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आज की पीढ़ी को मिल रही हैं सुविधाएं
पुलेला जी होते मेरे कोच तो मैं भी जीतती ओलम्पिक मेडलः पीवीवी लक्ष्मी
श्रीप्रकाश शुक्ला
देश में बैडमिंटन को पूरी तरह से समर्पित बस एक ही परिवार नजर आता है, वह है गुरु द्रोणाचार्य पुलेला गोपीचंद का। कहते हैं बेटी में अपनी मां के गुण होते हैं। इसी बात को प्रमाणित कर रही है पुलेला की बेटी गायत्री गोपीचंद। 16 साल की गायत्री ने कृष्णा खेतान ऑल इंडिया जूनियर रैंकिंग बैडमिंटन टूर्नामेंट के अंडर-19 वर्ग में महाराष्ट्र की पूर्वा को हराकर न केवल खिताब जीता बल्कि अपनी ही मां लक्ष्मी के रिकार्ड को भी ध्वस्त कर दिया। गायत्री की मां पीवीवी लक्ष्मी ने 29 साल पहले वर्ष 1991 में यह खिताब अपने नाम किया था।
लड़कियों के अंडर-19 वर्ग का फाइनल मैच बेहद रोमांचक रहा। गायत्री गोपीचंद ने कांटे के मुकाबले में महाराष्ट्र की पूर्वा बारवे को 23-21, 21-18 से हराया। पहले गेम में गायत्री और पूर्वा एक समय 18-18 की बराबरी पर थीं। इसके बाद स्कोर 21-21 भी हो गया। फिर गायत्री ने दो प्वाइंट बनाते हुए पहला सेट जीत लिया। दूसरे सेट में भी दोनों खिलाड़ियों ने शानदार खेल दिखाया और स्कोर बराबर ही चलता रहा। पहले स्कोर 14-14 और फिर 16-16 रहा। इसके बाद गायत्री पूर्वा पर भारी पड़ी और सेट 21-18 से जीतकर चमचमाती ट्रॉफी चूम ली। इस खिताबी मुकाबले के दौरान जहां दोनों बेटियां कोर्ट में अपना दमखम दिखाती रहीं वहीं मैदान के बाहर दो माताएं अपनी-अपनी बेटियों का हौसला बढ़ाती देखी गईं।
भविष्य में उसके खेल में सुधार आए इसके लिए गायत्री गोपीचंद ने अपने सारे मैच रिकॉर्ड कराए हैं। मैच रिकॉर्डिंग के बारे में पीवीवी लक्ष्मी का कहना है कि बेटी गायत्री के खेल में सुधार आए इसीलिए इन मैचों को स्टडी के लिए रिकॉर्ड करवाया गया है। लक्ष्मी ने बताया कि 1991 में जब मैंने यह टूर्नामेंट जीता था तो उसका कोई रिकॉर्ड मेरे पास नहीं रहा इसीलिए गायत्री ने अपने मैच रिकॉर्ड करवाए हैं। लक्ष्मी कहती हैं कि गायत्री के मैचों की रिकार्डिंग पुलेला गोपीचंद को भी दिखाई जाएगी ताकि उनसे समय-समय पर टिप्स लिए जा सकें।
भारत के बैडमिंटन कोच पुलेला गोपीचंद की पत्नी पीवीवी लक्ष्मी कहती हैं कि बेटी गायत्री की जीत मेरी जीत से बड़ी है क्योंकि मैंने 17 साल की उम्र में यह टूर्नामेंट जीता था जबकि गायत्री अभी 14 साल की है। लक्ष्मी का कहना है कि आज का खिलाड़ी बेहद प्रोफेशनल है, वह कड़ी मेहनत करता है। गायत्री गोपीचंद की खिताबी जीत के बाद उसके कोच विजय कुमार का कहना था कि गायत्री इसलिए जीती है क्योंकि वह तकनीकी रूप से बेहद मजबूत है। इसके अलावा एकेडमी में वह अपने से सीनियर खिलाड़ियों से लगातार अभ्यास करती रहती है। खिताबी मैच में अपनी सीनियर खिलाड़ी पूर्वा का सामना करते हुए वह बिल्कुल शांत लग रही थी। गायत्री रोज सुबह 9 बजे से 11 बजे तक और शाम को 4 बजे से 6 बजे के बीच प्रैक्टिस करती है। इसके साथ ही उसकी फिटनेस पर भी बहुत ध्यान दिया जाता है। 14 साल की उम्र में राष्ट्रीय कार्तिमान अपने नाम करने वाली गायत्री का कहना है कि मैं सिर्फ अपने खेल पर ध्यान देती हूं। मैं अपनी पढ़ाई ज्यादातर ट्यूशन के जरिये करती हूं क्योंकि अभी मेरा पूरा फोकस बैडमिंटन पर है।
