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एटीके का खिलाड़ी बेरोजगार खेलपथ प्रतिनिधि नई दिल्ली। कोरोना का कहर कोलकाता के फुटबॉलरों पर बुरी तरह बरपा है। फरवरी से शुरू होने वाला सीजन आधा बीत चुका है और एक भी मैच नहीं हुआ। बहुत से खिलाड़ी जिनकी जीविका सीजन पर निर्भर थी, भुखमरी के कगार पर हैं तो कई की नौकरी चली गई है। पश्चिम बंगाल के 25000 फुटबॉलर प्रीमियर लीग, डिवीजन टूर्नामेंट और जिला स्तर पर 5-5 या 7-7 खिलाड़ियों की टीमों के ‘खेप’ टूर्नामेंट में खेलते हैं। इन्हें प्रति मैच 2000 से 10000 रुपए मिलते हैं।
पूर्व फुटबॉलर मेहताब हुसैन ने बताया कि अधिकतर क्लब टीम तक नहीं बना पाए। लॉकडाउन खत्म होने पर टीम गठन हो भी जाए तो ट्रेनिंग का समय ही नहीं मिलेगा। जून में मानसून आ जाएगा और सितंबर-अक्टूबर के बाद बड़े स्टेडियम क्रिकेट के लिए बुक हो जाएंगे। महताब कहते हैं कि वे 50 ऐसे खिलाड़ियों को जानते हैं जो निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा नौकरी से निकाल दिए गए हैं। इंडियन फुटबॉल एसोसिएशन के प. बंगाल इकाई के महासचिव जयदीप मुखर्जी कहते हैं कि वह साथियों से उपायों पर बात कर रहे हैं जिससे बेरोजगार खिलाड़ियों की मदद की जाए। यूनाइटेड स्पोर्ट्स क्लब के मालिक नवाब भट्टाचार्य आईएसएल में सौरव गांगुली के स्वामित्व वाली एटीके के खिलाड़ी विश्वजीत दास का उदाहरण देते हैं जो पिछले एक वर्ष से रोल्स बनाने की दुकान चलाते थे लेकिन कोरोना की वजह से अब बेरोजगार हैं। ईस्ट बंगाल, मोहम्मडन स्पोर्टिंग और मोहन बागान जैसी प्रीमियर लीग की टीमें ही लॉकडाउन से अप्रभावित हैं क्योंकि उनके खिलाड़ियों की कमाई करोड़ों में होती है।