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प्रीति मिश्रा नवोदय विद्यालयों में जगा रहीं खेलों की अलख
नूतन शुक्ला
कानपुर। शिक्षक का दर्जा समाज में हमेशा से ही पूजनीय रहा है। कोई उसे गुरु कहता है, कोई शिक्षक कहता है, कोई आचार्य कहता है तो कोई अध्यापक या टीचर कहता है। दरअसल, ये सभी शब्द एक ऐसे व्यक्ति को इंगित करते हैं जिस पर देश के भविष्य और राष्ट्र निर्माण का महती दायित्व होता है। अपने इसी दायित्व का तन-मन से निर्वहन कर रही हैं कानपुर की प्रीति मिश्रा। बचपन से ही खेलों में अभिरुचि होने के नाते प्रीति की प्रीति आज सिर्फ उन बच्चों से है जिनमें खेलों को लेकर कुछ कर गुजरने की इच्छा-शक्ति विद्यमान है। प्रीति मिश्रा लगभग 25 साल से बतौर शारीरिक शिक्षक न केवल नवोदय विद्यालयों के छात्र-छात्राओं में खेलों की अलख जगा रही हैं बल्कि उन्हें स्वावलम्बी बनने की राह भी दिखा रही हैं।
प्रीति मिश्रा अपने अध्ययनकाल को याद करते हुए कहती हैं कि मेरे जीवन में के.वी.आई.आई.टी. के स्पोर्ट्स टीचर नरेश चौधरी, पूर्णा देवी खन्ना इंटर कालेज की स्पोर्ट्स टीचर रमाकांती और अनूप त्रिवेदी सर का विशेष योगदान है। सच कहें तो इन्हीं खेल गुरुवों के सहयोग से मुझमें खेलों के प्रति दिलचस्पी पैदा हुई और खेलों के जो भी अवसर मिले उनमें सफलता का परचम फहराया। प्रीति अपने कालेज जीवन में कुशल फर्राटा धावक होने के साथ ही बेहतरीन लांग जम्पर रही हैं। प्रीति ने खेलों में अपने अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए ग्वालियर के लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षण संस्थान से फिजिकल एज्यूकेशन की शिक्षा पूरी की। शिक्षा पूरी करने के बाद प्रीति को नवोदय विद्यालय में बतौर स्पोर्ट्स टीचर सेवा का अवसर मिला। प्रीति मिश्रा जिस भी नवोदय विद्यालय में रही हैं वहां इन्होंने न केवल खेलों की अलख जगाई बल्कि छात्र-छात्राओं को नेशनल स्कूल खेलों में उत्कृष्ट सफलता के लिए भी प्रेरित किया। प्रीति से प्रशिक्षण हासिल कई छात्र-छात्राएं अपने प्रदर्शन से कानपुर सहित उत्तर प्रदेश का नाम राष्ट्रीय फलक पर गौरवान्वित कर चुके हैं।
प्रीति मिश्रा को वैसे तो सभी खेलों से लगाव है लेकिन एथलेटिक्स, हैण्डबाल, खो-खो एवं कबड्डी में वह विशेष योग्यता रखती हैं। प्रीति न केवल खिलाड़ियों की प्रतिभा निखारती हैं बल्कि उन्हें शारीरिक शिक्षा के प्रति भी प्रेरित करती हैं। प्रीति से तालीम हासिल करने वालों में राधामनी को एथलेटिक्स में नेशनल चैम्पियन होने का गौरव हासिल हुआ। इसी कड़ी में यशवी पाठक कई साल तक एथलेटिक्स और हैण्डबाल में स्कूल गेम्स फेडरेशन आफ इंडिया के नेशनल खेलों में अपनी प्रतिभा और कौशल का नायाब उदाहरण पेश करने में सफल रहीं। शारीरिक शिक्षा के महत्व को प्रीति से बेहतर भला कौन जान सकता है। वह बच्चों को खेलों की बारीकियां सिखाने के साथ ही उन्हें शारीरिक शिक्षा की तरफ भी निरंतर प्रेरित करती हैं। प्रीति की प्रेरणा का ही सुफल है कि उनके कई शिष्य एल.एन.आई.पी.ई. ग्वालियर से शिक्षा ग्रहण करने के बाद आज विभिन्न राज्यों में उच्च पदों पर सुशोभित हैं तो कई भारत ही नहीं विदेशों में भी शारीरिक शिक्षा की लौ प्रज्वलित कर रहे हैं।
प्रीति मिश्रा कहती हैं कि संसार के सम्पूर्ण ऐश्वर्य के पीछे मानव मस्तिष्क के विकास का इतिहास गुंथा हुआ है लेकिन यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि केवल मस्तिष्क के विकास से सफलता नहीं हासिल की जा सकती। सफलता के लिए मस्तिष्क विकास के साथ-साथ शारीरिक शक्ति का भी होना अनिवार्य है। मस्तिष्क के विकास के लिए जहां शिक्षा की आवश्यकता है वहीं शारीरिक शक्ति के लिए खेलों की महती आवश्यकता है। शिक्षा और खेल एक-दूसरे के पूरक हैं। प्रीति कहती हैं कि खेलों से मनुष्य ताकतवर ही नहीं बनता बल्कि उसमें क्षमाशीलता, दया, स्वाभिमान, आज्ञा पालन, अनुशासन आदि गुणों का भी समावेश होता है। आज खेलों के महत्व को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। सच तो यह है कि मस्तिष्क कितना ही सबल क्यों न हो पर चलना पैरों से ही पड़ता है। अतः युवा पीढ़ी का शिक्षण के साथ-साथ क्रीड़ा में भी कुशल होना उसके उज्ज्वल भविष्य का प्रतीक है। यह कहने में जरा भी संकोच नहीं कि खेलों से ही राष्ट्रीयता और अंतरराष्ट्रीयता की भावना का उदय होता है।