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टोक्यो का टिकट कटाने वाली चार महिला पहलवानों में शामिल खेलपथ संवाद नई दिल्ली। भारतीय महिला पहलवान अंशू मलिक (57 किलोग्राम) ने कुश्ती शुरू करने के महज सात साल के अंदर ओलम्पिक कोटा हासिल कर पिता धर्मवीर के उस सपने को पूरा किया है जिसे वह खुद पूरा नहीं कर पाए थे। अंशू पहलवानी ही नहीं पढ़ाई में भी अव्वल हैं। अंशू जब 12 साल की थी तब दादी को कहा था कि वह पहलवान बनना चाहती है। छोटे भाई शुभम की तरह वह भी यहां के निदानी खेल स्कूल में इसका प्रशिक्षण लेना चाहती है। धर्मवीर को इसके बाद छह महीने में पता चल गया कि उनकी छोरी (बेटी) किसी भी छोरे (लड़के) से कम नहीं है। वह उनसे बेहतर है। उन्होंने कहा,‘छह महीने के प्रशिक्षण के बाद उसने उन लड़कियों को हराना शुरू कर दिया, जो वहां तीन-चार साल से अभ्यास कर रही थीं। फिर मैंने अपना ध्यान बेटे से ज्यादा बेटी पर लगाया। उसमें अच्छा करने की ललक थी।’ अंशू से जब उनके शुरुआती दिनों में निदानी खेल स्कूल के प्रशिक्षण के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा,‘जो पापा ने बताया है वही सही है जी।’ अंशू ने कहा,‘मैं शर्माती नहीं हूं। मैं मैट (अखाड़े) के बाहर भी खुलकर रहती हूं।’ अंशू पहलवानी के साथ पढ़ाई में भी अव्वल रही हैं। उन्होंने कहा वह शुरू से ही हर चीज में शीर्ष पर रहना चाहती है। उन्होंने कहा,‘मैं हमेशा से वो पदक जीतना चाहती थी, पोडियम (शीर्ष स्थान) का अहसास लेना चाहती हूं। स्कूल में भी, मैं पहले स्थान पर आना चाहती थी।’ उन्होंने गर्व के साथ बताया कि सीनियर माध्यमिक स्तर (12वीं कक्षा) में उन्हें 82 प्रतिशत अंक प्राप्त हुए हैं। अंशू ने कहा, ‘मैं मानसिक रूप से बहुत मजबूत हूं। अगर कोई मेरे बारे में नकारात्मक टिप्पणी करता है या मुझसे कहता है कि मैं मजबूत प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाऊंगी तो भी मैं परेशान नहीं होती। यह मुझे प्रभावित नहीं करता है। इसके साथ ही मेरे आस पास सकारात्मक लोग रहते हैं। हर कोई मुझमें यह विश्वास जगाता है कि मैं सब कुछ करने के योग्य हूं। मेरे आसपास कोई नकारात्मक सोच वाला नहीं है।’ अंशू के पिता ने एक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग लिया था लेकिन चोट के कारण उनका कॅरिअर परवान नहीं चढ़ा। उनके चाचा पवन कुमार ‘हरियाणा केसरी’ थे।