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चुनौतियों का हंसकर मुकाबला करने वाली जांबाज बेटी खेलपथ प्रतिनिधि रायपुर। भारत की महिला धावक और जकार्ता एशियाई खेलों में 100 तथा 200 मीटर में रजत पदक जीतने वाले दुती चंद को 14 अप्रैल को सरकार की तरफ से वर्चुवली छत्तीसगढ़ वीरनी पुरस्कार से नवाजा जाएगा। दुती की उपलब्धियों को देखते हुए छत्तीसगढ़ सरकार का यह सराहनीय कदम है। दुती चंद शुरू से ही बेहद शानदार प्रदर्शन करते हुए लोगों के दिलों में जगह बनाने में कामयाब रही हैं। पेशेवर और व्यक्तिगत दोनों ही तौर पर वह भारत की सबसे होनहार एथलीटों में से एक के रूप में उभरकर सामने आई हैं। भारत की पहली स्प्रिंटर, जिनके समलैंगिक एथलीट होने की जानकारी सभी को है। उन्होंने 2019 में इटली के नेपल्स में हुए वर्ल्ड यूनिवर्सियाड में इतिहास रचा था, वह इस ग्लोबल मीट में हुई 100 मीटर स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय बनीं थीं। महिलाओं का 100 मीटर में राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी उन्हीं के नाम दर्ज है और 2016 के रियो ओलम्पिक खेलों के लिए क्वालीफाई करके वह ओलम्पिक खेलों में महिलाओं की 100 मीटर में भाग लेने वाली देश की पांचवीं भारतीय एथलीट बनी थीं। ओडिशा की रहने वाले दुती चंद एक बुनकर परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उन्होंने अपनी बहन सरस्वती से प्रेरित होकर दौड़ना शुरू किया। लेकिन उन्होंने अपने जीवन के हर मोड़ पर कड़ी मुश्किलों का सामना किया है; फिर चाहे उनकी परवरिश की बात हो या हाइपरएंड्रोजेनिज़्म विवाद (टेस्टोस्टेरोन की मात्रा सामान्य से अधिक होना। टेस्टोस्टेरोन वह हार्मोन है जो पुरुषों के गुणों को नियंत्रित करता है।) या देश के रूढ़िवादी समाज में उनके समलैंगिक होने का सच। वह कहती हैं, "एक सामान्य सी लड़की के तौर पर मैं कभी झील के चारों ओर नंगे पैर दौड़ती थी ताकि मुझे दुनिया भर में लोग एक खिलाड़ी के तौर पर पहचान सकें। यह वाकई एक लम्बा और कठिन सफर रहा है। लोग अब मुझे मेरे खेल के लिए, मेरी कड़ी मेहनत के लिए और जहां मैं आज खड़ी हूं उसके लिए जानते हैं।" 2012 में 100 मीटर स्पर्धा में अंडर-18 वर्ग में राष्ट्रीय चैम्पियन बनकर दुती चंद पहली बार सुर्खियों में आईं। इसके बाद 2013 में एशियाई एथलेटिक्स चैम्पियनशिप, वर्ल्ड यूथ चैम्पियनशिप और रांची में नेशनल सीनियर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में भी उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया। ताइपे में हुई 2014 एशियन जूनियर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में दो स्वर्ण पदक के साथ, वह अपने अंतरराष्ट्रीय करियर में अपना पहला महत्वपूर्ण कदम उठाने के लिए तैयार थीं। हालांकि, मुश्किलें उनका पीछा नहीं छोड़ रही थीं। दुती चंद 2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी कर रही थीं, जब एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एएफआई) ने अंतिम समय में उन्हें एथलेटिक्स से हटाने का फैसला किया। उस वक्त कहा गया कि हाइपरएंड्रोजेनिज़्म की वजह से उन्हें एक महिला एथलीट के तौर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए