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श्रीप्रकाश शुक्ला
ग्वालियर। हमारे आसपास की दुनिया में कई बार ऐसे उदाहरण आते हैं, जो हमें अहसास दिलाते हैं कि हमारा जीवन रुकने का नाम नहीं है बल्कि आगे बढ़ने का नाम है। जीवन में कभी भी कोई भी मुसीबत आपको परेशान तो कर सकती है लेकिन आप का रास्ता नहीं रोक सकती है। आज हम आपको ऐसी ही कहानी बता रहे हैं, जिसे जानने के बाद आप उस लड़की के जज्बे को सलाम करने से खुद को रोक नहीं पाएंगे। ये कहानी है शालिनी सरस्वती की। जिसके हौसले और हिम्मत की दाद देनी होगी। शालिनी ने हाथ-पैर गंवाने के बाद अक्षमताओं को अपने हौसले से मात दी है। उन्होंने जिंदगी की चुनौती का डटकर सामना किया और अपनी एक नई पहचान बनाई।
बेंगलुरु की रहने वाली शालिनी की कहानी सुनने के बाद आपके हौसले बुलंद हो जाएंगे। शालिनी सरस्वती के हाथ पैर नहीं हैं। दिव्यांग होने के बावजूद हट्टे-कट्टे लोगों को चुनौती दे डाली। शालिनी का हौसला देखने को तब मिला जब दो साल पहले देश की मशहूर कम्पनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विस(टीसीएस) ने बेंगलुरु में 10 किमी मैराथन रेस का आयोजन किया।
टीसीएस वर्ल्ड 10 के नाम की यह रेस कोई दिव्यांगों की रेस नहीं थी बल्कि ये रेस सभी सामान्य लोगों के लिए थी। लेकिन रेस में एक लड़की दिखी जिसके न दोनों हाथ थे न पैर। वह आर्टिफिसियल पैर से चलकर ट्रैक पर पहुंची थी। आयोजकों ने बहुत समझाया-बुझाया मगर लड़की नहीं मानी क्योंकि वो खुद को दूसरों से अलग व कमजोर नहीं समझती थी। इसीलिए उसने रेस में भाग लिया और पूरे दस किलोमीटर की दौड़ सफलतापूर्वक नाप डाली। रेस में कौन जीता इसे देखने आये दर्शको को कोई फर्क नहीं पड़ा। लेकिन वहां मौजूद सभी लोगों की नज़र में शालिनी ही सही विजेता बनी। शालिनी के हौसले को उड़ान इसलिए मिली क्योंकि वह खुद को बेचारी नहीं बहादुर समझती है।
शालिनी जन्म से विकलांग नहीं थी। साल 2013 में शालिनी शादी की सालगिरह मनाने कंबोडिया गई थी। घर में नए मेहमान के आने की खुशी थी। लेकिन क्या पता था कि शालिनी की इन खुशियों को किसी की नज़र लग जायेगी। हुआ यूं कि कंबोडिया से लौटने के बाद शालिनी को बुखार हो गया। जांच के बाद डॉक्टर ने डेंगू बताया और इलाज शुरू हो गया। इस बीच शालिनी बैक्टीरिया इंफेक्शन की चपेट में आ गई। जिंदगी वेंटीलेटर पर हो गई। गंभीर बीमारी के चलते शालिनी ने अपना बच्चा खो दिया। दुखों का पहाड़ तब और टूट पड़ा, जब शरीर पर गैंगरीन का भी अटैक हो गया।
डॉक्टरों ने कहा-जिंदगी चाहिए तो बायां हाथ काटना पड़ेगा। अगले दिन डॉक्टरों ने बुलाया। जिंदगी बचाने के लिए शालिनी को आना ही पड़ा। शालिनी चीखती रही और कुछ ही देर बाद उसका बायां हाथ जिस्म से अलग हो चुका था। कुछ ही महीने बाद बाएं हाथ की बीमारी दाएं हाथ को लग गई। छह महीने के बीच दायां हाथ अपने आप झूल गया। यह देखकर डॉक्टरों ने शालिनी की दोनों टांगें भी काटने का फैसला लिया क्योंकि डॉक्टरों को रोग का खतरा पूरे शरीर में फैलने का था। इस नाते शरीर से मृत कोशिकाएं तत्काल हटानी थीं। जो भी हो शालिनी ने हार न मानते हुए एक नई पटकथा लिखने की ठान ली। आज यह बेटी समाज का नजीर है।