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फोर्थ डॉन ब्लैक बेल्ट हासिल बसंत सिंह क्योकुशीन कराटे फाउंडेशन के हैं नेशनल चेयरमैन
मनीषा शुक्ला
कानपुर। मार्शल आर्ट का नाम सुनते ही हर किसी को आत्मरक्षा का बोध होने लगता है। मार्शल आर्ट आत्मरक्षा की एक ऐसी विधा है जिसमें हम अपनी सांस पर नियंत्रण, अनुशासन तथा एकाग्रता से न केवल अपनी रक्षा कर सकते हैं बल्कि प्रतिद्वंद्वी के भी छक्के छुड़ा सकते हैं। सेठ आनंदराम जैपुरिया स्कूल कानपुर के स्पोर्ट्स टीचर बसंत सिंह फोर्थ डॉन ब्लैक बेल्ट हासिल इंटरनेशनल कराटे ऑर्गेनाइजेशन जापान के मान्यता प्राप्त प्रशिक्षक हैं। बसंत सिंह क्योकुशीन कराटे फाउंडेशन के नेशनल चेयरमैन भी हैं, जिनके मार्गदर्शन में 16 राज्यों के हजारों छात्र-छात्राएं कराटे के माध्यम से आत्मरक्षा के गुर सीख रहे हैं।
बसंत सिंह ने 2016 में फोर्थ डॉन ब्लैक बेल्ट हासिल किया था। वह बताते हैं कि जूडो और कराटे मूलतः जापान के मार्शल आर्ट्स खेल हैं। एक तरह ये यह दोनों युद्धक खेल हैं। जूडो और कराटे में बिना हथियार के अपनी रक्षा और आक्रमण करना सिखाया जाता है। साथ ही सशस्त्र विरोधियों के खिलाफ खुद का बचाव करना भी बताया जाता है। जूडो और कराटे का अंतर बताते हुए बसंत सिंह कहते हैं कि जूडो में हाथ और पैरों का प्रयोग किया जाता है। इसमें विरोधी को मारने की बजाय उससे प्रतिस्पर्धा करने पर जोर दिया जाता है। हम जूडो को नरम और रक्षात्मक मार्शल आर्ट कह सकते हैं। श्री सिंह कहते हैं कि जूडो बहुत कुछ कुश्ती की तरह है। इनका कहना है कि कराटे में भी हाथों और पैरों का उपयोग किया जाता है लेकिन यह जूडो से इसलिए अलग है क्योंकि इसमें विरोधी को गम्भीर चोट पहुंचाई जा सकती है। कराटे में विरोधी को पराजित करने के लिए घुटने और कोहनी का काफी प्रयोग किया जाता है। सच कहें तो कराटे एक कठिन और आक्रामक मार्शल आर्ट है।
कराटे में सराहनीय कार्य के लिए अब तक बसंत सिंह को दर्जनों बार सम्मानित किया जा चुका है। बसंत सिंह क्योकुशीन कराटे फाउंडेशन ऑफ इंडिया, नई दिल्ली से जुड़े हैं। इस फाउंडेशन से जुड़कर देश के लगभग 16 राज्यों के 10 हजार से अधिक छात्र-छात्राएं आत्मरक्षा के गुर सीख रहे हैं। बसंत सिंह ने 30 नवम्बर, 2016 को जापान के माय वासी स्टेडियम में लगभग 40 लोगों को परास्त कर फोर्थ डॉन ब्लैक बेल्ट परीक्षा पास की थी। श्री सिंह क्योकुशीन कराटे फाउंडेशन के नेशनल चेयरमैन और इंटरनेशनल कराटे ऑर्गेनाइजेशन जापान के मान्यता प्राप्त प्रशिक्षक हैं।
बसंत सिंह बताते हैं कि विगत वर्ष हुई नेशनल कराटे प्रतियोगिता में तीन हजार से अधिक छात्र-छात्राओं ने अपना कौशल दिखाया था जिसमें छह सौ से अधिक युवाओं ने मेडल जीते थे। इनमें से लगभग 20 लोगों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शिरकत कर रजत और कांस्य पदक से अपने गले सजाए थे। श्री सिंह बताते हैं कि आज क्योकुशीन कराटे फाउंडेशन के बैनर तले लगभग 16 राज्यों में कराटे की कक्षाएं चल रही हैं। प्रशिक्षण देने वालों में लगभग 150 लोग ब्लैक बेल्ट तो कुछ सेकेंड डॉन और कुछ थर्ड डॉन भी शामिल हैं। बसंत सिंह खेलपथ के माध्यम से कराटे में रुचि रखने वाले सभी खिलाड़ियों को बताते हैं कि कराटे का ब्लैक बेल्ट प्रमाण पत्र जापान द्वारा ही दिया जाता है, वह क्यों न किसी भी स्टाइल का हो। श्री सिंह कहते हैं कि यह डिग्री देने का अधिकार केवल जापान को ही है क्योंकि कराटे शब्द जापान का ही है और जैपनीज लिखने का भी अधिकार केवल जापान को ही है।
छात्र-छात्राओं को आगाह करते हुए वह कहते हैं कि सर्टीफिकेट पर जैपनीज लिखने का राइट सिर्फ जापान को ही है, अतः इस प्रमाण-पत्र के प्रति बहुत ही जागरूक रहें। श्री सिंह बताते हैं कि इसका एक समय निर्धारित है कि इतने समय के उपरांत ही आप प्रथम डिग्री के बाद दूसरी डिग्री के लिए परीक्षा दे सकते हैं। बसंत सिंह बताते हैं कि कराटे एक बहुत महत्वपूर्ण आदर्श अनुशासन में रखने वाली कला है। अगर किसी खिलाड़ी ने इसको अपने जीवन में अच्छी तरह से उतार लिया तो यह मान लीजिए वह स्वयं को अपनी जिन्दगी के अंतिम समय तक स्वस्थ और मानसिक रूप से मजबूत रख सकेगा। कराटे व्यक्ति को नशे से भी दूर रखने वाला खेल है।