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एक नजर भारतीय महिला शतरंज पर
श्रीप्रकाश शुक्ला
नई दिल्ली। हर खेल की तरह बौद्धिक खेल शतरंज में भी भारतीय शातिर बेटियों ने अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है। रविवार को भारतीय महिला टीम ने एशियाई नेशंस (क्षेत्रीय) ऑनलाइन शतरंज चैम्पियनशिप का खिताब जीतकर इसे सिद्ध कर दिखाया। भारत में महिला शतरंज चैम्पियनशिप की शुरुआत वर्ष 1974 में हुई थी और इसके शुरुआती दौर में इसके स्तर तथा भारतीय पुरुष शतरंज के स्तर में कोई बड़ा अंतर नजर नहीं आता था पर समय बीतने के साथ पुरुष शतरंज विश्वानाथन आनंद के पदार्पण से एक नए दौर में प्रवेश कर गया।
महिला शतरंज के शुरूआती दौर में खादिलकर बहनों ने अपना दबदबा कायम रखा तो उसके बाद भाग्यश्री थिप्से और अनुपमा गोखले ने इस खेल को नई ऊंचाई दी। इन बेटियों ने शतरंज में न केवल नया मुकाम बनाया बल्कि देश के सर्वोच्च पुरस्कारों पद्मश्री से लेकर अर्जुन अवार्ड तक हासिल किए। इन बेटियों के बाद विजयालक्ष्मी ने पुरुष शतरंज के मुकाबलों में अपने प्रदर्शन का लोहा मनवाया। समय बीतने के साथ भारत को कोनेरु हम्पी, हरिका और तानिया जैसी खिलाड़ी मिलीं पर राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में इनकी प्रतिभागिता कम ही देखने को मिली। कल यानि 25 अक्टूबर को एशियाई नेशंस (क्षेत्रीय) ऑनलाइन शतरंज चैम्पियनशिप में पदमिनी राउत के बेजोड़ खेल से भारत चैम्पियन बना।
2017 तक शतरंज में पदमिनी राउत और मैरी गोम्स तीन-तीन बार राष्ट्रीय खिताब जीत चुकी थीं। हाल ही एशियाई नेशंस (क्षेत्रीय) ऑनलाइन शतरंज चैम्पियनशिप के फाइनल में ग्रैंडमास्टर पी.वी. नंदिता ने चेल्सी मोनिका इग्नेसियास सिहेती को हराकर भारत को पहला अंक दिलाया। पद्मिनी राउत ने मेडिना वर्दा आइलिया को मात दी। आर वैशाली और कप्तान मैरी एन, गोम्स के मैच ड्रॉ रहे। भारत ने पहला मैच 3-1 से जीता। दूसरे मैच में वैशाली को शीर्ष बोर्ड पर इरीन करिश्मा सुकंदर से हार मिली। भक्ति कुलकर्णी, पद्मिनी राउत और नंदिता ने अपनी-अपनी बाजियां जीतीं। टीम प्रारम्भिक चरण में भी शीर्ष पर रही थी।
राष्ट्रीय चैम्पियन पदमिनी राउत की जहां तक बात है वह 2014 में सांगली में, 2015 में कोलकाता में और 2016 में नई दिल्ली में यह खिताब अपने नाम करते हुए खिताबी तिकड़ी पहले ही पूरी कर चुकी थीं। लगातार खिताब जीतने के मामले में एस. विजयालक्ष्मी (5) सबसे आगे हैं जबकि रोहनी खादिलकर (3) और मेरी गोम्स (3) की बराबरी वह पहले ही कर चुकी हैं। अगर इतिहास पर नजर डालें तो भारतीय महिला शतरंज प्रतियोगिता की आधिकारिक शुरुआत सन 1974 में बेंगलोर से हुई थी और सही मायने में उसे अपना पहला बड़ा चेहरा 1976 में मात्र 13 वर्ष की रोहनी खादिलकर के रूप में मिला था। रोहनी ने 1976 (कोट्टायम ), 1977 (हैदराबाद ),1979 (चेन्नई) में लगातार तीन राष्ट्रीय खिताब और 1981 (नई दिल्ली) और 1983 (कोट्टायम) में मिलाकर कुल 5 राष्ट्रीय खिताब जीते। 