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खेल की खातिर छोड़ी सेना की नौकरी, अब ट्रैक पर दिखा रहा जलवा
श्रीप्रकाश शुक्ला
आगरा। उत्तर प्रदेश का ऐतिहासिक शहर आगरा दुनिया में ताजमहल की खूबसूरती और पेठे की मिठास के लिए जहां प्रसिद्ध है वहीं इस जिले की बाह तहसील की माटी के जांबाज खिलाड़ी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय खेल पटल पर अपने पौरुष का डंका बजाते हैं। यह कोरी कल्पना नहीं बल्कि हकीकत है। बाह की माटी में जन्में जांबाज एथलीटों की गौरवगाथा इतनी लम्बी है कि उस पर एक किताब लिखी जा सकती है। विजय सिंह चौहान, अजीत भदौरिया, अंकित शर्मा जहां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय तिरंगे को लहरा चुके हैं वहीं शिल्पी भदौरिया, मनीषा कुशवाह और कलिंजर का किंग नरेश यादव राष्ट्रीय खेल क्षितिज पर अपनी कामयाबी का परचम फहरा रहे हैं।
देश की सबसे बड़ी जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश की स्थिति खेलों के लिहाज से ताली पीटने वाली बेशक न हो लेकिन अपने अभिभावकों के प्रयासों से कुछ खिलाड़ी ऐसे जरूर निकल रहे हैं जिन पर हम नाज कर सकते हैं। ऐसे ही खिलाड़ियों में आगरा जिले की बाह तहसील का होनहार धावक नरेश यादव भी शामिल है। अब तक राष्ट्रीय स्तर पर दर्जनों पदक जीत चुके ट्रैक के इस सरताज का सपना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन करना है। नरेश यादव का कहना है कि मेरे सपनों को पंख प्रशिक्षक अमित खन्ना ने लगाए तो मैं सोहनवीर सर के निर्देशन में उड़ने लायक बना।
कुछ माह पहले बटेश्वर से सटे कलिंजर के किंग नरेश यादव ने वीरबहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय में हुई एथलेटिक्स प्रतियोगिता की 110 मीटर बाधा दौड़ में 14.54 सेकेण्ड का नया कीर्तिमान बनाया था। एथलेटिक्स विशेषज्ञों को ट्रैक के इस सरताज से बहुत उम्मीदें है। नाथूराम यादव के लाड़ले नरेश का ट्रैक में इस कदर जलवा है कि वह 2014 से लगातार 110 मीटर बाधा दौड़ में राष्ट्रीय स्तर पर उत्तर प्रदेश के लिए स्वर्णिम सफलताएं हासिल कर रहा है।
नरेश की उपलब्धियों को देखते हुए 2016 में भारतीय सेना ने उसे खेल कोटे के तहत सेवा का अवसर दिया था लेकिन 110 मीटर बाधा दौड़ में देश का गौरव बढ़ाने के लिए इस जांबाज धावक ने नौकरी छोड़ दी और अपने प्रशिक्षकों अमित खन्ना और सोहनवीर सर के सान्निध्य में नई दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में अपने आपको निखारने लगा। आज के युग में जहां युवा नौकरी के लिए दर-दर भटकते हैं वहीं नरेश ने खेलों के लिए नौकरी छोड़ने का फैसला लेकर एक नजीर स्थापित की है। नरेश यादव एक नेकदिल इंसान भी है। नरेश के प्रयासों और मदद से प्रीति पाल जैसी गरीब लड़की के सपनों को पंख लगे और वह 400 मीटर बाधा दौड़ में राष्ट्रीय पहचान बन चुकी है।
खेलपथ से हुई बातचीत में नरेश यादव ने बताया कि बाह तहसील से अब तक कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी निकल चुके हैं। अफसोस की बात है कि पिछले चार दशक से यहां के खिलाड़ियों द्वारा संचालनालय खेल उत्तर प्रदेश शासन से एक अदद स्टेडियम की मांग की जा रही है लेकिन आज तक इस समस्या की तरफ किसी का ध्यान नहीं गया। नरेश बताते हैं कि पूर्व खेल राज्य मंत्री रिपुदमन सिंह के प्रयासों से स्टेडियम के लिए बिजौली गांव में जमीन तो मिल गई लेकिन खेल और शिक्षा विभाग के बीच जमीन हस्तांतरण का ऐसा पेंच फंसा कि आज तक उसका निराकरण नहीं हो सका। बाह विधायक पक्षालिका सिंह और पूर्व मंत्री अरिदमन सिंह जमीन हस्तांतरण को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बात करने का आश्वासन दे चुके हैं। नरेश का कहना है कि यदि बाह में स्टेडियम तैयार हो जाता है तो यहां की प्रतिभाओं को न ही असमय खेल छोड़ना होगा और न ही अभ्यास के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ेंगी।
नरेश यादव का कहना है कि महंगाई के इस दौर में दिल्ली जैसी जगह में अभ्यास करना काफी मुश्किल काम है। कलिंजर के किंग का सपना ओलम्पिक में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए उस मिथक को तोड़ना है जोकि आज तक कोई भारतीय एथलीट नहीं कर सका। गौरतलब है कि 100 साल से अधिक के ओलम्पिक इतिहास में भारत का कोई भी एथलीट एथलेटिक्स में पोडियम तक नहीं पहुंचा है। आओ नरेश यादव का हौसला बढ़ाएं ताकि वह अपने सपने को साकार कर उत्तर प्रदेश के गौरव को चार चांद लगा सके।