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अब लक्ष्य ओलम्पिक में देश के लिए पदक जीतना लड़कों संग अभ्यास करने के कई फायदे खेलपथ संवाद रोहतक। कुश्ती की ज्यादा समझ तो नहीं थी, लेकिन इतना पता था कि अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनना है। यही सोचकर कुश्ती खेलना शुरू किया। कुश्ती में हमारा कोई रोल मॉडल भी नहीं था, इसलिए खुद को ही रोल मॉडल समझा। इसी जुनून और जज्बे से आज इस मुकाम को हासिल किया है। यह कहना है टोक्यो ओलम्पिक में देश के लिए कुश्ती के 50 किलोग्राम में कोटा हासिल करने वाली 26 वर्षीय पहलवान सीमा बिसला का। सीमा कहती हैं, बचपन में जो सपना देखा था, वह तो पूरा हो चुका है। अब लक्ष्य ओलम्पिक में देश के लिए पदक जीतना है। इसी लक्ष्य को पूरा करने के लिए लॉकडाउन में भी अभ्यास कर रही हूं। अकादमी बंद है, महिला पहलवान आ नहीं रहीं, इसलिए अकादमी के हॉस्टल में रह रहे लड़कों के साथ ही अभ्यास कर रही हूं। इससे दो फायदे हो रहे हैं, एक तो अभ्यास पर ब्रेक नहीं लगा और लड़कों के साथ कुश्ती के कारण ज्यादा ताकत के साथ मैट पर उतरना पड़ रहा है। सीमा बिसला कहती हैं कि जब तक ट्रेनिंग कैंप नहीं लगता तब तक गुरुग्राम के फाजिलपुर गांव स्थित परमजीत कुश्ती अकादमी में लड़कों के साथ अभ्यास शुरू कर दिया है। सीमा के पिता आजाद सिंह कैंसर पीड़ित हैं। सीमा टोक्यो ओलम्पिक में पदक जीतकर पिता को खास तोहफा देना चाहती हैं। सीमा ने कुश्ती के क्षेत्र में साल 2007 में कदम रखा और इसके बाद से उनका खेलना लगातार जारी है। 2009-10 में सब जूनियर एशियन चैम्पियनशिप में देश के लिए उन्होंने पहली बार पदक जीता था। इसके बाद साल 2018 में कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने स्वर्ण पदक हासिल किया था वहीं, हाल ही में बुल्गारिया के सोफिया में आयोजित ओलम्पिक क्वालीफायर विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर देश को टोक्यो ओलम्पिक में कोटा दिलाया।