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अंशकालिक मानदेय खेल प्रशिक्षकों की 25 मार्च को कर दी छुट्टी
श्रीप्रकाश शुक्ला
लखनऊ। हुकूमतों की कथनी और करनी पर कोई विश्वास करे भी तो आखिर कैसे? कुछ दिन पहले की ही बात है जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश की सल्तनत के सरताज योगी आदित्यनाथ ने बुझे मन से उद्योगपतियों से आह्वान किया था कि कोरोना संक्रमणकाल में किसी कर्मचारी को नौकरी से कार्यमुक्त न किया जाए। तब बहुत सुकून महसूस हुआ था। कर्मचारी भी अंतर्मन से बलैयां ले रहे थे लेकिन दुःख तब हुआ जब 25 मार्च को उत्तर प्रदेश सरकार के खेल मंत्रालय ने अपने ही एक-दो नहीं बल्कि चार सौ से अधिक अंशकालिक मानदेय खेल प्रशिक्षकों को कार्यमुक्त करने का फरमान सुना दिया। कार्यमुक्त प्रशिक्षकों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के भी 22 प्रशिक्षक शामिल हैं। कार्यमुक्त प्रशिक्षकों में कुछ तो 25 साल से भी अधिक समय से खिलाड़ियों की प्रतिभा को निखार रहे थे।
उत्तर प्रदेश खेल मंत्रालय के चार सौ से अधिक प्रशिक्षकों को कार्यमुक्त किए जाने के फरमान से खेल प्रशिक्षकों की रोजी-रोटी तो प्रतिभाशाली खिलाड़ियों से उनके खेल-गुरु छिन गए हैं। प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी को इस बात का संज्ञान है भी या नहीं राम जानें लेकिन इस निर्णय की जितनी भी निन्दा की जाए वह कम है। उत्तर प्रदेश की जहां तक बात यहां 1974 में खेल विभाग अस्तित्व में आया था। यहां हर समय-काल में एक से बढ़कर एक खिलाड़ी हुए हैं। आज भी यहां प्रतिभाओं की कमी नहीं है लेकिन खेल विभाग प्रशिक्षकों को बंधुआ मजदूर मानते हुए तेली का काम तमोली से करा रहा है।
प्रदेश में खेल विभाग द्वारा खेलों के विकास एवं खिलाड़ियों के खेल में निखार लाने के बड़े-बड़े दावे किए जाते रहे हैं लेकिन जमीनी स्तर पर देखें तो खेल प्रशिक्षकों की खुशहाली का सूरज कभी उदय नहीं हुआ। खेल विभाग द्वारा विभिन्न जनपदों में आवश्यक अवस्थापना सुविधाएं यथा स्टेडियम, बहुउद्देशीय क्रीड़ांगन, तरणताल, बैडमिंटन, टेनिस, वालीबाल कोर्ट, जिम्नेजियम हाल, हाकी, फुटबाल जैसे खेलों के लिए खेल मैदान, एथलेटिक्स ट्रैक आदि बनवाने के प्रयास सिर्फ इसलिए किए गए ताकि पदाधिकारियों की पाकेट गर्म होती रहे। उत्तर प्रदेश खेल निदेशालय हर वर्ष अंशकालिक मानदेय प्रशिक्षकों की नियुक्ति करता है, जिनमें कुछ को रुपये 25 हजार तो कुछ को रुपये 20 हजार प्रतिमाह मानदेय के रूप में देता है। इनकी नियुक्ति भी 12 महीने की बजाय (अप्रैल से फरवरी तक) अधिकतम 10 माह की अवधि के लिए ही की जाती है। इस साल प्रशिक्षकों को फरवरी के बजाय 25 मार्च तक सेवा का अवसर दिया गया जोकि एक रिकार्ड है।
इस साल लग रहा था कि प्रदेश में तदर्थ प्रशिक्षकों की प्रशिक्षण व्यवस्था पटरी पर लौट आएगी और अप्रैल के प्रथम सप्ताह में ही लगभग 450 प्रशिक्षकों की नियुक्ति हो जाएगी। पिछले साल जून माह में जब 400 प्रशिक्षकों की नियुक्ति हुई थी तब लगा था कि प्रदेश में खेलों और खिलाड़ियों के दिन बहुरेंगे लेकिन योगी सरकार में भी प्रशिक्षकों का पेट भरने की बजाय उनके अरमानों का गला घोंटा गया। हास्यास्पद और सोचने की बात तो यह है कि मुख्यमंत्री उद्योगपतियों को चेताते रहे लेकिन उनके मातहत खेल विभाग के आलाधिकारियों ने प्रशिक्षकों को बेरोजगार करने में जरा भी विलम्ब नहीं किया। आलाधिकारियों की हेकड़ी तो देखिए इन्होंने वाराणसी के सिगरा स्थित डा. सम्पूर्णानंद स्पोर्ट्स स्टेडियम और डा. भीमराव अम्बेडकर क्रीड़ा संकुल, बड़ा लालपुर में पिछले सत्र में नियुक्त किए गए 22 प्रशिक्षकों की भी छुट्टी कर दी गई। मोदी और योगी जी यह सिर्फ साढ़े चार सौ खेल प्रशिक्षकों के पेट का नहीं बल्कि इतने ही परिवारों के भरण-पोषण का सवाल है। इंसाफ तो यह कहता है इन प्रशिक्षकों को नियमित सेवा का अवसर मिले क्योंकि खेल-गुरुओं को निराश कर कोई प्रदेश और देश खेल महाशक्ति नहीं बन सकता।
क्या कहते हैं प्रशिक्षक
उत्तर प्रदेश खेल मंत्रालय द्वारा कार्यमुक्त किए गए इन प्रशिक्षकों का कहना है कि उन्हें 25 मार्च को क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा बताया गया कि अब उनकी सेवाओं की आवश्यकता नहीं है। पहले तो प्रशिक्षकों से कहा गया था कि अप्रैल में उनकी पुनः नियुक्ति कर दी जाएगी लेकिन कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन हो गया, लॉकडाउन कब खुलेगा और उनकी कब नियुक्ति होगी कहना कठिन है। जो भी हो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कहने के बाद भी लॉकडाउन में ही हम लोगों को सेवामुक्त कर दिया जाना काफी पीड़ादायक है। लगभग 25 साल से खेल विभाग में अंशकालिक मानदेय प्रशिक्षक रहे खेल-गुरुओं का कहना है कि हम अगर शिकायत करते हैं तो अधिकारी अगले वर्ष हमें रखेंगे इसकी कोई गारंटी नहीं। सच कहें तो इस समय खुद और परिवार का पेट भरना कठिन है। जो भी हो उत्तर प्रदेश के खेल प्रशिक्षकों की स्थिति भय गति सांप-छछूंदर जैसी हो गई है।