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शिक्षा, खेल और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में बनाई सबसे अलग पहचान
मनीषा रोहतगी शुक्ला
कानपुर। शिक्षा, खेल और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में युवा पीढ़ी के पथ प्रदर्शक और यूनाइटेड पब्लिक स्कूल कानपुर के संस्थापक डा. इंद्र मोहन रोहतगी कभी न थकने वाली शख्सियत हैं। जीवन के 75 वसंत देख चुके डा. रोहतगी आज हर उस युवा के लिए नजीर हैं जोकि थोड़ी सी परेशानी आने पर ही हताश और निराश हो जाता है। हर इंसान की तरह डा. रोहतगी के लम्बे जीवनकाल में अनगिनत परेशानियां आईं लेकिन उन्होंने हर उस परेशानी का न केवल डटकर सामना किया बल्कि उससे निजात पाने में भी सफलता हासिल की।
डा. रोहतगी बाल्यकाल से ही राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत सामाजिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे। उदार, मृदुभाषी डा. रोहतगी कहते हैं कि यह महत्व नहीं रखता कि आपके जीवन में कितने साल हैं बल्कि यह मायने रखता है कि आपके साल कितने जीवंत हैं। पटना (बिहार) में 15 फरवरी, 1945 को जन्में डा. रोहतगी ने कानपुर में शिक्षा, खेल और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में जो प्रतिमान स्थापित किए हैं, वह किसी से छिपे नहीं हैं। स्टैटिक्स से एम.एस.सी. डा. रोहतगी ने आईआईटी कानपुर से कम्प्यूटर डिप्लोमा किया है। शिक्षा के क्षेत्र में स्थापित प्रतिमानों के लिए इन्हें यूनिवर्सिटी आफ एशिया से डी.लिट की उपाधि भी मिली हुई है।
डा. रोहतगी ने लम्बे समय तक एशिया महाद्वीप के जाने-माने दयानंद एंग्लो वैदिक कालेज में युवा पीढ़ी को स्टैटिक्स की गहन बातों से रूबरू कराया। डा. रोहतगी का कहना है कि मैं हर उस व्यक्ति को पसंद करता हूं, जिसे शिक्षा, खेल और अपने देश पर गर्व हो। डा. रोहतगी बताते हैं कि उनके जीवन में भी मुसीबतें बहुत आईं लेकिन हमने और हमारे परिवार ने हिम्मत नहीं हारी। मैंने उच्च तालीम लेने का फैसला करने के साथ यह तय किया कि यदि युवा पीढ़ी के हाथों शिक्षा की लौ थमा दी जाए तो हमारा देश विकास के पथ पर तीव्रगति से आगे बढ़ सकता है।
डा. रोहतगी कहते हैं कि मेरे लिए शिक्षा के क्षेत्र में मजबूती से आगे बढ़ना आसान काम नहीं था, इसमें कई तरह की रुकावटें आईं लेकिन मैंने निराश होने की बजाय सकारात्मक नजरिए से काम लिया। वह बताते हैं कि अगर हम पहले यह जान लें कि हम कहां हैं और किस दिशा में जा रहे हैं, तो हमें क्या और कैसे करना चाहिए इसका बेहतर निर्णय लिया जा सकता है। डा. रोहतगी बताते हैं कि मैंने बतौर प्राध्यापक सेवानिवृत्ति के बाद यह निर्णय लिया कि अपना शेष जीवन नई पीढ़ी को सुसंस्कारित करने में बिताऊंगा।
डा. रोहतगी की कथनी और करनी में जरा भी अंतर नहीं है। वह जो ठान लेते हैं उसे करके ही दम लेते हैं। इनके मजबूत इरादों का ही सुफल है कि आज कानपुर महानगर में यूनाइटेड पब्लिक स्कूल, यूनाइटेड इंस्टीट्यूट आफ डिजाइनिंग, यूनाइटेड इंस्टीट्यूट आफ डिजाइनिंग एण्ड मास कम्युनिकेशन, यूनाइटेड इंस्टीट्यूट आफ म्यूजिक एण्ड फाइन आर्ट जैसी ख्यातिनाम शैक्षिक संस्थाएं भारत के भविष्य को शिक्षा रूपी मशाल सौंप रही हैं।
