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अब छात्राओं में देखती हैं अपना अक्स
मनीषा शुक्ला
कानपुर। एक सफल क्रिकेटर बनने का रास्ता ज्यादा लम्बा नहीं है लेकिन मुश्किल जरूर है। इसमें मेहनत है, लगन है, जुनून की हद तक खेल में खो जाने की जरूरत भी। किसी क्रिकेटर की प्रतिभा किन-किन पड़ावों में क्या-क्या गुल खिलाती है, यह सब उसकी मेहनत और लगन पर निर्भर करता है। कभी-कभी खास लम्हों पर जब अच्छे प्रदर्शन की जरूरत होती है तब कुछ खिलाड़ियों का मुकद्दर दगा दे जाता है और उसे ताउम्र सिर्फ पछतावा होता है। प्रतिभा की धनी जोशीली सीमा सिन्हा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। अब हरफनमौला सीमा सिन्हा को अपना अक्स छात्राओं में दिखता है लिहाजा वह दिन-रात सिर्फ क्रिकेट को जीती हैं।
एक स्पोर्ट्स टीचर और क्रिकेट कोच के रूप में एयरफोर्स स्कूल चकेरी कानपुर में कार्यरत सीमा सिन्हा को बचपन से ही क्रिकेट से प्यार था। 11 साल की उम्र में ही इन्होंने कानपुर के क्रिकेटर क्लब से नाता जोड़ लिया था। सीमा को क्रिकेट के मैदान तक पहुंचाने का श्रेय अर्चना मिश्रा को जाता है। रेलवे में कार्यरत अर्चना मिश्रा अपने समय की कानपुर की बेजोड़ क्रिकेटर रही हैं सो उन्होंने सीमा को क्रिकेट की तरफ प्रेरित किया। अर्चना मिश्रा को अपना आदर्श मानने वाली सीमा की क्रिकेट को प्रशिक्षक स्वर्गीय दिनेश मिश्रा ने निखारा। सीमा सिन्हा की जहां तक बात है यह जब एस.डी.बी. इंटर स्कूल में कक्षा छह में पढ़ती थीं तभी क्रिकेट खेलने की शुरुआत कर दी थी। इन्होंने बीएसएसडी कालेज कानपुर से स्नातक और परास्नातक की डिग्रियां हासिल की हैं।
सीमा सिन्हा ने 1986 से 2002 तक लगातार उत्तर प्रदेश महिला क्रिकेट टीम का बतौर प्रारम्भिक बल्लेबाज प्रतिनिधित्व किया। इन्हें आफ स्पिन गेंदबाजी में भी महारत हासिल थी। 1986 से 2001 तक सेण्ट्रल जोन से खेलते हुए सीमा ने कई शानदार पारियां खेलीं तो अपनी चकराती गेंदों से बल्लेबाजों को काफी परेशान किया। भारतीय प्रशिक्षण शिविर में हिस्सा ले चुकी सीमा सिन्हा ने रानी झांसी क्रिकेट प्रतियोगिता, इंदिरा प्रियदर्शिनी ट्राफी में भी अपने शानदार प्रदर्शन से सभी को प्रभावित किया था। सीमा सिन्हा एक दिवसीय मैचों की भी उत्कृष्ट खिलाड़ी रही हैं। इन्होंने उत्तर प्रदेश टीम का प्रतिनिधित्व करते हुए कई यादगार पारियां खेलीं। सीमा ने पांच बार जूनियर नेशनल, 10 बार सीनियर नेशनल, 14 बार सेण्ट्रल जोन चैम्पियनशिप तथा सात बार रानी झांसी ट्राफी में अपना जौहर दिखाया है। सीमा श्रीलंका के खिलाफ श्रीलंका में सात मैचों की सीरीज भी खेल चुकी हैं। इस दौरे में इनकी स्कूल प्रबंधन ने काफी आर्थिक मदद की थी। सीमा सिन्हा कानपुर महिला क्रिकेट की सचिव भी रहीं।
एक क्रिकेटर के रूप में कानपुर को गौरवान्वित करने वाली सीमा सिन्हा ने क्रिकेट के आयोजनों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है। सीमा सिन्हा की देखरेख में कानपुर में मध्य क्षेत्र क्रिकेट चैम्पियनशिप, जूनियर नेशनल क्रिकेट, भारत-वेस्टइंडीज वनडे मैच, भारत-श्रीलंका वनडे मैच खेले गए। क्रिकेट को पूरी तरह से समर्पित सीमा सिन्हा फिलवक्त एयरफोर्स स्कूल चकेरी कानपुर में एक स्पोर्ट्स टीचर और क्रिकेट कोच के रूप में सेवाएं दे रही हैं। सीमा सिन्हा से प्रशिक्षण हासिल दो नेशनल तथा छह राज्यस्तरीय खिलाड़ी फिलवक्त अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं। सीमा के प्रशिक्षण से एयरफोर्स स्कूल चकेरी की टीम मैरीनैश कमाण्ड ट्राफी पर भी कब्जा जमा चुकी है।
एक समर्पित और समझदार खिलाड़ी होने के नाते आज वह अपने स्कूल में सभी खेलों के खिलाड़ियों को सफलता के गुर सिखा रही हैं। सीमा सिन्हा खेलपथ से अपने अनुभव साझा करते हुए कहती हैं कि खेल के मैदान में जो लड़ा वही जीता है। वह कहती हैं कि असफलता से घबराने की बजाय धीरज से काम लेने की जरूरत होती है। असफलता यह सिद्ध करती है कि हमने सफलता का प्रयास सही मन से नहीं किया है।
जीत-हार खेल का हिस्सा है। हार से निराश होने की बजाय हमारा ध्येय बस खेलते रहना और अच्छा परफॉर्म करते रहना होना चाहिए। जो बच्चा परफॉर्म करेगा उसे चांस जरूर मिलेगा। वह कहती हैं कि अब क्रिकेट में अवसरों की कमी नहीं है। आईपीएल क्रिकेट का ऐसा पड़ाव है जिसमें पैसा है, शोहरत है और सबसे बड़ी बात इससे नेशनल टीम का रास्ता भी खुलता है। सीमा सिन्हा कहती हैं कि देश की महिला क्रिकेट टीम को ज्यादा मीडिया कवरेज भले न मिलती हो लेकिन भारतीय महिला क्रिकेट टीम खामोशी के साथ लगातार अच्छा परफॉर्म करने की कोशिश में लगी रहती है। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड द्वारा महिला क्रिकेट को भी अपने साम्राज्य में समेट लेने के बाद स्थिति में काफी सुधार हुआ है। सच कहें तो सीमा सिन्हा कानपुर में महिला सशक्तीकरण का नायाब उदाहरण हैं।