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कर्णम मल्लेश्वरी, साइना नेहवाल, मैरीकाम, साक्षी मलिक, पी.वी. सिन्धू और दीपा मलिक
श्रीप्रकाश शुक्ला
हर क्षेत्र की तरह भारतीय महिलाएं खेल के क्षेत्र में भी अपने पराक्रम और कौशल का जलवा दिखाती रही हैं। जहां तक खेलों के सबसे बड़े मंच ओलम्पिक में भारतीय महिलाओं के पदक जीतने की बात है अब तक छह भारतीय महिलाएं पोडियम तक पहुंची हैं। इनमें ओलम्पिक में पदक जीतने का सबसे पहला श्रेय भारोत्तोलक कर्णम मल्लेश्वरी को मिला है। 2000 सिडनी ओलम्पिक खेलों में कर्णम मल्लेश्वरी ने पहली बार भारतीय महिला के तौर पर कांस्य पदक जीता था। मल्लेश्वरी के बाद साइना नेहवाल, मैरीकाम, साक्षी मलिक, पी.वी. सिन्धू और दीपा मलिक भी पदक जीतने का दुर्लभ कार्य कर चुकी हैं।
तीन बच्चों की मां मैरीकॉम उन छह महिलाओ में शुमार हैं जिन्होंने देश को छह बार विश्व चैम्पियन तो एक बार ओलम्पिक मेडल दिलाया है। मुक्केबाज मैरीकॉम ने लंदन ओलम्पिक में 51 किलो भारवर्ग में कांस्य पदक जीता था। ओलम्पिक खेलों में भारतीय महिलाओं के सहभागिता की जहां तक बात है 1952 के हेलसिंकी ओलम्पिक में पहली बार मेरी डिसूजा उतरी थीं। डिसूजा ने 100 मीटर और 200 मीटर दौड़ में हिस्सा लिया जिसमें वह पांचवें और सातवें स्थान पर रहीं।
ओलम्पिक खेलों के इतिहास में भारत को अब तक कुल 28 पदक हासिल हुए हैं इनमें से महिलाओं की बात करें तो पांच पदक उनके हाथ लगे हैं। पैरालम्पियन दीपा मलिक को भी यदि इसमें हम शामिल कर लें तो यह संख्या छह हो जाती है। यहां हम ऐसी भारतीय महिलाओं के बारे में बताएंगे जिन्होंने ओलम्पिक में राष्ट्र का नाम रोशन किया और देश को गौरवान्वित होने का मौका दिया। इन महिलाओं के चलते ही भारत की खेल क्षमता का पूरी दुनिया को अहसास हुआ और यह संदेश गया कि भारतीय बेटियां भी किसी से कम नहीं हैं।
कर्णम मल्लेश्वरी
ओलम्पिक के इतिहास में पहली भारतीय महिला विजेता होने का श्रेय कर्णम मल्लेश्वरी को जाता है। 2000 के सिडनी ओलम्पिक खेलों में कर्णम मल्लेश्वरी ने वेटलिफ्टिंग में पहली बार भारतीय महिला के तौर पर पदक जीता था। तभी से कर्णम मल्लेश्वरी को लौह महिला के नाम जाना जाने लगा। कुल 240 किलो भार उठाकर कांस्य पदक अपने नाम करने वाली मल्लेश्वरी ने उस वक्त कहा था कि वह नाखुश हैं क्योंकि उनका इरादा गोल्ड मेडल जीतने का था। मल्लेश्वरी का कहना था कि आखिरी राउंड में मिसकैलकुलेशन के चलते उनके हाथ से गोल्ड फिसल गया था। 2004 एथेंस ओलम्पिक में हिस्सा लेने के बाद मल्लेश्वरी ने भारोत्तोलन से संन्यास ले लिया। आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम में पैदा हुईं कर्णम मल्लेश्वरी ने 12 साल की उम्र से ही भारोत्तोलन का अभ्यास शुरू कर दिया था। भारतीय खेल प्राधिकरण की एक योजना के तहत मल्लेश्वरी को प्रशिक्षण मिला था। खेलों में शानदार उपलब्धियों को देखते हुए मल्लेश्वरी को अर्जुन पुरस्कार, खेल रत्न पुरस्कार और पद्मश्री सम्मान मिल चुके हैं।
साइना नेहवाल
साइना नेहवाल का नम्बर एक खिलाड़ी बनने का सफर काफी मुश्किलों भरा रहा। साइना नेहवाल ने 2012 लंदन ओलम्पिक में कांस्य पदक जीता और देश को गर्व महसूस कराया। वह बैडमिंटन में ओलम्पिक पदक जीतने वाली पहली महिला थीं। 2015 में साइना नेहवाल ने बैडमिंटन में नम्बर एक खिलाड़ी का खिताब अपने नाम किया। इससे पहले 2008 के बीजिंग ओलम्पिक में साइना नेहवाल क्वार्टर फाइनल तक पहुंची थीं। इसके चार साल बाद अपने प्रदर्शन में सुधार करते हुए साइना नेहवाल ने पदक जीतकर यह अहसास कराया कि बैडमिंटन की दुनिया में भारत का दौर शुरू हो गया है। इसके अलावा साइना एकमात्र ऐसी खिलाड़ी हैं जिसने एक महीने के अंदर ही तीन बार शीर्ष वरीयता को प्राप्त किया है। वह भारत की शीर्ष बैडमिंटन खिलाड़ी हैं। साइना न केवल भारतीय लड़कियों के लिए प्रेरणास्रोत हैं अपितु उन माता-पिता के लिए भी उदाहरण हैं जो अपनी बेटियों को खेलों में आगे बढ़ने से रोकते हैं।
