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जुनूनी बच्चे ने दी थी खतरनाक बीमारी को मात जन्मदिन पर विशेष नई दिल्ली। साल 1986 तक अर्जेंटीना के रोजारियो शहर को महान क्रांतिकारी नेता चे ग्वेरा के जन्मस्थल के रूप में जाना जाता था। जब अर्जेंटीना ने 1986 में फीफा विश्व कप का खिताब जीता था और देश के सिर से जश्न का खुमार पूरी तरह उतरा भी नहीं था, उसके एक साल बाद ही, 24 जून 1987 को रोजारियो शहर में जन्म हुआ इस सदी के महान फुटबॉलर्स की श्रेणी में शामिल हो चुके लियोनल एंड्रेस मेसी का। उन्हीं मेसी का आज 33वां जन्मदिन है और हम आपको इस अवसर पर उस छोटे से बच्चे की कहानी बता रहे हैं, जो एक खतरनाक बीमारी को मात देकर फुटबॉल की दुनिया का चमकता सितारा बन गया। लियोनल मेसी ने मात्र छह साल की उम्र में रोजारियो के 'न्यूएल्स ओल्ड बॉयज क्लब' के साथ फुटबॅल खेलना शुरू कर दिया था। मेसी के पिता ही उनके पहले कोच थे, लेकिन उनके खेल पर सबसे ज्यादा असर उनकी दादी ने डाला। वही मेसी को ट्रेनिंग के लिए ले जातीं थीं। छह साल की उम्र में ही मेसी की प्रतिभा सबको दिखने लगी थी। लियोनल मेसी के प्रदर्शन का असर इस कदर था कि जिस टीम के लिए वह खेलते थे, उसका नाम उनकी पैदाइश वाले वर्ष पर 'द मशीन ऑफ 87' रख दिया गया। छोटी सी उम्र में ही लियोनल मेसी का गेंद पर नियंत्रण ऐसा था कि वह 15-15 मिनट तक बिना रुके अपने दोनों पैरों से जगलिंग किया करते थे। इस दौरान एक बार भी गेंद उनके पैरों से नीचे नहीं गिरने पाती थी। एक छोटे बच्चे को ऐसा करते देख लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहता और वे मेसी को ईनाम के रूप में पैसे दिया करते थे। प्रतिभावान मेसी की चर्चा रोजारियो से बाहर निकलकर धीरे-धीरे पूरे अर्जेंटीना फैल रही थी। लोग उन्हें भविष्य का फुटबॉलर कहने लगे थे। तभी उनके जीवन में एक बहुत ही खराब समय आया। लियोनल मेसी जब 10 साल के थे, तो पता चला कि वह 'ग्रोथ हार्मोन डिफिशिएंसी' से जूझ रहे हैं। इसका मतलब था कि अगर उनका जल्द इलाज नहीं किया गया तो उनके शरीर का विकास रुक जाता। इस बीमारी का इलाज बहुत खर्चीला था और उनके परिवार के लिए इसका खर्च उठाना मुमकिन नहीं था। प्रतिभा का पहाड़ है यह छोटे कद का फुटबॉलर अब लियोनल मेसी बार्सिलोना क्लब के प्रसिद्ध 'ला मासिया एकेडमी' का हिस्सा बन गए थे। मात्र 17 साल की उम्र में वह बार्सिलोना की ओर से फुटबॉल लीग्स में खेलने लगे थे। इसके बाद जो हुआ, वह फुटबॉल के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो चुका है। फुटबॉल की दुनिया को कद में छोटा मगर प्रतिभा का पहाड़ मिला। लियोनेस मेसी मैदान पर कई इतिहास रचते चले गए। लियोनल मेसी जब मैदान पर उतरते हैं तो गेंद के साथ उनकी जुगलबंदी कुछ ऐसी ही होती है, जैसे किसी संगीतकार का उसके साजों के साथ। चीते की तरह तेज, दुनिया के बेहतरीन डिफेंडर्स को चकमा देकर गेंद को गोलपोस्ट में डालने की अद्धभुत क्षमता। जब गेंद उनके पैरों से लगती है, उनके इशारों पर नाचती है। लिवरपूल फुटबॉल क्लब के मैनेजर यर्गेन क्लॉप ने लियोनल मेसी के बारे में कहा है, 'मेसी सर्वश्रेष्ठ हैं। दुनिया में कहीं और जीवन जरूर होगा। क्योंकि हम उनके काबिल नहीं है और वह हमसे बहुत अच्छे हैं।' मेसी में टैलेंट तो है ही, लेकिन वह मेहनत भी उतनी ही करते हैं। वह ट्रेनिंग सेशन में सबसे पहले मैदान पर पहुंचते हैं और पूरी टीम के जाने के बाद ही लौटते हैं। छोटा कद होने के कारण हेडर करने के मामले में वे भले ही पीछे रह जाते हैं, लेकिन यही छोटा कद उन्हें दूसरे खिलाड़ियों की तुलना में ज्यादा फुर्तीला बनाता है। एक जुनूनी फुटबॉलर, जो उतना ही विनम्र है लियोनल मेसी का फुटबॉल के प्रति लगाव और जुनून किस कदर है, इसका अंदाजा आप एक घटना से लगा सकते हैं। एक बार घरेलू टूर्नामेंट में उन्हें हिस्सा लेना था, लेकिन मैच से पहले वह गलती से खुद को बाथरूम में लॉक कर बैठे। उन्होंने दरवाजा खोलने का भरसक प्रयास किया, लेकिन जब सफल नहीं हुए तो बाथरूम की खिड़की का शीशा तोड़कर बाहर निकले और जल्दी से मैदान पर पहुंचे। हाफटाइम तक उनकी टीम 1-0 से पीछे थी और संघर्ष कर रही थी। हाफटाइम के बाद मेसी जब मैदान पर उतरे तो मैच का पासा पलट गया। उनके मैदान पर आने के बाद विरोधी टीम एक भी गोल नहीं कर सकी और मेसी ने तीन गोल दागते हुए अपनी टीम को 3-1 से जीत दिला दिया। मेसी ने जब 2012 में गेरार्ड मुलर के एक सीजन में सबसे अधिक गोल का रिकॉर्ड तोड़ा था, तो अगले दिन मुलर को मेसी ने एक तोहफा भेजा। बार्सिलोना की 10 नंबर की जर्सी पर लिखा था- 'सम्मान और आदर के साथ'। दोनों हाथ हवा में लहराकर अपनी दादी को देते हैं श्रद्धांजलि मेसी वर्षों से यूनिसेफ के गुडविल एंबेसडर हैं। वह 'ऑटिज्म' की बीमारी से ग्रसित लोगों की मदद के लिए भी काम करते हैं। मेसी जब भी गोल करते हैं तो अपना दोनों हाथ हवा में लहराकर आसमान की ओर इशारा करते हैं। यह अपनी दादी के प्रति उनकी श्रद्धांजलि होती है। हां, अर्जेंटीना के लिए फीफा वर्ल्ड कप न जीत पाने का दर्द शायद उन्हें सताता है।