1981 (हैदराबाद) और 1983 (मलेशिया) में उन्होंने एशियन विजेता होने का गौरव हासिल किया था। वर्ष 1981 में वह इंटरनेशनल मास्टर बनीं और 1980 में उन्हें अर्जुन अवार्ड से नवाजा गया। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी नें उन्हे शतरंज का भारतीय प्रतिनिधि घोषित करते हुए दुनिया भर में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना था।
रोहनी के बाद यह कारनामा किया तामिलनाडु की सुब्बारमन ने जिन्होंने 1998 से 2002 तक लगातार क्रमशः मुंबई, कोझीकोड, मुंबई, नई दिल्ली और लखनऊ में यह खिताब अपने नाम किए। उन्होंने यह खिताब सर्वाधिक छह बार जीता और उन्होंने अपना सबसे पहला खिताब तो चेन्नई में 1995 में ही जीत लिया था। वह इंटरनेशनल मास्टर और महिला ग्रांड मास्टर खिताब जीतने वाली भारत की पहली महिला खिलाड़ी भी बनीं। इसके बाद लगातार तीन खिताब जीतने का काम किया मैरी एन गोम्स ने किया। उन्होंने वर्ष 2011-13 के बीच चेन्नई, जलगांव और कोलकाता में यह कारनामा किया था। महिला ग्रांड मास्टर का खिताब रखने वाली मैरी ने भारत के लिए एक अंडर 16 और तीन अंडर 20 के एशियन खिताब भी अपने नाम किए।
हालांकि शतरंज में सबसे ज्यादा बार खिताब जीतने पर 1961 में जन्मीं भाग्यश्री थिप्से का नाम भी आता है। उन्होंने यह खिताब 1985, 1986, 1988, 1991 और 1994 में क्रमश: नागपुर, जालंधर, कुरुक्षेत्र, कोझीकोड और बेंगलोर में अपने नाम किए थे। उन्हें अर्जुन अवार्ड और पद्मश्री अवार्ड भी भारत सरकार की ओर से दिया गया। सबसे ज्यादा खिताब जीतने की बात करें तो पद्मश्री और अर्जुन अवार्डी अनुपमा गोखले का नाम भी भारतीय महिला शतरंज के बड़े नामों मे से एक है। उन्होंने वर्ष (1989, 1990, 1991, 1993, और 1997) पाँच बार दुर्ग, विजयवाड़ा, मुंबई, कोझीकोड और आखिरी बार कोलकाता में यह खिताब अपने नाम किया था।
भारत के लिए शतरंज के प्रचार प्रसार में बड़ी भूमिका निभाने वाली तानिया सचदेव ने वर्ष 2006 और 2007 में यह खिताब क्रमश : चेन्नई और पुणे में अपने नाम किया पर कई मौकों पर वह भी राष्ट्रीय प्रतियोगता से दूर नजर आईं। हैरानी की बात है कि दो सबसे सफलतम भारतीय महिला खिलाड़ी कोनेरु हम्पी ने वर्ष 2003 (कोझीकोड) और द्रोणावल्ली हरिका ने वर्ष 2009 (चेन्नई) में यह खिताब जीता था। दरअसल दोनों खिलाड़ियों की बढ़ती रेटिंग और बाकी खिलाड़ियों के बीच का अंतर इसकी मुख्य वजह बना। साथ ही साथ रेटिंग के आधार पर भारतीय टीम के चयन ने यह स्थिति पैदा की। शतरंज संघ को इस मामले में बैडमिंटन संघ से नसीहत लेनी चाहिए।