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आधे-अधूरे कामों को बीच में छोड़कर आगे बढ़ते जाना और बात-बेबात पर ‘चलता है’ का सरसरी अंदाज़ अब लॉकडाउन के दौर के बाद कतई नहीं चलने वाला। बहानेबाज़ी यूं भी बेकार है। कभी ट्रैफ़िक जाम का बहाना, कभी बत्ती गुल का, तो कभी भूलने का। आये दिन लोगबाग समय पर न पहुंचने या काम न करने के बहाने झाड़ते रहते हैं। बिग-बी अमिताभ बच्चन के बारे में जगज़ाहिर है कि वह बुख़ार या दर्द से बेहाल विषम से विषम परिस्थितियों में भी, निर्माताओं का नुक़सान बचाने के लिए, शूटिंग रद्द नहीं होने देते। काम के प्रति समर्पित भाव और टाल-मटोल न करने की आदत के चलते उन्होंने गर्दिश के दिनों से भी बखूबी उभर कर, नए सिरे से फिर उसी कामयाबी की बुलंदियों को छुआ है। आज कारोबार और रोज़गार के सामने बिग-बी एक मिसाल बनकर खड़े हैं।
लॉकडाउन के बाद उत्पन्न परिस्थितियों में हर छोटे-बड़े को बढ़-चढ़कर ऐसे कार्य करने होंगे, जो पहले न किए हों। मन में अडिग विश्वास जगाना होगा कि मैं विजयी होकर ही बाहर निकलूंगा। विश्वास की डोर थाम कर, ज़्यादातर सफल शख़्स डूबते हैं और फिर से खड़े होकर उबरते हैं। ऐसे लोगों की विजयी गाथाएं जानें-पढ़ें, जो गिरे और फिर जद्दोजहद के बाद जीते हैं। हर क्षण अपनी क़ाबिलियत को निखारने-संवारने में जुट जाएं। पहले से बेहतर, सक्षम और कुशलपूर्ण इनसान के रूप में सामने आएं। और फिर, जिस दिन आप अपने बारे में पूरी ज़िम्मेदारी लेते हैं, उसी दिन आप बहाने बनाना छोड़ देते हैं। तभी से, आप शिखर की तरफ़ यात्रा शुरू कर देते हैं। अक्सर लोग ईश्वर और गुरु पर इतना विश्वास करने लगते हैं कि उनका ख़ुद पर से यक़ीन उठ जाता है। यहीं से उनकी गिरावट शुरू हो जाती है। तय है कि ख़ुद पर यक़ीन होगा, तो दुनिया की कोई ताक़त हरा नहीं सकती। हार-हार कर भी अब्राहम लिंकन की तरह जीता जा सकता है। ग़ौरतलब है कि वह 15 बार चुनाव हारने के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे। ऐसी और कई मिसालें हैं—साइकिल पर घूम-घूमकर आधी ज़िंदगी गुज़ारने के बावजूद अगर करसन भाई पटेल ‘निरमा’ वाशिंग पॉउडर बना-बेच कर वाहवाही बटोर सकते हैं तो कोई और क्यों नहीं? स्वर कोकिला लता मंगेशकर को बचपन से परिवार की ज़िम्मेदारी उठानी पड़ी। बावजूद इसके वह डगमगाईं नहीं। वहीं, भारत रत्न से नवाजे धुरंधर बल्लेबाज़ सचिन तेंदुलकर का क़द नाटा है, फिर भी क़द्दावर क्रिकेटर बनकर उभरे। उधर, केएफसी के संस्थापक ने 60 साल की उम्र में पहला फ़ास्ट फ़ूड रेस्टोरेंट खोला और छा गए। सफलता का अचूक कायदा है कि अपनी शक्तियों को बिखरने मत दीजिए। न ही नए कार्य का श्रीगणेश करने के विचार से ही किसी कार्य को अधूरा छोड़िए। विवेक को सदा जाग्रत रखिए। सदैव रचनात्मक योग्यता के बलबूते पर हरेक इनसान अपने भाग्य का नियंत्रक भी बन सकता है। थिंकर और मॉडर्न गुरु शिव खेड़ा लिखते हैं, ‘मौत और ज़िंदगी में से हर कोई हमेशा ज़िंदगी को चुनता है। हमारे आसपास लगातार कुछ ऐसा होता रहता है जो पॉज़िटिव है। यही ज़िंदगी है, बहानेबाज़ी करते-करते ठहर जाना ज़िंदगी नहीं है। आशा जगाइए, तो निराशा ख़ुद-ब-ख़ुद छंट जाएगी। आशा कहीं खोजने की ज़रूरत नहीं, अपने भीतर ही है।’ इसलिए आज ही अपना सर्वोत्तम प्रयास कीजिए। कल की प्रतीक्षा में मत बैठिए। भविष्य के बारे में सोच-सोचकर चिंतित होना छोड़िए। आत्मबल जुटाइए, ताकि हर हालात से निपटने में सक्षम बनें। सफल वही होते हैं, जिनमें आत्मबल होता है। इसलिए बहानेबाज़ी और टाल-मटोल से निकल कर, हर छोटा-बड़ा काम पूरी लगन-ध्यान से तुरंत कीजिए। दौड़ में हारने के कुछ दिन बाद ख़रगोश ने कछुए से पूछा, ‘क्यों रे, तू इतना छोटा, इतना धीमा, फिर भी तू दौड़ में कैसे जीत गया? कहीं जादू-वादू तो नहीं जानता।’ ‘हां भैया, जानता हूं जादू-कड़ी मेहनत का। तुम अपनी फुर्ती के घमंड से ही आलस्य से लम्बी तानकर कर सो गए। मैं आलस्य त्याग कर चलता रहा और लक्ष्य तक पहुंच गया।’ बचपन से ही यह बोधकथा सुन-सुनकर हर कोई जान चुका है कि आलस्य तरक़्क़ी का सबसे बड़ा शत्रु है। फिर किस उधेड़बुन में डूबे हैं। अपने भीतर विश्वास जगाएं, हर हाल में जीतकर निकालने का। तभी लॉकडाउन के बाद बेहतर और निपुण इनसान बनकर उभरेंगे। कुछ रामबाण मंत्र हैं-पहला, अपने भीतर तेज आग को जलाइए, जिससे हौसला क़तई नहीं गिरेगा। दूसरा, निरंतर चलते रहें, डटे रहें। यानी मेहनत जारी रखें। इसका भरपूर लाभ आज नहीं तो कल मिलेगा। तीसरा, संयम और धैर्य का आंचल सदा थामे रहें। कारोबार हो या परिवार, बोलचाल से मिठास न जाने पाए। और चौथा, तमाम विपरीत हालात में भी अपना आपा न खोएं, पारा न चढ़ाएं। विवेकपूर्ण फ़ैसले लेकर आगे बढ़ें और सुनहरे कल के लिए आज को संवारें।
-अमिताभ स.