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खेलों ने दिलाया राष्ट्रपति सेवा मेडल
नूतन शुक्ला
कानपुर। जिस उम्र में प्रायः खिलाड़ी मैदान छोड़ देते हैं उस उम्र में जांबाज पुलिस इंस्पेक्टर नीरज शर्मा जैसे लोग मानदरेवतन का मान बढ़ाने के लिए दिन-रात एक करते हैं। नीरज को असम्भव शब्द से नफरत है। इनका मानना है कि असम्भव शब्द नकारात्मकता का सूचक है। नीरज शर्मा की कभी हार न मानने की प्रबल इच्छाशक्ति ही इन्हें खेलों का सूरमा खिलाड़ी बनाती है। उत्तर प्रदेश पुलिस में सब इंस्पेक्टर नीरज शर्मा अपनी जांबाजी ही नहीं खेलों में शानदार कौशल के लिए देशभर में जाने जाते हैं। वह अब तक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक-दो नहीं बल्कि दर्जनों पदक जीत चुके हैं। राष्ट्रपति सेवा मेडल से विभूषित नीरज शर्मा खेलों में उत्तर प्रदेश की शान हैं।
उत्तर प्रदेश पुलिस के सब इंस्पेक्टर नीरज शर्मा ने दो साल पहले जब हार्ट सर्जरी कराई थी तब लोगों को लगा था कि अब इनका खेल समाप्त हो चुका है लेकिन इन्होंने अपनी प्रबल इच्छाशक्ति से सभी आशंकाओं को निर्मूल साबित करते हुए एक नई पटकथा लिख दी है। 55 की उम्र पार कर चुके नीरज शर्मा का दिल बचपन का है। यूपी पुलिस सेंट्रल स्टोर, कानपुर में तैनात नीरज शर्मा गजब के दिलेर और जुनूनी एथलीट हैं। वह जिस भी प्रतियोगिता में उतरते हैं कोई न कोई मेडल लाकर ही दम लेते हैं। नीरज डिस्कस थ्रो, शाटपुट, जेवलिन थ्रो, वालीबाल और 110 मीटर बाधा दौड़ के सदाबहार खिलाड़ी हैं। दो साल पहले जब उनकी हार्ट सर्जरी हुई थी उसके तुरंत बाद वह अलीगढ़ में हुई स्टेट एथलेटिक चैम्पियनशिप में तीन गोल्ड मेडल जीतने में सफल हुए थे।
खेलों में नीरज की कहानी बहुत ही दिलचस्प और प्रेरणास्पद है। मूलत: एटा जिले के रहने वाले नीरज का बचपन बहुत ही तंगहाली में बीता। गरीबी के चलते इनके पास बचपन में पहनने के लिये जूते तक नहीं होते थे। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के बावजूद इन्हें खेलों से बेहद प्यार था। इनके पिता सूरजपाल शर्मा शिक्षक तो चाचा महावीर प्रसाद शर्मा सेना में कैप्टन थे। चाचा महावीर प्रसाद शर्मा की हौसलाअफजाई ने ही नीरज को खेलों की तरफ प्रेरित किया। खेलों में उतरते ही नीरज की जिन्दगी को नई दिशा और लक्ष्य मिल गया।
नीरज के एक चाचा महेश चंद्र शर्मा पुलिस में इंस्पेक्टर थे। 1979 में एटा के जवाहरलाल नेहरू डिग्री कालेज से ग्रेजुएट नीरज को जेवलिन थ्रो, डिस्कस थ्रो और 110 मीटर हर्डल रेस (बाधा दौड़) में जब आगरा यूनिवर्सिटी का चैम्पियन बनने का गौरव हासिल हुआ तो उनके फौजी चाचा को लगा कि हमारा भतीजा देश के लिए भी कुछ कर सकता है। सो, 1981 में वह नीरज को मिलिट्री में भर्ती कराने के लिए ले गये। बचपन में नीरज का वालीबाल खेल से बेहद लगाव था, यही लगाव इनके जीवन के लिए संजीवनी साबित हुआ। नीरज का खेल कोटे से कांस्टेबल पद पर चयन हो गया। पहले ही प्रयास में मिली सफलता से नीरज को अपने आप पर भरोसा बढ़ गया। जब वह फौज में अपने सपनों को पंख लगाने की सोच ही रहे थे कि उनके परिवार में एक ट्रेजडी हो गई और वह फौज में नहीं जा पाए। नीरज को दुःख तो हुआ लेकिन उसी वक्त उन्होंने तय कर लिया कि वह वर्दी पहन कर ही दम लेंगे।
कहते हैं कि सपने देखने भर से मंजिल नहीं मिलती लिहाजा उन्होंने खेल में जीतोड़ मेहनत शुरू कर दी। दो साल की अथक मेहनत के बाद नीरज का सपना साकार हो गया और वह उत्तर प्रदेश पुलिस में खेल कोटे से कांस्टेबल पद पर चयनित हो गए, फिर क्या उन्होंने पुलिस सेवा के साथ खेलों में जीजान से मेहनत करनी शुरू कर दी। नीरज की मेहनत रंग लाई और उनका चयन उत्तर प्रदेश पुलिस वालीबाल टीम में हो गया। उस टीम के कप्तान अर्जुन अवार्डी डीवाईएसपी रणवीर सिंह थे। नीरज का शुरुआती रुझान ज्यादातर वालीबाल पर था लेकिन उनके बाएं घुटने में दिक्कत के कारण उन्हें इस खेल से तौबा करनी पड़ी। वालीबाल छोड़ने के बाद इन्होंने एथलेटिक्स में मशक्कत शुरू कर दी। वालीबाल की तरह नीरज ने एथलेटिक्स में भी सफलता के नए आयाम स्थापित करना शुरू कर दिए। डिस्कस थ्रो और जेवलिन थ्रो तो इनके प्रिय इवेंट थे ही इन्होंने 110 मीटर बाधा दौड़ में भी चपलता हासिल कर ली। नीरज अब मास्टर्स एथलेटिक्स में प्रदेश का गौरव बढ़ाते हैं। खेलों में नीरज शर्मा की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हासिल नायाब सफलताएं हर उस युवा के लिए नजीर हैं, जोकि खेलों में अपना करियर बनाना चाहते हैं। नीरज शर्मा को पुलिस में सराहनीय कार्य और खेलों में स्वर्णिम योगदान के लिए राष्ट्रपति सेवा मेडल से सम्मानित किया जा चुका है।