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40 साल बाद क्या भारत को मिलेगा हाकी का पदक
जिस हॉकी में भारत की बादशाहत रहा करती थी, उस हॉकी में हम देशवासी टीम के ओलंपिक का टिकट कटा लेने भर से खुश हो जाते हैं। ओलंपिक में हॉकी में भारत ने लगातार छह स्वर्ण सहित आठ पदक जीते हैं। लेकिन पिछले 39 साल से पोडियम पर नहीं चढ़ पाने और 2008 के बीजिंग ओलंपिक के लिए तो क्वालिफाई ही न कर पाने से ये हालात बने हैं। रूस के खिलाफ ओलंपिक क्वालिफायर में भारत के जीतने का सभी को भरोसा था और टीम जीतने में सफल भी रही। लेकिन सही मायने में टीम की परीक्षा अब शुरू हुई है।
साल 2016 के रियो ओलंपिक और 2012 के लंदन ओलंपिक के लिए भी हम क्वालिफाई कर गए थे। लेकिन वहां मिले आठवें और 12वें स्थान ने साबित कर दिया था कि हम अब भी टॉप टीमों के बै्रकेट में नहीं पहुंच पाए हैं। इस सोच को बदलने के लिए भारतीय टीम को अगले साल टोक्यो ओलंपिक में पोडियम पर चढ़ना ही होगा। अगर हम पाकिस्तान के लगातार दूसरी बार ओलंपिक के लिए क्वालिफाई न कर पाने के लिहाज से देखें, तो टोक्यो का टिकट कटाना सही में खुशी देने वाला है।
भारतीय हॉकी टीम के मुख्य कोच ग्राहम रीड 1992 ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाली ऑस्ट्रेलियाई टीम में खेले थे। मगर वह कोच के तौर पर पदक से अब तक दूर हैं। वह 2016 के रियो ओलंपिक में ऑस्ट्रेलियाई टीम के साथ कोच के तौर पर जुड़े हुए थे, लेकिन ऑस्ट्रेलिया क्वार्टर फाइनल में ही हार गई थी। इसलिए रीड को सफल कोच का तमगा हासिल करने के लिए भारत को पदक तक पहुंचाना ही होगा। रीड जिस तरह से टीम को तैयार कर रहे हैं, उससे करीब चार दशकों से चले आ रहे ओलंपिक हॉकी पदक का सूखा खत्म होने की उम्मीद तो बंधती है। हम जून में हुए विश्व कप में भले सेमीफाइनल में स्थान नहीं बना सके, मगर पिछले दिनों यूरोपीय दौरे पर विश्व चैंपियन बेल्जियम और स्पेन के खिलाफ शानदार प्रदर्शन करके टीम ने अपनी मजबूती का एहसास जरूर कराया है।
अलबत्ता, ओलंपिक में खेलने का दवाब कुछ अलग ही होता है। इसलिए ग्राहम रीड ने खिलाड़ियों को मानसिक तौर पर मजबूत बनाने की तरफ ध्यान दिया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वह टीम में एकजुटता लाने में कामयाब हुए हैं। इसके लिए वह सुनील और रमनदीप जैसे अनुभवी खिलाड़ियों को वापस लेकर आए। साथ ही, वह खिलाड़ियों से मिलकर टीम की रणनीति बनाने लगे हैं। इससे खिलाड़ियों में जिम्मेदारी की भावना बढ़ी है।
फिटनेस के मामले में भी मौजूदा टीम किसी से कम नहीं। कभी विदेशी टीमें दूसरे हाफ में भारतीय खिलाड़ियों की थकान का फायदा उठाकर मैच का पासा पलट दिया करती थीं। भारतीय हॉकी टीम के कोच रह चुके कर्नल बलबीर सिंह ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था- हमारी टीम पहले हाफ में ही अच्छा प्रदर्शन कर पाती है, क्योंकि दूसरे हाफ तक हमारे खिलाड़ी थक जाते हैं। मगर मौजूदा टीम में शुरू से आखिर तक पूरी रफ्तार से खेलने का माद्दा है।
फिर भी कई मामलों में सुधार की गुंजाइश है। ग्राहम रीड ने खुद कहा है कि खिलाड़ियों को फिनिशिंग बेहतर करने की जरूरत है। उनके हिसाब से हमारी टीम गोल के मौके तो बहुत बनाती है, पर इन सभी मौकों का फायदा नहीं उठा पाती। इसके अलावा, पेनल्टी कॉर्नर को गोल में बदलने की क्षमता के मामले में भी कमजोरी दूर नहीं हो सकी है। हालांकि इस पर लंबे समय से काम किया जा रहा है, लेकिन प्रदर्शन में निरंतरता नहीं आ पा रही। रूपिंदरपाल सिंह, हरमनप्रीत और रोहिदास के रूप में हमारे पास अच्छे ड्रेग फ्लिकर हैं। बावजूद इन सबके डिफेंस की कमी की वजह से सामने वाली टीमों को बहुत मौके मिल जाते हैं।
भारतीय टीम को इस बार एफआईएच प्रो लीग में अच्छी तैयारी करने का मौका है, जहां उसे दुनिया की सभी दिग्गज टीमों से खेलने का मौका मिलेगा। टीम की तैयारी का इससे बेहतर तरीका कोई और नहीं हो सकता। जरूरत सिर्फ इन मौकों का फायदा उठाने की है, और यह काम अतिरिक्त प्रयास करके ही किया जा सकता है। भारतीय टीम यदि इस लीग में शानदार प्रदर्शन कर पाई, तो टीम को टोक्यो ओलंपिक की हॉकी में पोडियम पर चढ़ने के दीदार हो सकते हैं।