनियर विश्व चैम्पियनशिपः 2013 में कांस्य पदक, 2018 में रजत पदक, 2019 में कांस्य पदक,एशियाई खेलः 2014 में रजत पदक, 2018 में स्वर्ण पदक। राष्ट्रमंडल खेल 2014 में रजत पदक, 2018 में स्वर्ण पदक। एशियाई चैम्पियनशिप- 2013 में कांस्य पदक, 2014 में रजत पदक।