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खेलो इंडिया यूथ गेम्स और आल इंडिया यूनिवर्सिटी में जीते गोल्ड
श्रीप्रकाश शुक्ला
गाजियाबाद। मैं देश के लिए दौड़ना चाहती हूं। मेरा अपनी आदर्श पी.टी. ऊषा की तरह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 400 मीटर हर्डल रेस में स्वर्णिम सफलता हासिल कर हिन्दुस्तान का नाम रोशन करना ही एकमात्र लक्ष्य है। मैं 15 मार्च से त्यागराज स्टेडियम तो नहीं गई पर घर में रहकर ही जीतोड़ मेहनत कर रही हूं। यह कहना है खेलो इंडिया यूथ गेम्स और आल इंडिया यूनिवर्सिटी में गोल्डन गर्ल बनी करकर माडल साहिबाबाद (गाजियाबाद) निवासी एक मजदूर की बेटी प्रीति पाल का।
खेलपथ से दूरभाष पर हुई विशेष बातचीत में विनेश-कांती पाल की बेटी प्रीति ने बताया कि वह स्कूली टाइम से ही खेलों में हिस्सा लेती रही लेकिन घर की स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि वह खेलों को अपना करियर बनाने के बारे में सोचती। प्रीति के पिता विनेश पाल एक प्राइवेट कम्पनी में मजदूरी कर किसी तरह से अपनी पत्नी और चार बच्चों का भरण-पोषण करते हैं। प्रीति भाई-बहनों में सबसे बड़ी है और सिर्फ इसे ही खेलों से लगाव भी है।
खेलों में प्रीति के सपनों को पंख लगाने का श्रेय बटेश्वर के पास गांव कलिंजर, तहसील बाह, जिला आगरा निवासी नरेश यादव को जाता है। नरेश यादव ने ही अपने प्रयासों से प्रीति को 400 मीटर हर्डल रेस में हिस्सा लेने को प्रेरित किया और उसे ट्रेनिंग भी दी। नरेश यादव खुद भी एक होनहार एथलीट हैं। वह खेलों में अपना करियर संवारने की खातिर ही नई दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम में दिन-रात मेहनत करते हैं। प्रीति बताती हैं कि मेरे गरीब माता-पिता नहीं चाहते थे कि मैं खिलाड़ी बनूं लेकिन नरेश सर ने ही उन्हें न केवल राजी किया बल्कि उसे स्पाइक सहित अन्य सुविधाएं मुहैया कराईं। प्रीति कहती हैं कि मेरे लिए नरेश सर इंसान नहीं भगवान हैं।
प्रीति 2018 से त्यागराज स्टेडियम में नरेश यादव की देखरेख में ही 400 मीटर हर्डल रेस में अपने आपको तैयार कर रही है। प्रीति मूलतः बलिया जिले के परसिया गांव की हैं। उसके दादा-दादी वहीं रहते हैं लेकिन वह बचपन से ही अपने माता-पिता के साथ करकर माडल साहिबाबाद (गाजियाबाद) में रहती है। प्रीति की स्नातक तक की शिक्षा नई दिल्ली में ही हुई है। गरीब विनेश की जांबाज एथलीट बेटी में प्रतिभा के साथ कड़ी मेहनत करने का जज्बा भी है। इसने इस साल आल इंडिया यूनिवर्सिटी के साथ खेलो इंडिया यूथ गेम्स में 400 मीटर हर्डल रेस में स्वर्ण पदक जीतकर जता दिया कि वह इस विधा में भारत का भविष्य है।
प्रीति की प्रतिभा और प्रदर्शन को देखते हुए भारतीय खेल प्राधिकरण ने उसे हर माह 10 हजार रुपये खेलवृत्ति देने का फैसला लिया है। कल यानि 29 मई को उसे भारतीय खेल प्राधिकरण की तरफ से अप्रैल से जून माह की खेलवृत्ति प्रदान की गई है। प्रीति इस मदद के लिए भारतीय खेल प्राधिकरण और भारत सरकार का आभार मानते हुए कहती है कि कम से कम वह इस पैसे से दो वक्त की रोटी खा सकेगी तथा अपने माता-पिता पर बोझ भी नहीं बनेगी।
आज महंगाई के इस दौर में प्रीति जैसी होनहार बेटियां भारत का गौरव बनें इसके लिए सरकार के साथ उद्योगपतियों को भी मदद के लिए आगे आना चाहिए। प्रीति को विश्वास है कि वह एक न एक दिन अपने देश का प्रतिनिधित्व करते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जरूर जीतेगी। कोरोना संक्रमण के इस दौर में वह रात को अपने छोटे भाई-बहन को साथ ले जाकर सड़कों पर अभ्यास करती है। प्रीति कहती हैं कि सर मैं भविष्य में 400 मीटर हर्डल रेस का कीर्तिमान बनाना चाहती हूं। काश प्रीति अपने मकसद में कामयाब हो ताकि एथलेटिक्स में भारत का गौरव बढ़े।