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नई दिल्ली। ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और अपने समय के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों में शुमार रिकी पोंटिंग ने लंबे अर्से बाद कप्तानी छोड़ने को लेकर खुलकर बात की है। उन्होंने अपनी कप्तानी में ऑस्ट्रेलियाई टीम को बुलंदियों तक पहुंचाया, उन्होंने कहा कि हार मान लेना बहुत तकलीफ देता है। क्रिकेट के इतिहास में पोंटिंग को सबसे सफल कप्तानों में शुमार किया जाता है।
उनकी कप्तानी में ऑस्ट्रेलिया ने 77 टेस्ट मैच खेले, जिसमें से 48 में टीम ने जीत दर्ज की, वहीं उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई टीम की 228 वनडे इंटरनेशनल मैचों में अगुवाई की, जिसमें से टीम ने 162 मैचों में जीत दर्ज की। उन्होंने 2003 और 2007 में ऑस्ट्रेलियाई टीम को लगातार दो बार वर्ल्ड चैंपियन भी बनाया। इसके अलावा और भी कई बड़े टूर्नामेंट्स और सीरीज में टीम को जीत दिलाई। 2011 वर्ल्ड कप में ऑस्ट्रेलियाई टीम क्वॉर्टर फाइनल में हार गई थी और इसके बाद उन्होंने कप्तानी छोड़ने का फैसला लिया था। ऑस्ट्रेलियाई टीम को 2011 वर्ल्ड कप में भी खिताब का प्रबल दावेदार माना जा रहा था, लेकिन टीम क्वॉर्टर फाइनल मैच में भारत से हारकर टूर्नामेंट से बाहर हो गई थी। कप्तानी छोड़ते हुए उन्होंने कहा था कि किसी ने भी उनसे कप्तानी छोड़ने के लिए नहीं कहा था और यह फैसला उनका खुद का था।
पोंटिंग ने कप्तानी छोड़ने को लेकर करीब 9 साल बाद कहा कि यह फैसला तकलीफ देने वाला था, लेकिन उन्हें पता था कि वो सही समय था ऑस्ट्रेलियाई टीम की कप्तानी छोड़ने का। उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि वो कप्तानी छोड़ने के बाद टीम में इसलिए बने रहे कि क्योंकि टीम में कई नए बल्लेबाज आए थे और उनकी मौजूदगी से नए बल्लेबाजों को मदद मिलेगी।
उन्होंने कहा, 'क्या यह तकलीफ देने वाला था? हां, हार मान लेना तकलीफ देता है, लेकिन मैंने सोचा और यह समझा कि वो सही समय था ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट के लिए। मैं नए कप्तान को पूरा समय देना चाहता था उस समय होने वाले बड़े टूर्नामेंट्स से पहले। मैं यह सुनिश्चित करना चाहता था कि माइकल क्लार्क के पास बड़े टूर्नामेंट्स में ऑस्ट्रेलिया का बेस्ट कप्तान बनने के लिए काफी समय हो।' उन्होंने आगे कहा, 'मैंने वर्ल्ड कप के क्वॉर्टर फाइनल मैच में सेंचुरी बनाई थी और मैं तब भी अच्छा खेल रहा था। कुछ लोगों को हैरानी हुई थी जब मैंने कहा था कि मैं खिलाड़ी के तौर पर टीम से जुड़ा रहूंगा।'
पोंटिंग ने कहा, 'मैंने खेलना जारी रखा था क्योंकि टीम में कुछ युवा खिलाड़ी आ रहे थे और मैं चाहता था कि मैं उनके साथ रहकर उनकी मदद कर सकूं। सच मानिए मेरे पास उस समय खेल में हासिल करने को ऐसा कुछ बचा नहीं था, मैं ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट की बेहतरी के लिए टीम में बना हुआ था।'