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विश्व पुलिस खेलों की गोलाफेंक और डिस्कस थ्रो स्पर्धाओं में जीते स्वर्ण पदक
श्रीप्रकाश शुक्ला
अमेठी। मौजूदा दौर में पक्षपात और पूर्वाग्रह जैसे भाव जहां जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को दूषित कर रहे हैं वहीं खेल प्रवीणता एवं योग्यता के दुर्लभ पर्याय बने हुए हैं। खेलने-कूदने वाला समाज ही स्वस्थ और तंदुरुस्त समाज होता है। बेटियों को लेकर हमारे समाज की मानसिकता कुछ भी हो लेकिन भारतीय फौलादी बेटियां खेलों के माध्यम से देश-दुनिया में शान से भारतीय तिरंगा लहरा रही हैं। इन कामयाब बेटियों में अमेठी की डिस्कस थ्रोवर और शाटपुटर नेहा सिंह का भी शुमार है। इस एथलीट ने अपने शानदार और दमदार प्रदर्शन से सामाजिक परम्पराओं का न केवल मुंहतोड़ जवाब दिया बल्कि दुनिया में सीआईएसएफ की छवि को भी चार चांद लगाए।
गांव गोरहा, पोस्ट भादर, जिला अमेठी निवासी अशोक कुमार सिंह के घर जन्मी नेहा सिंह को बचपन से ही खेलों का जुनून सवार था। अच्छी कद-काठी को देखते हुए नेहा ने डिस्कस और गोलाफेंक स्पर्धाओं में खेल करियर बनाने का निश्चय किया। नेहा सिंह 2004 से लगातार खेलों को समर्पित हैं। शुरुआती दौर में नेहा की प्रतिभा को निखारने का काम के.डी. सिंह बाबू स्टेडियम में एथलेटिक्स प्रशिक्षक रहीं विमला मैडम ने किया। नेहा सिंह को खेलों की बदौलत ही 2008 में सीआईएसएफ में सेवा का अवसर मिला। आज यह भोपाल में सीआईएसएफ में एएसआई के पद पर कार्यरत हैं। नेहा इस समय जूनियर एशियन मेडलिस्ट रहे जगवीर सिंह से प्रशिक्षण ले रही हैं।
पुणे में हुई 20वीं एशियन एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में सातवें स्थान पर रहीं नेहा सिंह ने बेलफास्ट में हुए विश्व पुलिस खेलों की शाटपुट और डिस्कस थ्रो स्पर्धाओं में स्वर्णिम सफलता हासिल कर दुनिया को यह जता दिया कि भारतीय बेटियां फौलाद की बनी हैं। अमेठी की इस बेटी ने 17वीं फेडरेशन कप नेशनल सीनियर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की गोलाफेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक तो 53वीं नेशनल इंटर स्टेट सीनियर एथलेटिक्स चैम्पियशिप में रजत पदक जीतकर उत्तर प्रदेश को गौरवान्वित किया। नेहा 53वीं नेशनल ओपेन एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में दूसरे तथा 54वें नेशनल ओपेन एथलेटिक्स चैम्पियशिप में तीसरे स्थान पर रहीं।
सीआईएसएफ में आने के बाद भी नेहा सिंह खेलों पर बराबर ध्यान दे रही हैं। जगवीर सिंह की देखरेख में अपना खेल निखार रहीं नेहा सिंह का लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश को एथलेटिक्स में गौरव दिलाना है। नेहा कहती हैं कि स्वस्थ एवं खुशहाल समाज के निर्माण में खेलों की महत्वपूर्ण भूमिका है। खेलों में दुनिया को बदलने की शक्ति होती है। हमारे समक्ष तमाम आसन्न चुनौतियों के अलावा एक महत्वपूर्ण लक्ष्य यह भी होना चाहिए कि हमें देश में खेल संस्कृति को पल्लवित-पुष्पित करना है। नेहा कहती हैं कि आज जरूरत भारतीय समाज को खेल देखने वाले से खेल खेलने वाले समाज में बदलने की है। हमें महज सहभागिता से आगे बढ़कर अब खेलों में जीतने का मंत्र तलाशना होगा।
नेहा कहती हैं कि आज खेलों की अहमियत को नकारा नहीं जा सकता। एक कड़वा सत्य यह भी कि अपनी आबादी और अर्थव्यवस्था के लिहाज से खेलों के मोर्चे पर हम अपनी क्षमताओं से काफी कमतर हैं। विषम परिस्थितियों के होते हुए भी बेटियों का खेल क्षेत्र में नाम रोशन करना बहुत बड़ी बात है। आओ बेटियों के स्वर्णिम प्रदर्शन पर तालियां पीटें और उन्हें खेल की दिशा में प्रोत्साहित करें ताकि स्वस्थ भारत की संकल्पना को साकार किया जा सके।