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अब प्रतिभाओं के कौशल को निखारने में तल्लीन
मनीषा शुक्ला
कानपुर। घर की ड्योढ़ी लांघकर अब बेटियां भी खेलों की दुनिया में छा रही हैं। असुविधाओं और तरह-तरह की पाबंदियों के बावजूद वे अपने परिवार, समाज और देश-प्रदेश का नाम रोशन कर रही हैं। ऐसी ही बेटियों में कानपुर की श्वेता श्रीवास्तव का नाम भी शुमार है। अपने स्कूल-कालेज जीवन में श्वेता ने जहां वालीबाल और हाकी में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अलग पहचान बनाई वहीं आज वह नई तरुणाई को स्पोर्ट्स एज्यूकेशन की तालीम देते हुए खेलों के महत्व से रू-ब-रू करा रही हैं।
श्वेता की बचपन से ही खेलों में रुचि रही है। वह पढ़ाई के साथ ही खेलों को भी बराबर महत्व देती रहीं। इन्होंने अपने खेलों की शुरुआत केन्द्रीय विद्यालय क्रमांक-दो में अध्ययन करते समय ही कर दी थी। अपने स्कूली जीवन में श्वेता ने जहां टेबल टेनिस, वालीबाल, हाकी तथा एथलेटिक्स में शानदार सफलताएं हासिल कीं वहीं सुरेन्द्र नाथ सेन बालिका विद्यालय माल रोड कानपुर में अध्ययन के समय इन्होंने ओपन फेडरेशन आफ इंडिया की वालीबाल स्पर्धाओं में चार बार सहभागिता की। श्वेता ने उत्तर प्रदेश वालीबाल टीम का प्रतिनिधित्व करते हुए एक स्वर्ण तथा एक रजत पदक हासिल किया।
इन्होंने पंडित पृथ्वी नाथ महाविद्यालय परेड कानपुर की तरफ से लगातार तीन वर्ष तक टीम की कप्तान रहते हुए वालीबाल में अपनी प्रतिभा का न केवल जलवा दिखाया बल्कि अपने महाविद्यालय को इंटर यूनिवर्सिटी में चैम्पियन भी बनाया। श्वेता ने तीनों वर्ष नार्थ जोन यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधित्व भी किया। श्वेता ने यूथ नेशनल वालीबाल के साथ ही हाकी में दो आल इंडिया यूनिवर्सिटी खेलों में भी सहभागिता की। खेलों में शानदार सफलता हासिल करने के बाद श्वेता ने इसी क्षेत्र में अपना करियर संवारने का निश्चय किया। इन्होंने झांसी यूनिवर्सिटी से बीपीएड, सीएसजेएम यूनिवर्सिटी कानपुर से एमपीएड तो नोएडा कालेज आफ नोएडा से एम.फिल की तालीम हासिल की। श्वेता श्रीवास्तव ने आंध्र प्रदेश से पीएचडी की और आज वह बंशी कालेज आफ एज्यूकेशन बिठूर नागपुर में बीपीएड विभाग की विभागाध्यक्ष पद पर सेवाएं दे रही हैं।
श्वेता श्रीवास्तव कहती हैं कि बेटियां हर क्षेत्र में अपनी योग्यता दिखाने का हौसला रखती हैं। जरूरत है तो उन्हें प्रोत्साहन देने की। वह कहती हैं कि उत्तर प्रदेश में ऐसी बेटियों की फेहरिस्त लम्बी है, जिन्होंने न सिर्फ अपने दम पर सफलता हासिल की, बल्कि माता-पिता व प्रदेश का नाम रोशन किया है। चाहे खेल का मैदान हो, व्यवसाय हो या हो पढ़ाई, बेटियों ने अपनी प्रतिभा और काबिलियत से सबको दिखा दिया है कि वह किसी से कम नहीं हैं। श्वेता कहती हैं कि अतीत में भले ही खेल का क्षेत्र बेटियों के लिए मुफीद न रहा हो आज इसमें बेशुमार अवसर हैं। मैं आज जो कुछ भी हूं इसमें खेलों का ही सबसे बड़ा योगदान है। मैं अभिभावकों से आग्रह करती हूं कि बेटों की ही तरह बेटियों को भी हर क्षेत्र में अवसर दिए जाने चाहिए। बेटियां भी हर अवसर की हकदार हैं।