अयोग्य करार दिया जाता है। बाद में यह मामला एक लम्बी लड़ाई के बाद सुलझ गया। दुती चंद ने 2015 में कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट (CAS) में अपील की थी, जिसके बाद उन पर लगा यह निलंबन हटा दिया गया था। इसके बाद उन्होंने सार्वजनिक रूप से ओलम्पिक और विश्व चैम्पियनशिप की विजेता दक्षिण अफ्रीकी चैम्पियन कोस्टर सेमेनिया को अपना समर्थन दिया, उनमें भी टेस्टोस्टेरोन के स्तर को अधिक पाया गया। दुती चंद ने इन सबके बाद ट्रैक पर एक बार फिर वापसी की और 2016 एशियाई इंडोर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में 60 मीटर की स्पर्धा के क्वालीफिकेशन राउंड में 7.28 सेकंड के साथ राष्ट्रीय रिकॉर्ड बना दिया। 2016 ओलम्पिक खेलों के लिए क्वालीफिकेशन हासिल करना उनके करियर का अगला महत्वपूर्ण पड़ाव रहा। 2016 फेडरेशन कप नेशनल एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में महिलाओं की 100 मीटर की दौड़ को 11.33 सेकंड में खत्म करने के बावजूद वह रियो 2016 के लिए क्वालीफिकेशन हासिल करने से .01 सेकेंड से चूक गईं। उन्होंने इस प्रतियोगिता में रचिता मिस्त्री के 16 साल पुराने राष्ट्रीय रिकॉर्ड को तोड़कर स्वर्ण पदक जीता था। इसके बाद भारतीय स्प्रिंटर ने कुछ ही महीनों बाद कज़ाकिस्तान में हुई XXVI इंटरनेशनल मीट जी कोसानोव मेमोरियल में एक ही दिन में दो बार अपना ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ दिया। उन्होंने 11.24 सेकंड में अपनी दौड़ खत्म की और अपने पहले ओलम्पिक बर्थ को सील करने में कामयाब रहीं। हालांकि, उनका रियो 2016 अभियान शुरुआती हीट में ही समाप्त हो गया, लेकिन 20 वर्षीय एथलीट के लिए यह एक महत्वपूर्ण अनुभव था। जकार्ता में हुए 2018 एशियाई खेलों में उनके दो पदक भी महत्वपूर्ण उपलब्धियां रहीं। महिलाओं के 100 मीटर फ़ाइनल में दुती चंद का रजत पदक दो दशकों में भारत का पहला और 1986 में पीटी ऊषा के प्रयास के बाद 32 वर्षों में इस श्रेणी में पहला पदक रहा। उन्होंने दूसरा रजत पदक तीन दिन बाद महिलाओं के 200 मीटर के फाइनल में जीता, जो 2002 में सरस्वती साहा के स्वर्ण पदक जीतने के 16 साल बाद उस श्रेणी में भारत की झोली में आया। दुती चंद ने इसके अगले वर्ष अपनी गति में सुधार किया। उन्होंने नेपोली में 2019 के समर यूनिवर्सियाड में एक स्वर्ण पदक जीता। वह ऐसा करने वाली पहली भारतीय एथलीट बन गईं, जिन्होंने किसी ग्लोबल मीट में यह कारनामा करने में कामयाबी हासिल की। फिर उन्होंने उसी वर्ष सार्वजनिक तौर पर अपने समलैंगिक होने की घोषणा की और उन्होंने बताया कि वह एक समान सेक्स रिलेशनशिप में थीं। पूरे देश ने दुती चंद के इस साहस की सराहना की। हालांकि, उन्हें अपने घर और गांव चाका गोपालपुर में इसके लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। भले ही कुछ लोगों को दुती चंद के निजी जीवन को स्वीकार करने में मुश्किल होती हो, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि स्प्रिंटर दुती चंद भारत की सबसे बेहतरीन स्प्रिंटर हैं। उनके पास टोक्यो 2020 में महिलाओं की 100 मीटर और 200 मीटर स्पर्धाओं में ओलम्पिक खेलों में देश का प्रतिनिधित्व का बेहतरीन मौका है।