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श्रीप्रकाश शुक्ला योग को तो हम भारतीय युगों से देखते आ रहे हैं, अब योग का तमाशा भी देख रहे हैं। वैसे ही जैसे गांधी जयंती को अहिंसा दिवस के रूप में, अक्षय तृतीया को सोना खरीदने के लिए या धनतेरस के पहले पुष्य नक्षत्र मनाने के तमाशे देख रहे हैं। ऐसा नहीं है कि इन दिवसों की राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय घोषणाओं से पहले इनका अस्तित्व नहीं था। उत्सवप्रिय भारतीय तो तरह-तरह के दिवस पहले से मनाते रहे हैं, हम हर अवसर पर खुशियां मनाने के कारण तलाश ही लेते हैं लेकिन अब इस खुशी का प्रायोजक बाजार हो गया है और इसे सरकार की ओर से पूरा बढ़ावा मिल रहा है।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने योग का महत्व रेखांकित करते हुए हर बरस 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस क्या घोषित कर दिया, बाजार ने इसे हाथों-हाथ लपक लिया। योगाभ्यास करने वालों की देश-विदेश में कमी नहीं थी। लेकिन अब अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर जिस तरह से प्रचार-प्रसार, मीडिया कवरेज का खेल शुरू हो गया है, यह साफ नजर आ रहा है कि योग के माध्यम से बाजार मुनाफे का आसन कर रहा है। मौजूदा भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी योग को खूब बढ़ावा दे रहे हैं। यूं तो पं. जवाहर लाल नेहरू, मोरारजी देसाई, इंदिरा गांधी आदि पूर्व प्रधानमंत्री अपने स्वास्थ्य को बेहतर रखने के लिए योग करते रहे हैं। मोरारजी देसाई के नाम पर तो राष्ट्रीय योग संस्थान ही है, जिसका कार्य योग की संस्कृति के उन्नयन का है। लेकिन मोदीजी की बात ही निराली है। वे हर बात का इस तरह से प्रचार करते हैं कि हर ओर उसकी ही चर्चा होती है। ऐसा लगता है मानो उनके पहले ये काम किसी और ने किया ही नहीं। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का श्रेय भी उन्हीं को दिया जाता है और इसे प्रमाणित करने में वे कोई कसर नहीं छोड़ते। पहले योग दिवस पर वे दिल्ली के राजपथ पर योग करते नजर आए। दूसरे में चंडीगढ़ पहुंच गए और तीसरे वर्ष उन्होंने लखनऊ के लोगों के बीच योग किया तो चौथे वर्ष वह झारखंड पहुंच गए। भला हो इस साल चोचलेबाजी नहीं हुई। मोदी जी हर साल योग दिवस पर लोगों को प्रेरित करने के लिए कुछ घिसी-पिटी बातें करते हैं जैसे दुनिया में स्वस्थ तरीके से जीने के लिए इसे अपनाना चाहिए। योग दुनिया में बहुत बड़ा आर्थिक कारोबार बन गया है, यह प्रशिक्षकों के तौर पर युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध करा रहा है, आदि-आदि। दो साल पहले उन्होंने चंडीगढ़ में घोषणा की थी कि अगले साल से सरकार योग को लेकर दो पुरस्कार देना शुरू करेगी। पहला पुरस्कार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग के लिए काम करने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं को दिया जाएगा और दूसरा भारत में इसके विकास के लिए दिया जाएगा। अब यह पूछना गुस्ताखी कहलाएगी कि आपकी दिलचस्पी जनता को योग में संलग्न करने की थी या विश्व रिकार्ड बनाने की। स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस पर बाजार तिरंगी चीजों से सजा रहता है और हर माल तीन रंगों में बेचने का नुस्खा भी उसके पास है, कपड़ों से लेकर मिठाइयों तक। लेकिन गांधी जयंती पर किस को बेचेंगे। गांधी के विचार तो पहले ही चलन से बाहर हैं और लाठी, चश्मे को भी अब कौन पूछता है, इनकी उपयोगिता फैंसी ड्रेस तक सीमित हो गई है। लेकिन योग दिवस के रूप में बाजार को नया अवसर मिल गया है। चैनलों और अखबारों में योग करने के सरकारी विज्ञापनों के अलावा पतंजलि के विज्ञापन देखे जा सकते हैं।
कुल मिलाकर योग का अच्छा-खासा तमाशा देश देख रहा है। बेशक योग स्वस्थ जीवनशैली के लिए बहुत जरूरी है, लेकिन उसका तमाशा देश के लिए कितना फायदेमंद है, इसका विश्लेषण भी होना चाहिए। योग दिवस के सरकारी आयोजनों और प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों, राज्यपालों, मंत्रियों के योगासन के इंतजाम में जो विपुल धनराशि खर्च होती है उससे कितने किसानों का भला होता, कितने बच्चों के लिए पौष्टिक आहार का इंतजाम हो जाता, कितने लोगों को साफ-सुथरे शौचालय मिल जाते, कितने बीमारों का इलाज हो जाता, यह हिसाब जनता को लगाना चाहिए। पेट खाली हो तो व्रजासन कितना कारगर होगा, भूख से जब आंतें कुलबुलाएं तो कौन सा प्राणायाम इन्हें शांत करेगा, यह भी पूछा जाना चाहिए।