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संचालक खेल उत्तर प्रदेश आर.पी. सिंह का बेतुका राग
श्रीप्रकाश शुक्ला
लखनऊ। भूखे पेट अपने हक और परिवार के भरण-पोषण की लड़ाई लड़ रहे उत्तर प्रदेश के लगभग साढ़े चार सौ अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों को न्याय देने की बजाय संचालक खेल उत्तर प्रदेश आर.पी. सिंह उन्हें समाजवादी पार्टी का बताकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भ्रमित करने की चाल चल चुके हैं। संचालक खेल के इस षड्यंत्रपूर्ण बयान से न केवल खेलों की सद्भावना व गरिमा को ठेस पहुंची है बल्कि इससे उत्तर प्रदेश में खेलों का सत्यानाश की पटकथा भी लिख चुकी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अब इस मामले में अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों से मिलकर मामले का समाधान निकालना चाहिए वरना मामला बनने की बजाय बिगड़ जाएगा।
ज्ञातव्य है कि पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कुछ अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों ने देवरिया में मिलने की कोशिश की थी। प्रशिक्षकों की मुख्यमंत्री से मुलाकात तो नहीं हो सकी लेकिन उनकी गोरखनाथ मठ के द्वारिका जी से बात जरूर हो गई। द्वारिका जी ने तत्काल दूरभाष पर संचालक खेल आर.पी. सिंह से अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों के पेट पर लात मारने का सवाल किया जिस पर वह बोले अरे साहब ये अंशकालिक खेल प्रशिक्षक समाजवादी पार्टी के लोग हैं। इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि हम सब खेलों को लेकर अब तक जो कुछ भी पढ़े हैं वह मिथ्या है।
खेल, खिलाड़ी और प्रशिक्षक किसी पार्टी का नहीं होता जिस संचालक को इस बात का इल्म न हो ऐसे निकृष्ट इंसान को योगी सरकार क्यों और कैसे पनाह दे रही है, समझ से परे है। कोरोना संक्रमण के इस दौर में जब खिलाड़ियों और खेल प्रशिक्षकों को अतिरिक्त सहायता की जरूरत है ऐसे समय में स्वहित के लिए संचालक जैसे महत्वपूर्ण पद पर आसीन पदाधिकारी का खेल गुरुओं को किसी पार्टी का अलम्बरदार कहना एक तरह से गाली है। आर.पी. सिंह को अपने गिरेबां में झांकने का समय आ गया है, वह क्या थे किसकी चौखट पर माथा टेकते थे यह बात शायद किसी से छिपी नहीं है। प्रशिक्षकों पर तोहमत लगाने वाले आर.पी. सिंह को अपने भविष्य को नजरंदाज नहीं करना चाहिए। वह खिलाड़ी रहे हैं ऐसे में वह खेल गुरुओं और खेलभावना का सम्मान करें या न करें लेकिन अपमान की अनर्गल कोशिश घातक साबित हो सकती है। आर.पी. सिंह को इस बात का भान होना चाहिए कि जो शीशे के महलों में रहते हैं उन्हें दूसरे के घरों पर पत्थर फेंकने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
जो भी हो कोरोना संक्रमण ने खेलों और खिलाड़ियों को सर्वाधिक क्षति पहुंचाई है। कोरोना महामारी के चलते जहां उत्तर प्रदेश में खेलों की शुरुआत अभी तक नहीं हो पायी है वहीं खेलों से अपनी रोजी-रोटी चलाने वाले हजारों लोग तंगहाली में जीवन बसर कर रहे हैं। कई राष्ट्रीय खिलाड़ी व प्रशिक्षक पिछले कई महीनों से वेतन न मिलने के कारण ऐसा काम करने पर विवश हैं जो उनकी गरिमा के खिलाफ है। खेलों से जुड़ी जो शख्सियतें भविष्य में अर्जुन व द्रोणाचार्य पुरस्कार हासिल करने का माद्दा रखती हैं वह इस समय सब्जी, चाट-पकौड़ी, अण्डे बेचने को विवश हैं। दुखद तो यह है कि इनकी सुध लेने की बजाय निकृष्ट खेल पदाधिकारी इनका उपहास उड़ा रहे हैं।
खेल नियमित प्रक्रिया है, इसमें अंशकालिक शब्द किसी गाली से कम नहीं होता। मरता क्या न करता की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में खेलों का भला करने की कोशिश करते साढ़े चार सौ खेल प्रशिक्षकों के साथ जो हो रहा है, उसके दूरगामी परिणाम घातक होंगे। पिछले आठ महीने से प्रशिक्षकों के अभाव में शहर और कस्बों के प्रतिभाशाली खिलाड़ी घरों में कैद हैं। प्रशिक्षकों का नवीनीकरण तो दूर उनका पिछला बकाया तक नहीं दिया गया है। जो प्रशिक्षक स्कूलों में प्रशिक्षण देते थे उन्हें भी नौकरी से निकाल दिया गया है। अब ऐसे शारीरिक शिक्षक भी घर बैठे हैं। वे अपनी पीड़ा बयां करें भी तो आखिर किससे।
पूरी जिन्दगी खेलों को समर्पित करने वाले प्रशिक्षकों को उत्तर प्रदेश की महामहिम आनंदी बेन पटेल द्वारा कुछ और काम करने की सलाह देना सरासर नाइंसाफी है। मैं तो सिर्फ इतना ही कहूंगा जाके फटे न पैर बिवाईं वा का जाने पीर पराई। दुख की बात है कि गुरबत के दौर से गुजर रहे हजारों खेल प्रशिक्षकों, शारीरिक शिक्षकों तथा खेलों से जुड़े अम्पायर, स्कोरर, रेफरी, आफीशियल, टेक्नीशियन आदि की सुध लेने को अब तक कोई खेल संघ पदाधिकारी भी सामने नहीं आया है। उत्तर प्रदेश के खेलनहारों लानत है तुम पर।