एम.सी. मैरीकॉम
तीन बच्चों की मां मैरीकॉम भी उन पांच महिलाओं में शुमार की जाती हैं जिन्होंने देश के नाम ओलम्पिक मेडल जीता है। मैरीकॉम ने 2012 लंदन ओलम्पिक में 51 किलो के वर्ग के मुक्केबाजी में ओलम्पिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बॉक्सर बनीं। इसके साथ-साथ अन्य अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी उन्होंने ने 14 स्वर्ण पदक अपने नाम किए हैं। गोल्ड मेडलों की चमक हासिल करने के लिए मैरीकॉम जीतोड़ कड़ी मेहनत करती हैं। मैरीकॉम को सुपरमॉम के नाम से भी जाना जाता है। 2008 में इस महिला मुक्केबाज को मैग्नीफिशेंट मैरीकॉम की उपाधि दी गई। मैरी ने 2000 में अपना बॉक्सिंग करियर शुरू किया था और तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद खुद को न केवल स्थापित किया बल्कि कई मौकों पर देश को भी गौरवान्वित किया। उन्होंने अपनी लगन और कठिन परिश्रम से यह साबित कर दिया कि प्रतिभा का अमीरी और गरीबी से कोई संबंध नहीं होता और अगर आप के अन्दर कुछ करने का जज्बा है तो सफलता हर हाल में आपके कदम चूमती है। छह बार विश्व मुक्केबाजी प्रतियोगिता की विजेता रह चुकी मैरीकॉम अकेली ऐसी महिला मुक्केबाज हैं जिन्होंने अपने सभी सात विश्व प्रतियोगिताओं में पदक जीते हैं।
साक्षी मलिक
साक्षी मलिक उत्तर भारत के हरियाणा से आती हैं। साक्षी रोहतक के जिस गांव से आती हैं वहां कभी उनके कुश्ती खेलने और इसके लिए उनके माता-पिता के मंजूरी देने पर सवाल उठे थे। जब साक्षी ने रियो ओलम्पिक में कुश्ती का कांस्य पदक जीता तब उसी गांव में जश्न का माहौल था। साक्षी ने 58 किलो फ्री स्टाइल श्रेणी में कांस्य पदक अपने नाम किया था। कुश्ती में वह ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। साक्षी को 12 साल की उम्र से ही कुश्ती में दिलचस्पी थी। 2004 में उन्होंने ईश्वर दहिया का अखाड़ा ज्वाइन किया। दहिया के लिए लड़कियों को ट्रेनिंग देना आसान नहीं था। स्थानीय लोग अक्सर उनका विरोध करते रहते थे। लेकिन धीरे-धीरे समय बदला और फिर उनका अखाड़ा लड़कियों के लिए बेस्ट प्लेस बन गया। साक्षी ने 2010 में जूनियर विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीता था। साल 2014 में उन्होंने सीनियर लेवल पर डेव शुल्ज अंतर्राष्ट्रीय रेसलिंग टूर्नामेंट में अमेरिका की जेनिफर पेज को हराकर 60 किलोग्राम भारवर्ग में स्वर्ण पदक जीता था।
पी.वी. सिंधु
रियो ओलम्पिक 2016 के खेलों में एक नया सितारा उभर कर आया जिसने पूरी दुनिया को अपने प्रदर्शन से चौंका दिया। पी.वी. सिंधु ने बैडमिंटन में रजत पदक जीता। वह ओलम्पिक में रजत पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं। सिंधु के घर और बैडमिंटन अकादमी में 56 किलोमीटर की दूरी है लेकिन वह हर रोज अपने निर्धारित समय पर अकादमी पहुंच जाती हैं। उनके भीतर अपने खेल को लेकर एक अजीब दीवानगी है। सिंधु को अर्जुन पुरस्कार, खेल रत्न और पद्मश्री सम्मान से नवाजा जा चुका है। पी.वी. सिंधु के पिता रामना स्वयं अर्जुन अवार्ड विजेता हैं। रामना भारतीय वॉलीबॉल का हिस्सा रह चुके हैं। सिंधु ने अपने पिता के खेल वॉलीबॉल के बजाय बैडमिंटन इसलिए चुना क्योंकि वे पुलेला गोपीचंद को अपना आदर्श मानती हैं। सौभाग्य से वही उनके कोच भी हैं। पुलेला गोपीचंद ने पी.वी. सिंधु की तारीफ करते हुए कहा कि उनके खेल की खास बात उनका एटीट्यूड और कभी न खत्म होने वाला जज्बा है। पी.वी. सिंधु विश्व खिताब भी जीत चुकी हैं। अब तक वह विश्व बैडमिंटन में पांच पदक जीतने वाली दुनिया की पहली शटलर हैं।