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मुसीबतों का किया दिलेरी से सामना श्रीप्रकाश शुक्ला भारत को एशियन गेम्स 2014 में 20 किलोमीटर पैदल चाल प्रतियोगिता में पहली बार रजत पदक दिलाने वाली देश की पहली महिला एथलीट खुशबीर कौर को खेल दिवस पर राष्ट्रीय खेल पुरस्कार ‘अर्जुन अवार्ड ‘ से सम्मानित किया गया। पंजाब के अमृतसर में एक छोटे से गाँव रसूलपुर कलां के एक बेहद साधारण परिवार में 9 जुलाई, 1993 को जन्मी खुशबीर कौर की ज़िन्दगी बचपन से ही दर्द और संघर्ष से भरी थी। बचपन में ही पिता का साया खुशबीर के सर से उठ गया था जिसकी वजह से परिवार के ऊपर आर्थिक तंगी के बादल मंडराने लगे थे। ऐसे समय में खुशबीर की माँ जसबीर कौर ने परिवार की ज़िम्मेदारी की बागडोर अपने कंधे पर ली और लोगों के घर काम करके अपने बच्चों को पालने लगीं। पर खुशबीर से वक़्त को और खुद से खुशबीर कौर को कुछ और ही उम्मीदें थीं।इसलिए खुशबीर ने एथलीट बनने की ठानी। कड़ी मेहनत और अडिग विश्वास का परिणाम मिला खुशबीर को तब जब 2007 में उन्होंने मात्र 14 साल की उम्र में ही स्टेट लेवल की 3000 मीटर की रेस जीत कर इतिहास रच दिया। उस रेस के बाद ही खुशबीर राष्ट्रीय कोच और एशियाई चैम्पियन बलदेव सिंह के सम्पर्क में आयीं जिन्होंने खुशबीर की प्रतिभा को निखारने का काम किया। बलदेव सिंह की ट्रेनिंग और खुद की जीतने की जिद ने खुशबीर को 2010 के यूथ एशियाई गेम्स में रजत पदक और 2012 में कोलम्बो में आयोजित एशियन जूनियर चैम्पियनशिप की 10000 मीटर की पैदल चाल प्रतियोगिता में कांस्य पदक का खिताब दिलाया। खुशबीर कौर का नाम तब देश में अधिक चर्चा का विषय बना जब 2014 के एशियन गेम्स में खुशबीर ने भारत को रजत पदक दिलाया। खुशबीर के नाम की गूँज इतनी अधिक इसलिए थी क्योंकि खुशबीर कौर भारत को 20 किलोमीटर पैदल चाल प्रतियोगिता में पदक दिलाने वाली पहली महिला थीं। एक समय गाँव में एक छोटे से छप्पर के घर में गुजर-बसर करने वाली खुशबीर को सरकार ने पंजाब के एक रिहायशी इलाके रणजीत एवेन्यू में एक शानदार फ्लैट गिफ्ट किया। ये फ्लैट लगभग 1200 स्क्वायर फिट के एरिया में बना है। इस फ्लैट में 2 बेडरूम , ड्राइंग रूम, किचन और एक बड़ा गैराज भी है। खुशबीर इस घर में अपनी माँ जसबीर, बहन हरजीत कौर और भाई बिक्रमजीत सिंह के साथ रहती हैं। खुशबीर के संघर्ष से जीत के जश्न तक का सफर इतना आसान नहीं था ,खुशबीर की पारिवारिक हालत इतनी नाज़ुक थी कि 2008 के जूनियर नेशनल गेम्स में उन्हें नंगे पाँव ही दौड़ना पड़ा था क्योंकि उनके परिवार के पास जूते खरीदने तक के पैसे नहीं थे। पिता की मौत के बाद से ही घर में रोज दो रोटी के लिए भी काफी ज़द्दोज़हद करनी पड़ती थी पर इतनी कठिनाइयों और मुश्किल हालातों के बाद भी खुशबीर के इरादे न कमज़ोर हुए और न ही उसके हौसले में कभी कमी आयी। खुशबीर कौर को खेलों में इनके अभूतपूर्व योगदान का परिणाम भी भारत सरकार ने इनको बखूबी दिया। देश के कुछ अभूतपूर्व खिलाड़ियों के साथ खेल दिवस पर खुशबीर कौर को भारत सरकार द्वारा ‘अर्जुन अवार्ड ‘ से सम्मानित किया जाना खुशी की बात है। समूचे देश को अपनी इस खिलाड़ी बेटी पर गर्व है।