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खेल और प्रशिक्षण में स्थापित किए नए प्रतिमान
नूतन शुक्ला
कानपुर। आत्मविश्वास और पूर्ण मनोयोग से यदि लक्ष्य प्राप्ति का प्रयास किया जाए तो साधनों के अभाव में भी सफलता प्राप्त की जा सकती है। इस बात को सिद्ध कर दिखाया है कानपुर की रानी चंदेल ने। रानी चंदेल ने अपनी मेहनत और लगन से गुरबत पर फतह हासिल करते हुए खेलों में ऐसा मुकाम बनाया है जिसे हर कोई हासिल नहीं कर सकता। बात स्वयं की उपलब्धियों की रही हो या प्रशिक्षण देकर खिलाड़ी तैयार करने की, दोनों ही विधाओं में रानी चंदेल ने नए प्रतिमान स्थापित किए हैं।
स्कूली जीवन में स्थानीय पूर्णा देवी बालिका इंटर कालेज में अध्ययन के दौरान रानी चंदेल की नैसर्गिक क्षमता को यदि किसी ने पहचाना तो वह थीं उनकी शिक्षिका रमाकांती तिवारी। कहते हैं कि एक जौहरी ही हीरे की असल पहचान कर सकता है, सो रानी के लिए रमाकांती तिवारी मैडम ही जौहरी साबित हुईं। उन्होंने रानी को एथलेटिक्स में सहभागिता के लिए प्रोत्साहित किया। रानी ने तिवारी मैडम को निराश न करते हुए पहले जिलास्तरीय स्कूली खेलों में ही धमाल मचा दिया, उसके बाद राज्यस्तरीय प्रतियोगिता में भी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर प्रदेश भर में कानपुर का लोहा मनवाया।
शुरुआती सफलताओं के बाद रानी की आंखों में राष्ट्रीय फलक पर शोहरत हासिल करने का जुनून सवार हो गया। उस दौर में यद्यपि कानपुर में एथलेटिक्स की बुनियादी सुविधाएं न के बराबर थीं लेकिन रानी ने गुरबत से बाहर निकल कर सफलता हासिल करने की मानो कसम खा ली। कहते हैं इंसान यदि मन से पराजय का वरण न करे तो उसे कोई हरा ही नहीं सकता। रानी ने भी हार न मानते हुए सफलता दर सफलता ऐसे प्रतिमान स्थापित किए जिन्हें उस दौर में कोई यदि तोड़ सकता था तो वह कोई और नहीं स्वयं रानी चंदेल ही थीं। इस शानदार सफलता के लिए रानी को 1993 में रोटरी क्लब की तरफ से सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के सम्मान से भी नवाजा गया।
एथलेटिक्स के साथ-साथ रानी चंदेल ने खो-खो और वालीबाल प्रतियोगिताओं में भी सहभागिता की और शानदार सफलता हासिल कर अपने आपको कानपुर का हरफनमौला खिलाड़ी साबित कर दिखाया। रानी ने कानपुर विश्वविद्यालय में स्नातक की पढ़ाई के दौरान अंतर-विश्वविद्यालयीन प्रतियोगिताओं में धाक जमाई तो राष्ट्रीय एथलेटिक्स में उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हुए अपनी पसंदीदा 800 मीटर दौड़ में नया कीर्तिमान स्थापित किया। खेलों में शानदार सफलता के बाद रानी चंदेल ने रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर से शारीरिक शिक्षा में स्नातक तथा परास्नातक की शिक्षा पूरी करने के बाद कानपुर को ही अपना कर्मक्षेत्र मान लिया।
वर्ष 2005 में रानी ने गुरु हर राय एकेडमी में प्रशिक्षण की शुरुआत की और कम समय में ही राज्यस्तर के कई खिलाड़ी तैयार कर दिखाए। रानी की काबिलियत को देखते हुए 2006 में उन्हें कानपुर के सेठ आनंद राय जैपुरिया स्कूल में बतौर खेल शिक्षक सेवा का अवसर मिला। पिछले 14 साल में रानी ने इस विद्यालय को एक से बढ़कर एक राज्य और राष्ट्रीय स्तर के चैम्पियन खिलाड़ी दिए। इस विद्यालय के आयुष अवस्थी ने राष्ट्रीय स्तर पर गोलाफेंक और डिस्कस थ्रो में तो चैतन्य ने हर्डल स्पर्धा में स्वर्णिम सफलता हासिल की है। रानी के तरकश से मधुलिका और विधी भल्ला जैसी बालिका खिलाड़ी भी निकली हैं। कानपुर में एथलेटिक्स की जब भी बात होती है रानी चंदेल का नाम खेल बिरादर की जुबां पर बरबस ही आ जाता है। आओ रानी चंदेल की सफलता पर गौरव का अहसास करते हुए ताली पीटें ताकि देशभर में कानपुर का नाम रोशन होता रहे।