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पैरालम्पिक की पहली पदकधारी महिला जरा सी चोट जहां इंसान का हौसला तोड़ देती है वहीं हरियाणा की बेटी दीपा मलिक ने स्पाइनल ट्यूमर सर्जरी की असहनीय पीड़ा को सहते हुए अपनी निःशक्तता को ही अपना अमोघ-अस्त्र बना लिया। जिस उम्र में लोग खेल से संन्यास ले लेते हैं, उस उम्र में उन्होंने खेल मैदानों में धूम मचा रखी है। दीपा मलिक ने 36 साल की उम्र में खेलों की शुरुआत की। आज दीपा शौकिया नहीं बल्कि प्रतिस्पर्धी खिलाड़ी हैं। उम्र से अधिक जीते उनके पदक इस बात का सुबूत हैं। सोनीपत के भैंसवाल गांव की दीपा मलिक ने स्पाइनल ट्यूमर से न केवल जंग जीती बल्कि खेलों में पदकों के अम्बार लगा डाले। रियो पैरालम्पिक में चांदी का पदक जीतते ही उनके नाम एक ऐसा ऐतिहासिक कीर्तिमान दर्ज हो गया, जो दीपा की खेल अमरता की कहानी हमेशा बयां करेगा। यह ऐसा कीर्तिमान है जो कभी नहीं टूटेगा। 30 सितम्बर, 1970 को हरियाणा के सोनीपत में जन्मीं दीपा मलिक को 18 साल पहले 29 साल की उम्र में लकवा मार गया और कमर के नीचे का पूरा हिस्सा पैरेलाइज्ड हो गया। इस बीमारी की शुरुआत में पहले उनकी टांगों में कमजोरी की शिकायत आई, बाद में पता चला कि उनके स्पाइनल कॉर्ड में ट्यूमर है। इसके बाद उनका ऑपरेशन हुआ लेकिन 1999 में दोबारा परेशानी महसूस होने के बाद उनका दूसरा ऑपरेशन किया गया। उनकी तीसरी सर्जरी से पहले डाक्टरों ने उन्हें बता दिया था कि अब उनकी बाकी जिंदगी ह्वीलचेयर पर ही बीतेगी। उन्हें सात दिन का वक्त दिया गया था कि वह जी भरकर चल-फिर लें। अंततः दीपा की स्पाइनल ट्यूमर सर्जरी हुई और उनको 183 टांके लगे। दीपा मलिक का जीवन बेहद उतार-चढ़ाव भरा है। जिस समय वह ट्यूमर जैसी तकलीफदेह बीमारी से जूझ रही थीं उस समय उनके पति कर्नल विक्रम सिंह कारगिल में देश के लिए जंग लड़ रहे थे। दीपा सिर्फ खिलाड़ी ही नहीं हैं बल्कि सामाजिक कार्यों में शिरकत करने के अलावा लिखने में भी उनकी खासी रुचि है। दीपा वाणी की सरताज हैं। दीपा मलिक गम्भीर बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए कैम्पेन चलाने के साथ ही सामाजिक संस्थाओं के कार्यक्रमों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं। दीपा अपनी बायोग्राफी से लेकर खिलाड़ियों के बारे में भी खूब लिखती हैं। जोश और जीवटता की मिसाल दीपा का ग्वालियर से भी खासा लगाव है। उन्होंने लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा संस्थान के तरणताल में डा. वी.के. डबास से तैराकी के गुर सीखे और तैराकी में दर्जनों पदक जीतकर यह साबित किया कि वह वाकई चैम्पियन खिलाड़ी हैं। दीपा की उम्र 47 साल है और उनके पास विभिन्न खेलों के 50 से अधिक स्वर्ण पदक हैं। दीपा मलिक अपने देश ही नहीं विदेशों में भी अपनी खेल प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी हैं। दीपा शॉटपुटर ही नहीं आला दर्जे की स्वीमर, बाइकर, जेवलिन व डिस्कस थ्रोअर भी हैं। दीपा ने एथलेटिक्स में अपनी कामयाबी की दास्तां सात साल पहले (2009 में) शॉटपुट में लिखी थी। उन्हें तब कांसे का तमगा मिला था लेकिन उन्होंने 2010 में ऐसा कमाल किया जोकि आज तक कोई भारतीय पुरुष खिलाड़ी भी नहीं कर सका। दीपा ने इंग्लैंड में शॉटपुट, डिस्कस थ्रो और जेवलिन थ्रो में गोल्ड मैडल जीतकर मादरेवतन को गौरवान्वित किया। उस साल दीपा के सितारे बुलंदी पर रहे और वह चीन में पैरा एशियन गेम्स में कांस्य पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। दीपा ने 2011 में वर्ल्ड एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में रजत पदक तो उसी साल वर्ल्ड गेम्स में दो कांस्य पदक जीते। वर्ष 2012 में मलेशिया ओपन एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में जेवलिन व डिस्कस थ्रो में दो स्वर्ण पदक जीतकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। 2014 में बीजिंग में हुए चाइना ओपन एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में उन्होंने शॉटपुट में स्वर्ण पदक जीता। उसी साल इंचियोन एशियन पैरा गेम्स में रजत पदक जीकर रिकॉर्ड बनाया। वर्ष 2016 भी दीपा मलिक के लिए बेहतर रहा। पैरालम्पिक में चांदी का पदक जीतने से पहले ही दुबई में एशियन चैम्पियनशिप में जेवलिन थ्रो में स्वर्ण व शॉटपुट में कांस्य पदक जीता था। दीपा मलिक रिटायर्ड कर्नल विक्रम सिंह की पत्नी हैं। उनके पिता कर्नल बी.के. नागपाल भी आर्मी में ही थे। दीपा के परिवार में पति के अलावा दो बेटियां हैं। उनकी बड़ी बेटी का नाम देविका और छोटी बेटी का नाम अम्बिका है। दीपा मलिक एक खिलाड़ी होने के साथ ही एक एंटरप्रेनर भी रही हैं। उन्होंने सात साल तक कैटरिंग और रेस्टोरेंट बिजनेस भी किया। इसके अलावा दीपा एक मोटिवेशनल और इंस्पिरेशनल स्पीकर भी हैं। वे अलग-अलग इवेंट्स में लोगों को मोटीवेट करने के लिए स्पीच देने भी जाती रहती हैं। दीपा पहली इंडियन लेडी हैं जिन्हें मोडीफाई ह्वीकल चलाने का लायसेंस मिला। ये मिले अवार्ड- दीपा को पद्मश्री अवार्ड-2017, राष्ट्रपति रोल मॉडल अवार्ड-2014, लीडर एशिया एक्सीलेंस अवार्ड-2014, लिम्का पीपल ऑफ द ईयर अवार्ड-2014, कांगो करमवीर पुरस्कार-2014, एमेजिंग इंडिया अवार्ड-2013, करमवीर चक्र अवार्ड-2013, अर्जुन अवार्ड-2012, एक्सीलेंस अवार्ड फॉर स्पोर्ट्स-2012, महाराणा मेवाड़ अरावली स्पोर्ट्स अवार्ड-2012, मिसाल ए हिम्मत अवार्ड-2012, महाराष्ट्र छत्रपति अवार्ड स्पोर्ट्स-2009-10, हरियाणा कर्मभूमि अवार्ड-2008, स्वावलम्बन पुरस्कार महाराष्ट्र-2006 आदि से नवाजा जा चुका है।