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पावर लिफ्टिंग में स्वयं जीते एक दर्जन इंटरनेशनल पदक
अब महिला शक्ति को दे रहीं सबसे अलग मुकाम
श्रीप्रकाश शुक्ला
रांची। हिन्दुस्तान एक ऐसा देश है, जहां महिलाओं को वे सभी अधिकार प्राप्त हैं, जो समाज में पुरुषों के पास हैं। समस्या बस इतनी है कि लोगों की सोच खराब है। सोच को खराब भी नहीं कहेंगे, बस सोच का फर्क है जिसके कारण महिलाएं पिछड़ जाती हैं। नारी को अबला से सबला बनाने का जो काम हमारी हुकूमतें नहीं कर पाईं उस काम को अंजाम देने का विलक्षण काम इंटरनेशनल पावर लिफ्टर सुजाता भगत ने अपने हाथों लिया है। सुजाता भगत उन गृहणियों को फौलादी बना रही हैं जिनका खेल से कभी कोई वास्ता नहीं रहा। सुजाता भगत के प्रयासों से झारखण्ड की गृहणियों में खेलों को लेकर न केवल नई चेतना आई है बल्कि वे राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय खेल मंचों पर लगातार मेडल भी जीत रही हैं।
आज जमाना काफी हद तक बदल रहा है तो लोगों की सोच भी बदल रही है। इस बदलती सोच के चलते समाज में महिलाओं की स्थिति काफी बेहतर हो रही है। इस स्थिति को पाने के लिए नारी शक्ति को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा है। पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने का हक महिलाओं ने अपनी काबिलियत से पाया है। आज महिलाएं आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक तथा खेल के क्षेत्र में पुरुषों को बराबर की टक्कर दे रही हैं। सच कहें तो खेल के क्षेत्र में तो महिलाएं पुरुषों से कहीं आगे कुलांचें भर रही हैं। बदलाव की इस बयार में सुजाता भगत जैसी जांबाज महिलाओं का अहम योगदान है।
झारखण्ड की सुजाता भगत ने अपनी अदम्य इच्छाशक्ति से समाज को यह संदेश दिया कि महिलाओं में कुछ हासिल करने का जुनून, जोश और जज्बा हो तो उसे उसकी मंजिल से कदाचित नहीं रोका जा सकता। सुजाता की जहां तक बात है झारखण्ड की इस बेटी ने एथलेटिक्स में खास मुकाम हासिल करने का संकल्प लेकर अपने खेल जीवन की शुरुआत की थी। कहते हैं कि इंसान कुछ भी सोचे विधाता को जो मंजूर होता है वही होता है। बात 1999 की है जब एक सड़क हादसे ने सुजाता के एथलेटिक्स करियर को विराम लगा दिया। इस हादसे में सुजाता को गम्भीर चोटें आईं जिसके चलते उन्हें आधा दर्जन से अधिक शल्य क्रियाओं से गुजरना पड़ा। सुजाता की जान तो बच गई लेकिन वह ट्रैक से दूर हो गईं।
लाख मुश्किलों के बाद भी सुजाता भगत ने हिम्मत नहीं हारी। कहते हैं हिम्मत बंदे मदद खुदा। एथलेटिक्स से दूर होने के बाद रांची की इस बेटी ने पावर लिफ्टिंग में नया मुकाम बनाने का निश्चय किया। कड़ी मेहनत और मंजिल पाने की जिद ने सुजाता भगत को इस काबिल बनाया कि वह एक-दो नहीं बल्कि लगभग एक दर्जन अंतरराष्ट्रीय पदक जीतने में सफल रहीं। सुजाता को पहली दफा 2011 में एशियाई स्तर पर स्वर्णिम सफलता हासिल हुई तो 2012 में जापान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में भी इन्होंने गोल्ड मेडल जीता। सफलता मिलने के बाद प्रायः खिलाड़ी की विचारधारा बदल जाती है लेकिन सुजाता के साथ ऐसा नहीं हुआ और इन्होंने 2014 में भी एशियाई स्तर पर स्वर्णिम सफलता हासिल कर सबकी वाहवाही लूटी। 