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बड़ी बहन उपमा से मिली खेलों की प्रेरणा
नूतन शुक्ला
होशंगाबाद। समय तेजी से बदल रहा है। इस बदलाव में नारी शक्ति का अभूतपूर्व योगदान है। घरों में चूल्हे-चौके तक सीमित रहने वाली महिलाएं आज हर क्षेत्र में अपनी दमदार दस्तक दे रही हैं। आज की महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। खेल, विज्ञान व तकनीकी क्षेत्र सहित लगभग सभी क्षेत्रों में महिलाओं ने अपनी उपयोगिता सिद्ध की है। नारी शक्ति ने अपनी लगन और मेहनत से समाज व राष्ट्र को यह सिद्ध कर दिखाया है कि शक्ति अथवा क्षमता की दृष्टि से वह पुरुषों से किसी भी तरह से कम नहीं हैं। ऐसी ही महिलाओं में होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) में खेलों की अलख जगा रहीं कानपुर की रेनू भदौरिया भी शामिल हैं।
खेलों में अपनी बहन उपमा को अपना प्रेरणास्रोत मानने वाली रेनू भदौरिया ने आठवीं से स्नातक तक की पढ़ाई जुहारी देवी गर्ल्स कालेज से पूरी की है। रेनू को घर से ही खेलों का सही माहौल मिला तथा सुबोध शुक्ला और जज्जू भैया जैसे खेल जानकारों ने इनकी प्रतिभा को निखारने में शिद्दत से सहयोग भी किया। रेनू बताती हैं कि उन्हें हैण्डबाल के गुर सुरेश बोनकर सर ने सिखाए तो एथलेटिक्स की बारीकियों से कानपुर के श्रेष्ठ एथलेटिक्स प्रशिक्षकों में शुमार दिनेश भदौरिया ने अवगत कराया। श्री भदौरिया ने रेनू को डिस्कस और ऊंचीकूद में ऐसी तालीम दी कि इन्होंने राष्ट्रीय और यूनिवर्सिटी स्तर पर अपनी प्रतिभा का शानदार आगाज करते हुए दर्जनों पदक जीते। रेनू ने एथलेटिक्स के साथ हैण्डबाल में भी शानदार प्रदर्शन किया। रेनू 1984 से 2005 तक कानपुर में रहीं। रेनू ने 1997 में मणिपुर के एक स्कूल में भी शारीरिक शिक्षक के रूप में सेवाएं दीं।
खेलपथ से बातचीत करते हुए रेनू भदौरिया बताती हैं कि उन्हें घर और कालेज में खेलों का सही वातावरण मिलने के साथ अच्छे प्रशिक्षकों का भी भरपूर सहयोग मिला। बी.ए., बीपीएड की तालीम हासिल रेनू भदौरिया ने वालीबाल में विशेषज्ञता हासिल की है। खेलों में शानदार सफलताएं हासिल करने वाली रेनू भदौरिया फिलवक्त होशंगाबाद में नवोदय विद्यालय के छात्र-छात्राओं को एक कुशल शारीरिक शिक्षक के रूप में खो-खो, वालीबाल, बास्केटबाल, मुक्केबाजी, जूडो आदि खेलों के गुर सिखा रही हैं। रेनू से प्रशिक्षण हासिल छात्र-छात्राएं राज्यस्तर पर स्वर्णिम सफलता हासिल करने के बाद एसजीएफआई में भी अपने खेल-कौशल से मध्य प्रदेश का मान बढ़ा रहे हैं।
रेनू भदौरिया कहती हैं कि महिलाओं को अब पहले की अपेक्षा कुछ अधिक स्वतंत्रता तो मिली है लेकिन अभी भी उन्हें घर से बाहर तरह-तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अपने संदेश में रेनू कहती हैं कि बेटियों को खेल के क्षेत्र में आगे लाने के लिए अभिभावकों को और प्रयास करने चाहिए। बेटियां अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा खेलों के माध्यम से सहजता से करियर बना सकती हैं। इनका मानना है कि बेटियों को आगे लाए बिना स्वस्थ भारत की संकल्पना को साकार नहीं किया जा सकता।