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2004 में हासिल किया अर्जुन अवार्ड अब बेटी हरमिलन के सपनों को दे रहीं उड़ान श्रीप्रकाश शुक्ला पटियाला। इंसान के जीवन में उसके मुकद्दर से कहीं बड़ा योगदान उसकी मशक्कत का होता है। सपने तो हर कोई देखता है लेकिन मंजिल उसे ही मिलती है जिसमें लक्ष्य को हासिल करने की अदम्य इच्छाशक्ति होती है। उत्तर प्रदेश के बालामऊ जैसी छोटी सी जगह में बड़े सपने देखना और उन्हें पूरा करना कतई आसान नहीं था लेकिन माधुरी सक्सेना ने अपनी लगन और मेहनत से एथलेटिक्स में न केवल नई पटकथा लिखी बल्कि 2004 में अर्जुन अवार्ड हासिल कर जता दिया कि मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनमें कुछ कर गुजरने का जज्बा व जुनून होता है। माधुरी सक्सेना को बचपन से ही खेलों से लगाव रहा है। इन्होंने खेल की शुरुआत खो-खो से की लेकिन कुछ समय बाद ही एथलेटिक्स में रुचि लेना शुरू कर दिया। स्कूल-कालेज स्तर पर बेशुमार उपलब्धियां हासिल करने के बाद माधुरी ने संकल्प लिया कि एथलेटिक्स में जब तक वह देश का प्रतिनिधित्व नहीं कर लेतीं तब चैन से नहीं बैठेंगी। बालामऊ जैसी छोटी सी जगह में चूंकि एथलेटिक्स में कौशल निखारने को पर्याप्त साधन और सुविधाएं नहीं थीं सो इन्होंने लखनऊ के के.डी. सिंह बाबू स्पोर्ट्स हास्टल में रहने का फैसला लिया। माधुरी ने 1986 से 1995 तक इसी हास्टल में रहकर न सिर्फ अपने हुनर को निखारा बल्कि समूचे राष्ट्र को अपने दमखम और कौशल का मुरीद बना लिया। माधुरी सक्सेना के जांबाज प्रदर्शन और बेशुमार उपलब्धियों को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने इन्हें रानी लक्ष्मीबाई अवार्ड से नवाजने के साथ ही जीवन यापन को पोस्ट एण्ड टेलीग्राफ विभाग में क्लर्क की नौकरी प्रदान कर दी। बालामऊ की इस बिटिया को इतने से संतोष नहीं था, सो इसने बड़ा एथलीट बनने की खातिर शासकीय नौकरी छोड़ दी। कहते हैं रिश्ते ऊपर वाला तय करता है। माधुरी ट्रैक पर आहिस्ते-आहिस्ते सुर्खियां बटोर ही रही थीं कि उनकी आंखें पंजाब के नेशनल एथलीट अमनदीप सिंह बैंस से टकरा गईं। दोनों एक-दूसरे से मिलने-जुलने लगे तथा प्यार परवान चढ़ गया। आखिरकार परिवार की रजामंदी के बाद 1996 में माधुरी सक्सेना माधुरी सिंह बन गईं और उत्तर प्रदेश से आकर पंजाब के माहिलपुर में अपने पति के परिजनों संग रहने लगीं। माहिलपुर के नेशनल अवार्डी अध्यापक ज्ञानी हरकेवल सिंह और प्रधानाध्यापिका बीबी गुरमीत कौर के नेशनल एथलीट बेटे अमनदीप सिंह बैंस से शादी के बाद भी माधुरी के इरादे नहीं बदले। शादी के बाद प्रायः लोग खेलों को अलविदा कह देते हैं लेकिन माधुरी ने जो लक्ष्य तय किए थे उन्हें पूरा करने को जी-जान से जुट गईं। 1992-93 में इंटर स्टेट ओपन नेशनल कप में माधुरी बेस्ट ऑफ थ्रीं रहीं, इसके बाद वर्ल्ड क्रास कंट्री हो या एशियन क्रास कंट्री, इस जांबाज ने अनगिनत मेडल अपने नाम किए। माधुरी की उपलब्धियों पर गौर करें तो 1995 में चेन्नई में हुई इंटर स्टेट मीट में 5000 मीटर दौड़ में न केवल इन्होंने स्वर्णिम सफलता हासिल की बल्कि राष्ट्रीय रिकार्ड भी अपने नाम किया। इसी साल माधुरी ने सैफ गेम्स की पांच हजार मीटर दौड़ में भी स्वर्ण पदक से अपना गला सजाया। माधुरी ने 1996 में दक्षिण अफ्रीका में वर्ल्ड रोड रिले रेस में स्वर्णिम प्रदर्शन के बाद 2000 में हांगकांग में हुई 1500 मीटर रेस में भी गोल्ड मेडल जीत दिखाया। 2002 में हैदराबाद में हुई एशियन एथलेटिक्स ग्रांड पिक्स की 800 मीटर दौड़ में वह तीसरे स्थान पर रहीं तो इसी साल बैंकाक में हुई एशियन एथलेटिक्स ग्रांड पिक्स की 800 मीटर दौड़ में दूसरा स्थान हासिल किया। यह साल माधुरी के लिए सफलताओं भरा रहा। हैदराबाद, बैंकाक की ही तरह मनीला में भी माधुरी 800 मीटर दौड़ में दूसरे स्थान पर रहीं। बुसान एशियन गेम्स की 1500 मीटर दौड़ में माधुरी चौथे स्थान पर रहीं लेकिन 800 मीटर दौड़ में उन्होंने रजत पदक जीतकर हिन्दुस्तान के गौरव को चार चांद लगा दिए। 2003 में मनीला में हुई एशियन ट्रैक एण्ड फील्ड प्रतियोगिता की 1500 मीटर दौड़ में माधुरी ने रजत पदक जीता तो एफ्रो एशियन गेम्स हैदराबाद में तीसरा स्थान हासिल किया। माधुरी ने 2004 में पाकिस्तान में हुए दक्षिण एशियाई खेलों की 1500 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीतकर मादरेवतन का मान बढ़ाया।
माधुरी सिंह की शानदार उपलब्धियों को देखते हुए 2004 में इन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के करकमलों से अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया। माधुरी के सम्मान में खालसा कॉलेज माहिलपुर में खेल मैदान का नाम अर्जुन अवार्डी माधुरी सिंह रखा गया। माधुरी सिंह फिलवक्त पटियाला में पंजाब बिजली बोर्ड में सीनियर ऑफीसर के पद पर सेवाएं दे रही हैं। अतीत में एक शानदार खिलाड़ी होने के चलते वह चाहती हैं कि उनके बच्चे भी खेलों में देश का मान बढ़ाएं। माधुरी कहती हैं कि मेरी सफलता में मेरे पति तथा सास-ससुर का बहुत बड़ा योगदान है। माधुरी सिंह पटियाला में ही अपनी उदीयमान एथलीट बेटी मिलन सिंह के सपनों को पंख लगा रही हैं। मिलन सिंह अपनी मां की ही तरह लाजवाब एथलीट तो कनाडा में जन्मा बेटा शानदीप सिंह होनहार क्रिकेटर है। मिलन सिंह एथलेटिक्स में जूनियर स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी है। सच कहें तो माधुरी अपने बच्चों को बेहतर से बेहतर खेल माहौल और सुविधाएं देने को प्रतिबद्ध हैं। हर खेलप्रेमी को ऐसे अभिभावकों को सलाम करना चाहिए।