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खेल संगठन पदाधिकारियों के मुंह दही जमा श्रीप्रकाश शुक्ला ग्वालियर। प्रशिक्षकों, शारीरिक शिक्षकों तथा खिलाड़ियों की आसन्न चुनौतियों पर न केवल सरकारें चुप्पी साधे हुए हैं बल्कि खेल संगठनों से जुड़े पदाधिकारियों के मुंह पर भी दही जम चुका है। सभी कहते हैं कि खेल संगठनों और खेलों से जुड़े पदों पर खिलाड़ियों को होना चाहिए। जी नहीं इन पदों पर उन लोगों को होना चाहिए जोकि खेल प्रशिक्षकों, शारीरिक शिक्षकों तथा खिलाड़ियों के मर्म को समझें। उत्तरप्रदेश में हाकी खिलाड़ी रहे आर.पी. सिंह निदेशक खेल हैं, इनके रहते पिछले 14 माह से लगभग साढ़े चार सौ अंशकालिक प्रशिक्षक घर बैठे हैं। कहने को ये बेगार अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन इनमें से ही कई दोगले निदेशक के तलुए चाट रहे हैं। खेल से जुड़ा हर शख्स जानता है कि आर.पी. सिंह अवसरवादी है। इस शख्स ने कभी खेलहित में काम नहीं किया। अतीत पर गौर करें तो इन पर समय-समय पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे लेकिन ठाकुरवाद की पक्षधर योगी सरकार में इन्हें लगातार प्रशय दिया जा रहा है। अफसोस खेल मंत्री उपेंद्र तिवारी भी अब तक खेलहित में कोई अच्छा काम नहीं कर सके। अलबत्ता दूसरे विभागों में ताक-झांक करते देखे जा सकते हैं। कहने को उत्तर प्रदेश का एक शख्स भारतीय ओलम्पिक संघ का खजांची है लेकिन वह भी साढ़े चार सौ अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों की आवाज नहीं उठा सका। उठाता भी तो कैसे वह कौन सा दूध का धुला है। इस मुश्किल दौर में इन पीड़ितों का मददगार यदि कोई है तो सिर्फ भगवान है। अरे उत्तरप्रदेश खेल संगठन पदाधिकारियों कुछ तो शर्म करो इनकी आवाज उठाओ, आखिर जब प्रशिक्षक और शारीरिक शिक्षक ही नहीं होंगे तो खिलाड़ी क्या तुम्हारे बाप तैयार करेंगे।