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ताकि हर बेटी बन सके हॉकी की सूरमा
खेलपथ प्रतिनिधि
गुरुग्राम। अपने लिए तो हर कोई जीता है और तरक्की की राह भी बनाता है, लेकिन कुछ ऐसे बिरले लोग भी होते हैं, जो आने वाली पीढ़ी के बारे में सोचते हैं और उनके लिए शिद्दत से काम भी करते हैं। यह सोच इसलिए ताकि हर कोई उनके जैसा मुकाम पा सके। कुछ ऐसा ही बीड़ा उठाए हुए हैं अर्जुन अवार्डी और भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रही प्रीतम सिवाच। इस बेटी के जोश और जुनून को सलाम करने की जरूरत है।
चूंकि इसने एक मिसाल कायम कर दी है कि बिना किसी संसाधन के भी हिम्मत से बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है। एक ऊबड़-खाबड़ मैदान पर आठ-दस बच्चियों के साथ शुरू हुआ प्रशिक्षण का सिलसिला, आज समाज और प्रशासन की मदद से 150 का आंकड़ा छू रहा है। इनमें भी एक से बढ़कर एक होनहार खिलाड़ी, जो मैदान में अपनी स्टिक से विरोधियों को चारों खाने चित करती हैं।
यहां हम बात कर रहे हैं भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रह चुकी प्रीतम सिवाच की। अर्जुन अवार्डी प्रीतम रेलवे की अधिकारी हैं और साथ ही हॉकी कोच की जिम्मेदारी भी संभाले हुए हैं। प्रीतम ने खुद खेलते हुए 2003 से देश के लिए नयी पौध तैयार करने का भी जिम्मा संभाला हुआ है। उनके कोच बनने की शुरुआत भी अचानक हुई थी। कई साल पहले प्रीतम ने देखा कि एक खाली पार्क में कुछ बेटियां हॉकी खेलने के लिए जद्दोजहद करती हैं। यह देख इस होनहार खिलाड़ी ने इन्हें प्रशिक्षित करने का मन बनाया और फिर शुरू हो गया कारवां। 2004 में विधिवत रूप से उन्होंने लोगों की मदद से यह पार्क हॉकी ग्राउंड के तौर पर प्राथमिक दर्जे का विकसित करा लिया। इसके बाद यहां बेटियों को प्रशिक्षित करने का सिलसिला शुरू हुआ और देखते ही देखते इस ग्राउंड से राज्य और राष्ट्र स्तरीय महिला हॉकी खिलाड़ी निकलने लगीं। यह है प्रीतम का कैरियर प्रोफाइल : गुरुग्राम जिले के गांव झाड़सा में जन्मी प्रीतम सिवाच ने 1987 में हॉकी स्टिक थामी थी। तब वह सातवीं कक्षा की छात्रा थीं। 1990 में उन्होंने पहली बार राष्ट्रीय प्रतियोगिता खेली, इसमें उन्हें सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का खिताब मिला। उन्होंने 1992 में जूनियर एशिया कप में पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में भाग लिया और यहां भी उन्हें सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का अवार्ड मिला। इनके पहले प्रशिक्षक व गुरु स्कूल के पीटीआई ताराचंद थे, जिन्होंने उन्हें हॉकी की बारीकियों से अवगत कराया। 1998 में एशियाड में देश की कप्तानी करते हुए बैंकाक में 15 वर्ष बाद प्रतियोगिता का रजत पदक जीता। 2002 में मैनचेस्टर इंग्लैंड में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक, 2010 राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय महिला हॉकी टीम की प्रशिक्षक की जिम्मेदारी इन्हें दी गयी। चाइना में एशियाई खेल व अर्जेंटीना में हुए विश्व कप में टीम को प्रीतम ने प्रशिक्षण दिया। प्रीतम को खेल में बेहतरीन प्रदर्शन के लिए 1998 में अर्जुन अवार्ड प्रदान किया गया। यहां 15 साल के लंबे अंतराल के बाद किसी महिला खिलाड़ी को अर्जुन पुरस्कार मिला था। पुरस्कार मिलने से उन्हें और प्रेरणा मिली। अगर जज्बा हो तो उम्र कोई मायने नहीं रखती।
देश को दिलाना चाहती हैं हॉकी में ओलंपिक पदक मैदान की बेटियों ने देश की टीम से लेकर विदेश की धरती तक पर अपना कारनामा दिखाया है, लेकिन प्रीतम की जिज्ञासा इतने भर से शांत नहीं हुई। वह चाहती हैं कि देश को महिला हॉकी में किसी तरह से ओलंपिक पदक मिले। इसी सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने सोनीपत के औद्योगिक क्षेत्र में लड़कियों को प्रशिक्षण देना शुरू किया था। मौजूदा समय में इस ग्राउंड पर 140 लड़कियां और 10 लड़के प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। इनमें से किरण दहिया, नेहा गोयल, दिव्या सरोहा और श्वेता सैनी भारतीय महिला हॉकी टीम का हिस्सा रह चुकी हैं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई प्रतिस्पर्धाओं में इन बेटियों ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। इसके अलावा हाल में तीन बेटियां महिमा चौधरी, ज्योति गुप्ता और ज्योति रूमावत जूनियर नेशनल टीम का हिस्सा हैं वहीं, करीब 14 खिलाड़ी हरियाणा टीम में रही हैं और देश के लिए नेशनल स्तर पर स्वर्ण पदक से लेकर दूसरे मैडल जीते हैं। बात खेल तक सीमित नहीं है, बल्कि प्रीतम से प्रशिक्षित खिलाड़ी रेलवे और पुलिस सेवाओं में चयनित हो चुकी हैं। 17 खिलाड़ी अब तक अलग-अलग राज्यों या सेवा में सेवारत हैं। बावजूद इसके प्रीतम के मन में कहीं न कहीं मलाल है कि वह देश को ओलंपिक पदक दिलाने में अब तक कामयाब नहीं हो सकीं। जो नर्सरी वह चला रही हैं, इसमें दो साल से सरकार का कोई सहयोग नहीं है बल्कि वे अपने स्तर या समाज के जागरूक लोगों की मदद से इस कारवां को बढ़ाए हुए हैं। शादी के बाद भी जारी रहा सिलसिला शादी के बाद वर्ष 2002 में जब उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में देश के लिए स्वर्ण जीता उस समय वे एक बच्चे की मां बन चुकी थीं। इसके बाद वे चोटिल हो गयीं और इसी बीच उन्होंने एक लड़की को जन्म दिया। इसके बाद फिर से स्वयं को तैयार करते हुए उन्होंने वर्ष 2008 में देश को ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कराया, लेकिन उनकी टीम वहां कोई पदक नहीं जीत सकी। प्रीतम रेलवे में मुख्य कार्यालय अधीक्षक के पद पर कार्यरत हैं और रेलवे हॉकी टीम की कोच भी हैं। वहीं, प्रीतम सिवाच के पति कुलदीप सिवाच भी हॉकी के राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी हैं। वे भी स्वर्ण पदक जीत चुके हैं। फिलहाल चोटिल होने की वजह से वे खेल से दूर हैं। कुलदीप सिवाच भी रेलवे में टीटीई हैं और प्रशिक्षक का दायित्व भी निभाते हैं।