देखा जाए तो ओलम्पिक पदक विजेता पीवी सिंधु के कोच पुलेला गोपीचंद को तो लगभग सभी खेलप्रेमी जानते हैं लेकिन उनकी पत्नी पीवीवी लक्ष्मी के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। लोगों को तो यह भी नहीं पता कि वह भी एक शानदार बैडमिंटन खिलाड़ी रही हैं। 1996 के अटलांटा ओलम्पिक में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकीं लक्ष्मी पी.वी. सिंधु की कामयाबी का श्रेय अपने पति गोपीचंद को देते हुए कहती हैं कि सिंधु को जैसा कोच मिला है, वैसा मुझे नहीं मिल पाया वरना मैं भी ओलम्पिक मैडल जरूर जीतती। हैदराबाद में बैडमिंटन एकेडमी चलाने में पति की मदद करने वाली लक्ष्मी गोपीचंद के कड़े शेड्यूल का हवाला देते हुए कहती हैं कि जो हम आज नई पीढ़ी को दे रहे हैं, हमारे पास इसकी सुविधा नहीं थी। पुलेला गोपीचंद ने अब तक देश को दो ओलम्पिक मैडल विजेता दिए हैं। उन्हीं की एकेडमी में कोचिंग लेने वाली साइना नेहवाल ने 2012 के लंदन ओलम्पिक में कांस्य तो 2016 में पी.वी. सिन्धु ने रजत पदक जीता है।
पूर्व ओलम्पियन लक्ष्मी ओलम्पिक में अच्छा प्रदर्शन न कर पाने के लिए खिलाड़ियों की आलोचना को सही नहीं मानतीं। लक्ष्मी का कहना है कि हमारे यहां ढांचागत सुविधाओं का अभाव है। लक्ष्मी कहती हैं कि पुलेला गोपीचंद एकेडमी में ट्रेनिंग को आने वाले बच्चों की ऐसी कठिनाइयां दूर की जा रही हैं, जिनका हम दोनों को अपने खेल करियर में सामना करना पड़ा था। लक्ष्मी कहती हैं कि एक समय था जब मुख्य स्टेडियम खिलाड़ियों को राजनीतिक और सामाजिक कार्यक्रमों के चलते उपलब्ध नहीं होता था। एक बार पूरा स्टेडियम इसलिए बंद रखा गया था क्योंकि वहां बैलेट बॉक्स रखे थे।
दो बार नेशनल बैडमिंटन चैम्पियन रह चुकीं लक्ष्मी कहती हैं कि वह ऐसी महिला नहीं हैं जिसके बारे में कहा जाता है कि एक पुरुष की कामयाबी में एक महिला का हाथ होता है। वह थोड़ी अलग हैं। लक्ष्मी एक साथ कई काम सम्हालती हैं। वह प्रोफेशनल हैं, मां हैं और एक हाउस वाइफ भी। वह पुलेला गोपीचंद के लिए सपोर्ट सिस्टम का काम करती हैं। लक्ष्मी सिर्फ अपने दो बच्चों की ही देखभाल नहीं करतीं बल्कि वह अपने पति के काम में भी सक्रिय सहयोग देती हैं। अविभाजित आंध्र प्रदेश की पहली महिला ओलम्पियन रहीं लक्ष्मी कहती हैं कि गोपीचंद की एकेडमी में खिलाड़ियों को फोकस करने और अपने टैलेंट पर भरोसा रखने की सीख दी जाती है। लक्ष्मी ने कहा कि हमने बैडमिंटन एकेडमी की शुरुआत इसलिए की ताकि उन कठिनाइयों को समाप्त किया जा सके जिनका हमें सामना करना पड़ा था। गोपीचंद चाहते हैं कि भविष्य के खिलाड़ियों को बेहतरीन सुविधाएं मिलें ताकि वे खेल की दुनिया में देश का नाम रोशन कर सकें।
पुलेला की बेटी ही नहीं बेटा भी एक प्रतिभाशाली बैडमिंटन खिलाड़ी है। गायत्री का छोटा भाई साई विष्णु कई श्रेणियों में डबल्स के खिताब अपने नाम कर चुका है। गोपीचंद का पूरा परिवार ही बैडमिंटन को समर्पित है और परिवार में कड़ा अनुशासन है जो बच्चों के प्रदर्शन में साफ दिखाई देता है। सफलता और वह भी बैडमिंटन जैसे खेल की सफलता में कड़ी मेहनत तो लगती ही है। अपनी कड़ी मेहनत और लगन से अपने माता-पिता से एक कदम आगे निकल कर उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरना वाकई काबिलेतारीफ है। हम उम्मीद कर सकते हैं कि गायत्री गोपीचंद भी देर-सबेर ओलम्पिक मैडल जीत सकती है।