News title should be unique not use -,+,&, '',symbols
अधूरे सपनों को जीती स्वप्ना
एशियाई खेलों में साकार किया था माता-पिता का सपना
खेलपथ प्रतिनिधि
कभी किसी की गरीबी का उपहास न उड़ाएं, लक्ष्मी चलायमान होती है। कब आएगी और कब चली जाएगी उसका पता नहीं चलता। खेल एक साधना है जिसमें खिलाड़ी को अपना सबकुछ दांव पर लगाना होता है। भारत में 90 फीसदी खिलाड़ी गरीब परिवारों से हैं लेकिन यही खिलाड़ी दुनिया भर में लगातार मादरेवतन का मान बढ़ा रहे हैं। पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी की एक रिक्शा चालक की बेटी स्वप्ना बर्मन भी ऐसी ही खिलाड़ी है। भारत को एशियाई खेलों की हेप्टाथलान स्पर्धा में पहली बार सोना दिलाने वाली स्वप्ना का जीवन संघर्षों से भरा है। वह आज भी गुरबत में ही जी रही है। ममता सरकार ने चार साल पहले स्वप्ना को तरह-तरह के सपने दिखाए थे लेकिन उसके सपनों को पूरा करने के लिए कुछ भी नहीं किया।
स्वप्ना बर्मन ने खुद को परिश्रम की आग में तपाकर देश को कुंदन भेंट किया। जिन्दगी में हर बाधा को लांघने वाली स्वप्ना ने एशियन गेम्स में भी सात बाधाओं को लांघकर ही सोना जीता था। आपको बता दें कि वह इस स्पर्धा में सोना जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी है। एक समय ऐसा भी था जब स्वप्ना को अपने लिए सही जूतों के लिए संघर्ष करना पड़ता था, क्योंकि उसके दोनों पैरों में छह-छह उंगलियां हैं। पांव की अतिरिक्त चौड़ाई खेलों में उसकी लैंडिंग को मुश्किल बना देती है इसी कारण उसके जूते जल्दी फट जाते हैं। लेकिन इस गरीब की बेटी ने तमाम कठिनाइयों को नजरअंदाज करते हुए अपना सारा ध्यान मेहनत और अभ्यास पर दिया।
हेप्टाथलान में खिलाड़ी को कुल सात स्टेज में हिस्सा लेना होता है। पहले स्टेज में 100 मीटर फर्राटा दौड़ होती है। दूसरा हाईजम्प, तीसरा शॉटपुट, चौथा 200 मीटर रेस, पांचवां लम्बीकूद और छठा जेवलिन थ्रो होती है। इस इवेंट का सबसे आखिरी चरण में 800 मीटर दौड़ होती है। इन सभी खेलों में खिलाड़ी को प्रदर्शन के आधार पर पॉइंट मिलते हैं, जिसके बाद पहले, दूसरे और तीसरे स्थान के एथलीट का फैसला किया जाता है। पिछले एशियाई खेलों में स्वप्ना ने सात स्पर्धाओं में कुल 6026 अंकों के साथ पहला स्थान हासिल किया था।
पिछले एशियाई खेलों से पहले तक कोई भी खेलप्रेमी स्वप्ना को नहीं जानता था लेकिन आज सारा देश जानता है। स्वप्ना के फौलादी प्रदर्शन को शाबासी देने के साथ खेलप्रेमियों को उसके पिता की भी तारीफ करनी चाहिए क्योंकि उन्होंने लोगों का बोझ ढोते हुए अपनी बेटी को आगे बढ़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। स्वप्ना के पिता पंचन बर्मन रिक्शा चलाते हैं, लेकिन बीते कुछ दिनों से उम्र के साथ लगी बीमारी के कारण बिस्तर पर हैं। वह कहते हैं कि मैं हमेशा अपनी बेटी की जरूरतों को पूरा नहीं कर पाता था लेकिन उसने कभी भी शिकायत नहीं की। सुकांत सिन्हा 2006 से 2013 तक स्वप्ना के कोच रहे। जब स्वप्ना पांचवीं में थी तभी सुकांत ने उसकी प्रतिभा का अंदाजा लगा लिया तथा उसे ट्रेनिंग देने लगे थे। टीन की छत वाले घर जिसके बाहर रिक्शा खड़ा रहता है, अब उस घर की दीवारों पर बेटी की कामयाबी के चित्र समाज को इस बात का संदेश देते हैं कि हमें बेटियों को पराया धन नहीं मुल्क का गौरव मानना चाहिए।