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उत्तर प्रदेश की लगभग ढाई सौ महिला खेल प्रशिक्षकों का भविष्य अधर में
खेलपथ प्रतिनिधि
वाराणसी। उत्तर प्रदेश में खेलों को लेकर चल रही अंधेरगर्दी पर कोई राजनीतिक दल खेल प्रशिक्षकों और शारीरिक शिक्षकों के हक पर मुंह खोलने को तैयार नहीं है। अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों को मानदेय देने की कौन कहे संचालक खेल डा. आर.पी. सिंह उनकी नौकरी भी सुरक्षित नहीं रहने देना चाहते। मानदेय पर उनका टका सा जवाब है कि काम नहीं तो पैसा किस बात का। अफसोस की बात है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और खेल मंत्री उपेन्द्र तिवारी भी चुप्पी साधे हुए हैं।
एक तरफ उत्तर प्रदेश में नारी सशक्तीकरण और नारी सम्मान की चोचलेबाजी की जा रही है तो दूसरी तरफ दो सौ से अधिक महिला खेल प्रशिक्षक नौकरी चली जाने से खून के आंसू रो रही हैं। खेलपथ से बातचीत में महिला प्रशिक्षकों का कहना है कि ठेकाप्रथा से नौकरी करना उन्हें मंजूर नहीं है। सचिव खेल कल्पना अवस्थी तथा संचालक खेल डा. आर.पी. सिंह को आउटसोर्सिंग का अपना निर्णय वापस लेना चाहिए। खेल वर्षभर चलने वाली प्रक्रिया है ऐसे में खेलों पर ठेकाप्रथा का कानून लागू करना सरासर गलत है। कुछ प्रशिक्षकों ने कहा कि यदि उनके पेट पर लात मारी गई तो वह आत्मदाह को मजबूर हो जाएंगी। एक तरफ उत्तर प्रदेश में खेलों के उत्थान की बड़ी-बड़ी बातें की जा रही हैं तो दूसरी तरफ खेल प्रशिक्षकों का भविष्य अंधकार में है।
संचालनालय खेल उत्तर प्रदेश के अधिकारियों को हरियाणा की सोच का परिपालन करना चाहिए। हरियाणा सरकार ने कोरोना संक्रमणकाल में घर बैठे सभी कर्मचारियों को मानदेय देने का निर्णय लेकर देश के सभी राज्यों के सामने एक नजीर पेश की है। यह काम योगी सरकार को भी करना चाहिए। आखिर खेल प्रशिक्षकों और शारीरिक शिक्षकों से ही उत्तर प्रदेश स्वस्थ और उत्तम प्रदेश बन सकता है।