2014 में सुजाता भगत को भारतीय फौलादी महिला सम्मान से नवाजा गया। इस सम्मान ने सुजाता में ऐसा जोश भरा कि इन्होंने 2015 में यूरोप, 2017 में यूएसए, फिर लॉस एंजेलिस और 2019 में चीन में आयोजित वर्ल्ड पुलिस एण्ड फायर गेम्स में स्वर्ण पदक जीतकर दुनिया में मादरेवतन का मान बढ़ा दिया। 2020 में सुजाता ने महाराष्ट्र में हुई विश्व पावरलिफ्टिंग प्रतियोगिता में शानदार प्रदर्शन करते हुए तीन स्वर्ण पदक जीतकर इस बात के संकेत दिए कि अभी भी खेलों के लिए उनमें बहुत शक्ति बाकी है।
झारखण्ड पुलिस में इंस्पेक्टर रह चुकीं सुजाता भगत का कहना है कि चुनौतियों का सामना करके ही मंजिल पाई जा सकती है। पापा का सपना था कि उनकी बेटी इंटरनेशनल प्लेयर बने लेकिन एक्सीडेंट के चलते रेसिंग ट्रैक से मुझे दूर होना पड़ा। मैं खुश हूं कि अपने संकल्प और मजबूत इरादे से पावर लिफ्टिंग जैसे खेल में देश का गौरव बढ़ाकर अपने पिता के सपने को पूरा कर सकी। सुजाता भगत न केवल लाजवाब पावर लिफ्टर हैं बल्कि उनका सपना हर झारखण्डी महिला को फौलादी बनाना है। सुजाता इन दिनों पावर लिफ्टिंग के क्षेत्र में करियर बनाने की चाह रखने वाली लड़कियों को ही नहीं बल्कि गृहणियों को भी ट्रेनिंग दे रही हैं। दो बेटों की मां सुजाता कहती हैं कि परिवार और करियर के बीच तालमेल बिठाना आसान नहीं होता लेकिन मैंने दोनों के लिए समय निकाला। आज भी मौका मिलने पर परिवार के साथ समय जरूर बिताती हूं।
सुजाता से पावर लिफ्टिंग की ट्रेनिंग लेकर एक नया मुकाम हासिल कर चुकीं किरण मिश्रा का कहती हैं कि मेरी प्रेरणास्रोत मेरी मित्र सुजाता ही है। मैंने उसी से प्रेरणा लेकर पावर लिफ्टिंग को आत्मसात किया है। किरण कहती हैं कि एक गृहणी होने के नाते यह फैसला आसान नहीं था। पहले घरवालों ने मुझे रोकने की कोशिश की लेकिन सफलता मिलने के बाद अब परिवार का उन्हें भरपूर साथ मिल रहा है। सच कहें तो परिस्थितियों से निराश होकर कोई शिखर पर नहीं चढ़ सकता। शिखर पर पहुंचने के लिए स्वयं को सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। इसके लिए चुनौतियों से लड़ना पड़ता है। नये रास्ते निकालने पड़ते हैं। खुद पर भरोसा करना पड़ता है।
आज के समय में जब नौकरी मिलना कठिन हो ऐसे समय में पुलिस इंस्पेक्टर की नौकरी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी से जुड़ना और अपने आपको खेलों के क्षेत्र में झोंक देना बड़े जिगर का काम है। सच कहें तो जिस संकल्प और जिद को सुजाता भगत जी रही हैं, उसके अच्छे परिणामों से एक न एक दिन झारखण्ड जरूर लाभान्वित होगा। अब तक दर्जनों गृहणियों की प्रेरणास्रोत बन चुकी सुजाता के जज्बे को हर भारतीय खेलप्रेमी का सलाम।