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कृष्ण कुमार तिवारी की जांबाजी को कानपुर का सलाम
नूतन शुक्ला
कानपुर। कहते हैं प्यार का नशा सबसे बुरा होता है, एक बार चढ़ जाए तो उतरने का नाम ही नहीं लेता। प्यार में अधिकांश लोगों को बर्बाद होते तो देखा होगा लेकिन हमीरपुर से पढ़ाई करने कानपुर आया एक शख्स राज्यस्तर की खिलाड़ी से एकतरफा प्यार करते-करते खुद भी एक बड़ा खिलाड़ी बन गया। एकतरफा प्यार में कृष्ण कुमार तिवारी न केवल शानदार खिलाड़ी बने बल्कि सेना में भर्ती होकर कारगिल युद्ध में दुश्मन पाकिस्तान के दांत भी खट्टे किए। जांबाज के.के. तिवारी की खूबियों की आज भी कानपुर में खूब चर्चा होती है।
प्रेम सिर्फ पाने का नाम नहीं, न ही प्रेम न मिलने से इंसान कहीं खो जाता है। सच कहें तो सच्चा प्रेम अनमोल होता है जोकि किसी न किसी रूप में ताकत का काम करता है। के.के. तिवारी के अतीत पर नजर डालें तो हमीरपुर जिले के एक छोटे से गांव मौदहा निवासी कृष्ण कुमार का बचपन श्रीकृष्ण की ही तरह था। इनके पिता पुलिस में थे। पुलिस वालों की औलादें प्रायः झगड़ालू होती हैं। नटखट कृष्ण कुमार बिगड़ न जाएं इसके लिए इन्हें पढ़ने के लिए कानपुर भेजा गया। कानपुर आने के बाद झगड़ालू कृष्ण कुमार के संगी-साथियों ने इन्हें खेलों में कौशल दिखाने को प्रेरित किया। दोस्तों की बात मानकर के.के. ने वर्ष 1993 में खेल के मैदान में कदम रखा। यहां इन्हें एथलेटिक्स प्रशिक्षक दिनेश सिंह भदौरिया का सान्निध्य मिला। श्री भदौरिया की देखरेख में के.के. ने प्रैक्टिस शुरू कर दी।
कुछ समय बीता ही था कि कृष्ण कुमार तिवारी की नजरें एक राज्यस्तरीय महिला खिलाड़ी पर पड़ गईं और वह मन ही मन उससे प्यार करने लगे। यह प्यार एकतरफा था इस बात का भान होते ही के.के. तिवारी ने बड़ा खिलाड़ी बनने का संकल्प ले लिया और वह इंटरनेशनल हैमर थ्रोवर अनूप यादव से खेल के गुर सीखने लगे। अब डिप्टी एस.पी. सीआईएसएफ दिल्ली अनूप यादव ने के.के. को हैमर थ्रो की तैयारी करवाई। अच्छे खेल गुरु का सामीप्य मिलते ही कृष्ण कुमार तिवारी के प्यार का नशा काफूर हो गया और उन्होंने अपने शानदार प्रदर्शन की बदौलत राज्यस्तर पर पदकों की झड़ी लगा दी। के.के. ने नार्थ जोन एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में कांस्य पदक भी जीता।
खेलों में शानदार प्रदर्शन के चलते कृष्ण कुमार तिवारी को 1996 में खेल कोटे से सेना में भर्ती होने का सुअवसर मिला। प्रायः नौकरी मिल जाने के बाद लोग खेलों से रिश्ता तोड़ लेते हैं लेकिन के.के. ने अपना खेल जारी रखा नतीजन आर्मी चैम्पियनशिप तथा सर्विसेज में इन्होंने दर्जनों मेडल जीतकर समूचे उत्तर प्रदेश को गौरवान्वित किया। खेल मैदानों में शानदार प्रदर्शन करने वाले के.के. तिवारी ने बाद में कारगिल युद्ध और ऑपरेशन विजय में अपने साहस तथा वीरता का नायाब उदाहरण पेश करते हुए अपने माता-पिता, कानपुर शहर तथा अपने खिलाड़ी मित्रों का सर गर्व व गौरव से ऊंचा कर दिया। कारगिल युद्ध फतह करने वाले के.के. तिवारी ने सेना में रहते हुए कई दुर्गम जगहों जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, लेह, पाकिस्तान बार्डर आदि पर अपनी सेवाएं देकर यह सिद्ध किया कि वह वाकई भारत के सच्चे सपूत हैं। परोपकारी, मिलनसार और हरदिल अजीज के.के. तिवारी को आज कानपुर का हर खिलाड़ी और खेलप्रेमी आदर से सलाम करता है।