डा. रोहतगी को लेखन, कला, म्यूजिक और खेलों से अगाध लगाव है। समाजसेवा की नसीहत इन्हें अपने मेडिकल आफीसर पिता डा. जे.डी. रोहतगी से मिली। डा. जे.डी. रोहतगी ने एनटीसी मिल्स कानपुर में मेडिकल आफीसर्स के रूप में लम्बे समय तक सेवाएं दी थीं। डा. इंद्र मोहन रोहतगी विभिन्न सामाजिक और खेल संस्थाओं से भी लम्बे समय तक जुड़े रहे। डा. रोहतगी मर्चेंट चेम्बर आफ उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश वेटर्न क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष तथा रोटरी क्लब आफ कानपुर वेस्ट के अध्यक्ष पदों पर रह चुके हैं। डा. रोहतगी को शिक्षा, खेल और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में दिए गए योगदान के लिए अब तक दर्जनों अवार्ड मिल चुके हैं। इनमें डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम एज्यूकेशन एक्सीलेंस अवार्ड तो डाक्टर आफ लिटरेचर (डी.लिट) डिग्री फ्राम यूनिवर्सिटी आफ एशिया प्रमुख हैं।
डा. रोहतगी के हाथों रोपे गए शिक्षा रूपी पौधे अब कानपुर में वटवृक्ष का रूप ले चुके हैं। इन्हे आजादी के सात दशक बाद भी भारतीय शिक्षा पद्धति का सही मुकाम पर नहीं पहुंच पाना काफी चिंतित करता है। वह कहते हैं कि जिस विषय को लेकर हमारी चिन्ता है, उस पर अगर आज भी हम निष्कर्ष के तौर पर कुछ कर पाने में सफल हों तभी यह श्रमसाध्य कार्य हमारी आने वाली पीढ़ियों को दिशा देगा। अभी तक हम जिस शिक्षा प्रणाली का संचालन कर रहे हैं- वह ज्ञान नहीं किताब देती है, कपड़े देती है, खाना और डिग्री देती है। कुछ को रोजगार भी देती है। शिक्षा को लेकर समय-समय पर वाद-विवाद होता आ रहा है। आजादी के बाद से सर्वाधिक आलोचना के केन्द्र में हमारी शिक्षा प्रणाली ही रही है। अफसोस की बात है कि आज छात्र-छात्राओं की असफलता की जिम्मेदारी लेने को कोई भी तैयार नहीं है।
डा. रोहतगी कहते हैं कि आज देश भर में कई परीक्षाएं एकरूपता की भेंट चढ़ रही हैं लेकिन सभी राज्यों में हमारी युवा पीढ़ी को एक जैसी तालीम नहीं मिल रही। देश में भाषाएं भले ही अनेक हों लेकिन एक जैसा पाठ्यक्रम तैयार किया जा सकता है। इनका कहना है कि अभिभावक अपने बच्चों को छुटपन से ही नैतिक शिक्षा, प्रकृति, पर्यावरण, प्रदूषण, बिजली, पानी की समस्या और यातायात के नियमों के बारे में जानकारी दे सकते हैं। हम बच्चों को उन अपने पूर्वजों के बारे में क्यों नहीं बताते जिनके योगदान के बिना हम आज जहां हैं वहां भी नहीं हो सकते थे।
डा. रोहतगी कहते हैं कि देश में 26 प्रतिशत छात्र कोचिंग के सहारे पढ़ाई करते हैं। शासकीय स्कूल मिड डे मील के मुकाम बनकर रह गये हैं। हमारे सरकारी स्कूलों की प्रार्थना लाचार है। वह सत्य, निष्ठा और अहिंसा का पाठ बेचारगी में पढ़ाती है। शहर के कान्वेंट स्कूल कनेक्ट गॉड कर देते हैं। उसमें याचना भगवान से नहीं गॉड से हो जाती है। भगवान और गॉड का भेद बिम्बात्मक और सांस्कृतिक है, जो सतह से देखकर नहीं समझा जा सकता।
डा. रोहतगी कहते हैं कि अर्थशास्त्र का महत्व समाजशास्त्र के बिना सम्भव नहीं है, मनोविज्ञान के बिना अर्थशास्त्र संचालित हो ही नहीं सकती लिहाजा विश्वविद्यालयों को भविष्य निर्माण और प्राथमिक पाठशालाओं को चरित्र निर्माण का केंद्र बनाया जाना चाहिए। प्रयास ऐसे हों कि यौवन की दहलीज पर कदम रखने से पहले ही युवा दो-तीन भाषाओं में परिपक्वता हासिल कर लें ताकि आगे वह सिर्फ विशेषज्ञता हासिल करने पर ध्यान दे सकें। आज की युवा पीढ़ी में ऐसी समझ विकसित करने की जरूरत है ताकि वह समाज और देश को देखने का अपना नजरिया बदल सकें।