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आज हर तरफ बिहार के दरभंगा जनपद के गांव सिरहुल्ली की ज्योति का नाम हर जुबान पर है। गुरुग्राम से अपने बीमार पिता को साइकिल पर बैठाकर बारह सौ किलोमीटर दरभंगा तक ले जाने वाली इस तेरह साल की दुबली-पतली लड़की ज्योति ने किया ही ऐसा कमाल है। ऐसी बेटी पर हर पिता रश्क कर सकता है। हो सकता है कोरोना काल में ऐसी यंत्रणाओं से कई बेटियां गुजरी हों, पैदल चली हों, भूख से बेहाल हुई हों, मगर ज्योति का अदम्य साहस और हौसला प्रेरक है। भुखमरी के कगार पर बैठे और मकान मालिक द्वारा धमकाये जाने के बाद ज्योति ने एक पुरानी साइकिल खरीदकर पिता से कहा कि यहां मरने से अच्छा हम संघर्ष करते हुए घर पहुंचें। उसका यह विश्वास रंग लाया और पिता के साथ वह सकुशल घर पहुंची। आज वह बिहार ही नहीं पूरे देश में एक नायक की छवि हासिल कर चुकी है। हालांकि, सोशल मीडिया पर ज्योति के कारनामे को लेकर बहस छिड़ी है। कुछ लोगों के लिए जहां यह गर्व का विषय है, वहीं कुछ लोग इसे सत्ताधीशों के लिए शर्म का विषय बता रहे हैं, जो व्यवस्था की त्रासदी में पिस रहे लोगों के दुख-दर्द को महसूस नहीं कर पा रही है। बहरहाल, आज बिहार के दरभंगा जनपद के गांव सिरहुल्ली में मेला लगा है। सारा घटनाक्रम एक दशक पहले आई फिल्म ‘पीपली लाइव’ की याद ताजा कर रही है। एक कमरे व छोटे से बरामदे में सुबह से शाम तक राजनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं व मीडिया का जमावड़ा लगा रहता है। इस गरीब परिवार के लिए इस घटनाक्रम के बाद आये अप्रत्याशित बदलाव को समझ पाना मुश्किल है। ज्योति की यह हालत है कि वह सामान्य-सी लड़की इस शोहरत को संभाल नहीं पा रही है। वह ठीक से खाना भी नहीं खा पा रही है और न ही ठीक से सो पा रही है। कभी उसने गुरुग्राम में कोरोना काल में सरकार की मदद से मिले हजार रुपये में से पांच सौ रुपये में पुरानी साइकिल खरीदी थी। साइकिल मालिक से मिन्नतें करके बारह सौ रुपये की साइकिल के बाकी पैसे गुरुग्राम लौटकर देने की मनुहार लगायी थी। अब ज्योति के घर में स्थानीय विधायक द्वारा दी गई स्पोर्ट्स साइकिल के अलावा चार साइकिलें खड़ी हैं। छोटे से घर में उन्हें रखने की जगह तक नहीं है। गुरुग्राम में बैटरी वाली रिक्शा चलाने वाले मोहन पासवान का बीती जनवरी को एक्सीडेंट हो गया था। उस पर उनकी पत्नी फूलो देवी जो आंगनबाड़ी में काम करती थी, अपने चार बच्चों को लेकर पति के इलाज के लिए गुरुग्राम पहुंची थी। साठ हजार का कर्ज भी लिया, लेकिन मोहन ठीक नहीं हुआ। दस दिन की छुट्टी पूरी होने के बाद वह तीन बच्चों को लेकर गांव लौट गई, लेकिन ज्योति को पिता की देखभाल के लिए छोड़ गई। पिता ठीक न हुए, मगर कोरोना का कहर और बरपा। कुछ समय लोगों ने मदद की, मगर जब भूखे मरने की नौबत आई और मकान मालिक किराये के लिए तंग करने लगा तो ज्योति ने संकल्प जताया कि पापा साइकिल से चलेंगे। दूसरे लोग भी तो जा रहे हैं। पिता जाने के पक्ष में नहीं थे। बारह सौ किलोमीटर का सफर आसान न था। नन्ही-सी दुबली-पतली जान, भारी-भरकम पिता का बोझ कैसे साइकिल पर उठा पायेगी, इस बात की चिंता पिता को भी थी। मां ने भी आने को मना किया था कि गांव वाले कह रहे हैं कि ये दिल्ली-गुरुग्राम वाले कोरोना लेकर आ रहे हैं। मगर ज्योति की जिद के आगे किसी की न चली। शुरू-शुरू में ज्योति को साइकिल चलाने में दिक्कत हुई। पिता के भारी बोझ से साइकिल का अगला पहिया लहराता था। लेकिन ज्योति ने हिम्मत नहीं हारी। वे दिनभर चलते, फिर रास्ते में कोई पेट्रोल पंप देखते और रात बिताते और सुबह दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर आगे बढ़ जाते। लोग उन्हें देखकर हैरत में पड़ते। रास्ते में कुछ ट्रक वालों को भी उन पर दया आई, कुछ दूर साथ बैठाकर भी ले गये। लोगों ने मदद की, यूपी पुलिस ने भी खाना आदि की मदद की, मगर बिहार पुलिस ने कोई मदद नहीं की। बहरहाल, ज्योति के अदम्य साहस से इस परिवार की किस्मत बदल गई है। लोग कहने लगे हैं कि ऐसी बेटी सबको दे भगवान। बिहार सरकार चौकस हो गई। घर में तीन नल लग गये हैं, शौचालय तैयार हो गया। रोज नया सम्मान मिल रहा है। कई संस्थाओं ने पैसे दिये हैं, पिता मोहन पासवान कहते हैं, खाते में चैक नहीं किया। लेकिन मैं अपने बच्चों की पढ़ाई ठीक से करा पाऊंगा। कभी ज्योति पैसे न होने के कारण नौवीं की पढ़ाई नहीं कर पायी थी। अब बिहार सरकार ने उसे स्कूल में दाखिला दिला दिया है। खेल मंत्री किरन रिजिजू ने स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया को ज्योति का ट्रायल लेने को कहा है। अभी लंबे कष्टदायक सफर में कमर में हुए घावों का ज्योति इलाज करा रही है। फिर दिल्ली आकर ट्रायल देगी। सब कह रहे हैं भगवान सब को ज्योति जैसी बेटी दे। मगर यहां यह सवाल भी उठता है कि व्यवस्था वंचित समाज के प्रति कब संवेदनशील होगी, ताकि कोई ज्योति फिर साइकिल से अपने पिता को बैठाकर बारह सौ किलोमीटर का सफर न तय करे।