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अब योग को बनाया अपना पैशन
श्रीप्रकाश शुक्ला
ग्वालियर। भीड़ हमेशा आसान रास्ते पर चलती है लेकिन जिन्हें अपनी मंजिल स्वयं हासिल करनी होती है वे मुसीबतों की परवाह किए बिना अकेले ही चल निकलते हैं। जिन सांक दत्ता को डाक्टरों ने कभी लाचार मान लिया था वही आज अपनी अदम्य इच्छाशक्ति से संयुक्त अरब अमीरात में लोगों को योग के माध्यम से स्वस्थ जीवन का पाठ पढ़ा रही हैं।
सांक दत्ता की बात करें तो यह संघर्ष दूसरा नाम हैं। यह न केवल अपने लक्ष्य तय करती हैं बल्कि उन्हें हासिल कर ही दम लेती हैं। बचपन से ही इन्हें खेलों से लगाव रहा है। एक ख्यातिनाम आशुतोष कालेज से तालीम हासिल करने वाली सांक दत्ता ने स्नातक करने के बाद करियर के रूप में सेल्स एग्जीक्यूटिव के रूप में कार्य करने का निश्चय किया। सांक दत्ता का व्यक्तित्व मिलनसार है यही वजह रही कि इन्होंने अपने करियर की शुरुआत सेल्स एग्जीक्यूटिव के रूप में की।
दत्ता बताती हैं कि कोलकाता में रहते हुए उन्हें लगा कि यह आलसी लोगों का शहर है सो मैंने दिल्ली में जाब करने का फैसला लिया और गुड़गांव (हरियाणा) में रहने लगी। समय बीता, गुड़गांव और दिल्ली की प्रतिदिन की आवाजाही समस्या से परेशान होकर उन्होंने दिल्ली का काम छोड़कर गुड़गांव में ही दूसरी कम्पनी ज्वाइन कर ली। जब सब कुछ सही चल रहा था कि एक दिन उनका एक्सीडेंट हो गया और वह बिस्तर में आ गईं। कूल्हों में गम्भीर चोट पहुंचने इनके कूल्हे अव्यवस्थित हो गए। डॉक्टरों ने इन्हें छह महीने तक बिस्तर पर ही आराम करने की सलाह दी। दत्ता अपने घर वापस आ गईं।
कामकाजी दत्ता को घर में पड़े रहना पसंद नहीं था सो इन्होंने वापस दिल्ली आकर नौकरी शुरू कर दी। दत्ता बताती हैं कि नौकरी में अच्छा वेतन नहीं मिलने से वह परेशान रहने लगीं। आखिर एक दिन इन्होंने कुछ नया करने के उद्देश्य से वाशिंग पाउडर निर्माण कार्य का शुभारम्भ कर दिया। सांक दत्ता न केवल वाशिंग पाउडर बनातीं बल्कि आसपास के क्षेत्र में उसकी बिक्री करने को भी जाती रहती थीं। वह बताती हैं कि मैं हमेशा बस से कच्चा माल लाती थी, इसे देखते हुए मेरे एक मित्र ने मुझे ऑटो रिक्शा खरीदने का सुझाव दिया। मैं ऑटो रिक्शा से कच्चा माल लाती बाकी समय इसे किराए पर ड्राइवर को दे देती।
वाशिंग पाउडर का धंधा ठीक तरीके से चलने के बाद इन्होंने नौकरी छोड़ दी और अकेले ही वाशिंग पाउडर का निर्माण करने लगीं। दत्ता बताती हैं कि वाशिंग पाउडर निर्माण के बाद इसकी बिक्री मुश्किल हो गई। आखिरकार मैंने लोगों की सलाह पर बैंक से ऋण लेकर मिनी ट्रांसपोर्ट व्यवसाय शुरू करने का निर्णय ले लिया और एक मारुति कार तथा कुछ आटो रिक्शा खरीद लिए और लोगों को हवाई अड्डे, अस्पताल और रेलवे स्टेशन पहुंचाने लगी। मुझे इस धंधे में पर्याप्त आमदनी होने लगी।
सांक दत्ता बताती हैं कि मेरे असली जीवन की शुरुआत 1998 में हुई। सब कुछ सही चल रहा था कि 2003 में मेरे एक ड्राइवर ने बिना मुझे बताए नौकरी छोड़ दी। ड्राइवर के चले जाने के बाद दत्ता ने ऑटो और कार 2005 तक चलाई और आखिरकार एक दिन मिनी ट्रांसपोर्ट व्यवसाय को बंद करने का निर्णय ले लिया। व्यवसाय बंद करने के बाद मैंने आरबीआई के स्वीकृत प्रिंटिंग प्रेस में काम करने लगी। सांक दत्ता बताती हैं कि 2007 में मैंने भारत छोड़ दिया और योग प्रशिक्षक की तालीम हासिल कर संयुक्त अरब अमीरात में ही लोगों को नियमित रूप से योग का प्रशिक्षण देने लगीं। दत्ता 2013 में मोरक्को जाकर वहां के लोगों को भी योग सिखा चुकी हैं। सच कहें तो सांक दत्ता संघर्ष की ऐसी मिसाल हैं कि इनसे लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए। जो भी हो दत्ता फिलवक्त संयुक्त अरब अमीरात में योग की अलख जगाते हुए लोगों को स्वस्थ रहने का संदेश दे रही हैं।